केनेडी का भारत से प्रेम उसी समय से शुरू हो गया था, जब वे सीनेटर थे। जब वे 1961 में अपने देश के राष्ट्रपति बने, तो भारत के साथ अमेरिका का संबंध एक नये धरातल पर ही पहुंच गया। यह शीत युद्ध का समय था, जब यह माना जाता था कि भारत सोवियत संघ के ज्यादा नजदीक है और यह सच्चाई भी थी।

केनेडी और नेहरू के बीच का रसायन शास्त्र देखने योग्य था। जब वह अपने देश को संबोधित कर रहे थे, तो उन्होंने भारत के तब के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की प्रशंसा की थी। अब तक अमेरिका का कोई अन्य राष्ट्रपति किसी और भारतीय प्रधानमंत्री के लिए इस तरह का सम्मान नहीं दे सका है।

गोवा पर कब्जा करने की ठीक पहले नेहरू अमेरिका में थे। उस समय उन्होंने केनेडी से भी मुलाकात की थी। केनेडी भारत के साथ बेहतर रिश्ते चाहते थे और इसके लिए उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति का प्रोटोकाॅल तोड़ते हुए नेहरू की खुद उस समय आगवानी की, जब वे उनके निजी घर उनसे मिलने गए थे। दोनों की बातचीत के दौरान केनेडी ने वियतनाम समस्या पर उनसे राय मांगी थी, पर नेहरू उस पर चुप ही रहे। लेकिन बाद में उन्होंने अपने निजी सचिव एम जे देसाई को कहा कि अमेरिका को कहे कि वह वियतनाम न जाये, क्योंकि वहां जाने के बाद वह वहां से निकल नहीं पाएगा और अपनी दुर्गति करा बैठेगा। उस समय अमेरिका मे भारत के राजदूत बी के नेहरू थे। उनका कहना है यदि नेहरू ने अपनी उस बैठक में केनेडी को अपनी वह बात कही होती, तो वियतनाम में अपनी दुर्गति कराने से शायद अमेरिका बच जाता और स्थिति तक कुछ और ही होती।

दोनों के संबंधों में उस समय तनाव पैदा हो गया, जब अमेरिका की नेहरू की उस यात्रा के बाद ही भारत ने गोवा को मुक्त करा डाला। उसने ऐसा सैनिक हस्तक्षेप करके किया था। उसके पहले उसपर पुर्तगाल का कब्जा था। भारत की उस कार्रवाई की अमेरिका और इंग्लैंड ने निंदा की थी, जबकि सोवियत संघ ने इसका समर्थन किया था। संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में उस समय भारत की उस कार्रवाई के खिलाफ एक प्रस्ताव पेश किया गया था, जिसे बहुमत का समर्थन हासिल था, पर उस प्रस्ताव को सोवियत संघ ने अपनी वीटो शक्ति के प्रयोग से पराजित कर दिया।

केनेडी को इस बात का दुख था कि अमेरिका के उस दौरे में नेहरू ने गोवा का जिक्र तक नहीं किया था और गोवा का वह आॅपरेशन अमेरिकी यात्रा के तुरंत बाद ही भारत ने कर डाला था। केनेडी ने नेहरू को चिट्ठी लिखकर अपने गुस्से और दुख को जाहिर किया था। उन्होंने लिखा था कि यदि हमारे साथ आपने गोवा पर बातचीत की होती तो शायद बिना शक्ति का इस्तेमाल किए हुए ही हम गोवा को मुक्त कराने में आपकी कुछ सहायता कर पाते। केनेडी ने दुख भरे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए लिखा था कि हमें कोशिश करनी चाहिए कि गोवा के कारण हमारे रिश्तों मे जो गिरावट आई है, वह अस्थाई हो।

1962 में जब जाकलिन केनेडी भारत आई थीं, तो उस समय जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें अपने घर में ही ठहराया था। उस समय अमेरिकी दूतावास में मरम्मत का काम चल रहा था, जिसके कारण वह वहां नहीं ठहर सकती थीं। तब के भारत में अमेरिकी राजदूत गालब्रेथ ने कहा था कि वह यात्रा सफल रही।

कुछ महीने के बाद जब चीन ने भारत पर हमला किया, तो केनेडी ने अपना वचन निभाया। एशिया के दो बड़े देशों के बीच एक महीने तक युद्ध चला और भारत की भद्द पिटी। चीन के उस आक्रमण के लिए भारत की सेना तैयार ही नहीं थी। उस समय नेहरू ने केनेडी को पत्र लिखकर अमेरिका से सैनिक सहायता की मांग की और कहा कि भारत की हालत बहुत ही हताशापूर्ण है। यह समय नेहरू के लिए भारी अपमान का समय था, क्योंकि शीतयुद्ध में वे अमेरिका का पक्ष लेने से लगातार इनकार कर रहे थे और आत्मनिर्भरता और आत्मस्वाभिमान की बात करते थे। भारत की सहायता के लिए केनेडी ने तब पश्चिम बंगाल में अपना युद्धपोज किट्टी हॉक भेजा था। फिलिपिंस में स्थिति अपनी सेना को भी युद्ध में शामिल करने के लिए तैयार रहने को अमेरिका ने कहा था। भारत को केनेडी के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर करनी चाहिए। उनकी मौत की 50वी‘ बरसी पर भारत की तरफ से केनेडी को यह एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी। (संवाद)