पर जब अन्ना के आंदोलन से ही आम आदमी पार्टी नाम का एक दल बना तो राजनैतिक दलों के नेताओं के सुर बदल गए। अनेक तो मजाक उड़ाने लगे। आप से यदि सबसे ज्यादा परेशानी किसी पार्टी को हुई तो भारतीय जनता पार्टी को। भारतीय जनता पार्टी अन्ना के उस आंदोलन का समर्थन कर रही थी। उसमें शामिल होने की उसने औपचारिक घोषणा नहीं की थी, क्योंकि अन्ना नहीं चाहते थे कि कोई राजनैतिक दल उनके आंदोलन के साथ खड़ा दिखाई पड़े, लेकिन अघोषित तौर पर भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने उस आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की। भाजपा का आकलन था कि उस आंदोलन से लोगों का कांग्रेस और यूपीए के खिलाफ गुस्सा भड़केगा, जिसका लाभी चुनावों के दौरान उसे ही होगा।
लेकिन आप नाम की पार्टी बन जाने के बाद सबसे ज्यादा परेशान भारतीय जनता पार्टी ही हुई। उसके पहले बाबा रामदेव द्वारा स्वाभिमान पार्टी बनाने के इरादे पर भी भारतीय जनता पार्टी चिंतित थी, क्योंकि उसे लगता था कि बाबा के कारण उसका समर्थन आधार कमजोर होगा। बहरहाल, बाबा रामदेव ने पार्टी बनाने का विचार त्याग दिया और उनकी राजनीति कांग्रेस विरोध और नरेन्द्र मोदी के समर्थन तक सीमित हो गई, पर केजरीवाल ने न केवल आप नाम की पार्टी बना ली, बल्कि दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा भी कर डाली।
दिल्ली अन्ना आंदोलन का सबसे बड़ा केन्द्र था। आंदोलन की तीव्रता सबसे ज्यादा यहीं थी। अरविंद केजरीवाल ने अपना आम आदमी पार्टी के शक्ति परीक्षण का पहला केन्द्र भी दिल्ली को ही बनाया। दिल्ली में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी में ही मुख्य मुकाबला होता रहा है। जब लोग कांग्रेस से परेशान होते हैं, तो उसका फायदा भाजपा को मिल जाता है और भाजपा से नाराजगी का फायदा कांग्रेस को मिल जाता है। आम आदमी पार्टी बनने से भाजपा को लगा कि कांग्रेस विरोधी मतों में बिखराव लाकर आम आदमी पार्टी कांग्रेस की जीत आसान कर देगी।
जिन कारणों से भारतीय जनता पार्टी परेशान थी, उन्हीं कारणों से कांग्रेस खुश। उसे तो लग रहा था कि दिल्ली में उसकी जीत निश्चित है, क्योंकि कांग्रेस विरोधी मत बंटने वाले हैं। पर चुनाव अभियान ने कांग्रेस के गणित को भी बिगाड़ दिया। कांग्रेस का मजबूत माना जाने वाला जनाधार भी आम आदमी पार्टी की ओर खिसक रहा है। आम आदमी पार्टी का झाड़ू झुग्गी झोपडि़यों और अनधिकृत कालोनियों मंे प्रभावी ढंग से पहुंच चुका है। और इसके कारण कांग्रेस की सभाओं मंे लोग बहुत मुश्किल से पहुंच पा रहे हैं। राहुल गांधी की फ्लाप सभाओं को देखते हुए कांग्रेस उम्मीदवार अब नहीं चाहते कि राहुल उनके क्षेत्र में चुनावी सभा करें।
भारतीय जनता पार्टी को इस बात को लेकर खुश होना चाहिए था कि आम आदमी पार्टी ने यदि उसके कुछ लोगों को अपनी ओर खींचा है, तो उसने कांग्रेस के जनाधार को भी अपनी ओर खींचने का काम कर दिया है। इसके कारण भारतीय जनता पार्टी को फायदा होगा। पर भाजपा आम आदमी पार्टी के बढ़ते जनसमर्थन से परेशान एक और कारण से भी है और वह कारण है आगामी लोकसभा चुनाव।
आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी अरविंद केजरीवाल से खौफ खा रही है। उसके एक नेता ने इस लेखक को बताया कि यदि केजरीवाल की दिल्ली में सरकार बन जाती है, तो इसका असर राष्ट्रीय स्तर पर पड़ेगा और देश भर में आम आदमी पार्टी की ओर लोगों का झुकाव बढ़ेगा। इसके कारण भारतीय जनता पार्टी को कांग्रेस विरोध का होने वाला लाभ सीमित हो जाएगा। भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा में सबसे बड़ा चुनावी फायदा कांग्रेस की अलोकप्रियता के कारण ही होगा। कांग्रेस आज देश में जितनी अलोकप्रिय है, उतनी कभी नहीं थी। कांग्रेस ही नहीं, अन्य भाजपा विरोधी पार्टियों की स्थिति भी अच्छी नहीं है। जाति के आधार पर राजनीति कर रहे नेताओं से भी उनकी जाति के लोगों का मोह भंग हो रहा है, क्योंकि वे अपनी जाति से ज्यादा अपने परिवार को अहमियत दे रहे हैं। जातिवादी नेताओं से उनकी जाति के लोगो ंके हो रहे मोहभंग का फायदा भी भाजपा को मिलेगा, लेकिन यदि दिल्ली के विधानसभा चुनाव में सफलता पाने के बाद यदि आम आदमी पार्टी को देश भर में आधार मिल गया, तो कांग्रेस और जातिवादी नेताओं से मोहभंग हुए लोगों के एक बड़े वर्ग को आम आदमी पार्टी एक विकल्प के रूप में दिखाई पड़ सकती है। और यदि ऐसा होता है, तो भाजपा को मिलने वाले मतों का एक हिस्सा आम आदमी पार्टी की ओर जा सकता है।
इसलिए केजरीवाल की पार्टी को कांग्रेस की कीमत पर भी दिल्ली विधानसभा में सफलता नहीं मिले, इसी रणनीति पर भारतीय जनता पार्टी चल रही है। इसलिए दिल्ली विधानसभा चुनाव में उसका मुख्य निशाना कांग्रेस नहीं, बल्कि आम आदमी पार्टी है। वह किसी तरह आम आदमी पार्टी की सफलता को सीमित करना चाहती है। केजरीवाल के दिल्ली का मुख्यमंत्री होने का ख्याल तो उसकी रूह को कंपकपा देता है, त्रिशंकु विधानसभा में आम आदमी के सबसे बड़े दल के रूप में उभरने का ख्याल भी उसे नहीं भाता। सबसे बड़ी पार्टी क्या, भारतीय जनता पार्टी यह भी नहीं चाहती कि आम आदमी पार्टी दिल्ली विधानसभा की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बने।
पर दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी लगातार मजबूत होती जा रही है। उसके सामने यदि कुछ समस्या है, तो उसके उम्मीदवारों के नया होने की समस्या है। उसके लगभग सभी उम्मीदवार पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। मतदान के पहले वाले कुछ घंटों मे राजनीति में जो उथल पुथल होती है और दारू, रुपया और अफवाह का दौर शुरू होता है, उससे वे कैसे निबटेंगे यह बड़ा सवाल है। यहीं भाजपा नेताओं को कुछ संतोष महसूस होता है और उन्हें लगता है कि आम आदमी पार्टी भले चुनाव अभियान में आगे हो, पर मतदान के दिन उसकी स्थिति खराब हो जाएगी और उसका लाभी भाजपा उम्मीदवारों को ही मिलेगा। (संवाद)
दिल्ली विधानसभा चुनाव में 'आप‘ फैक्टर
केजरीवाल से क्यों डरे हुए हैं भाजपा नेता
उपेन्द्र प्रसाद - 2013-11-30 10:18
जब अन्ना का आंदोलन चल रहा था और वे अनशन पर बैठे थे, जब उनके विरोधी खासकर राजनैतिक दलों से जुडे लोग कह रहे थे कि इस तरह का आंदोलन गलत है और यदि उन्हें लगता है कि किसी तरह का नया कानून बनना चाहिए और सरकार उसे नहीं बना रही है, तो उन्हें खुद पार्टी बनाकर चुनाव लड़ना चाहिए और चुनाव जीतकर वे कानून बनाना चाहिए, जिसके लिए वह अनशन पर बैठे हैं। गांधी जी अनशन के हथियार का इस्तेमाल खूब किया करते थे। कहा गया कि गांधीजी के समय देश गुलाम था और लोकतंत्र व चुनाव का विकल्प उनके पास नहीं था, इसलिए उनका अनशन करना जायज है, पर आजादी के बाद गांधी के उस हथियार के इस्तेमाल की जरूरत नहीं रही।