एक तरफ संसद के सत्र का यह हाल है और दूसरी ओर चुनावों में लोगों के बढ़ते उत्साह को देखिए। अब प्रत्येक चुनाव के साथ मतदान करने वाले लोगों का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है। छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में हुए विधानसभा के चुनावों में 70 फीसदी से ज्यादा मत पड़े हैं। मिजोरम में तो 80 फीसदी से भी ज्यादा मत पड़े हैं। इससे क्या पता चलता है? इससे क्या यह नहीं पता चलता है कि मतदाता भी अपने प्रतिनिधियों से यही चाहते हैं कि संसद और विधानसभाओं में वे ज्यादा जिम्मेदारी के साथ पेश आएं और लोगों की समस्याओं को हल करने का प्रयास करें।
यदि उनके प्रतिनिधि सदनों में हंगामा करते और काम को रोकते दिखाई देते होंगे, तो उन्हें कैसा महसूस होता होगा? इससे उनका विश्वास अपने प्रतिनिधियों से टूटता होगा। यदि ऐसा ही होता रहा, तो उनका विश्वास हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था से भी उठना शुरू हो जाएगा। यह स्थिति बहुत ही भयावह होगी। इसलिए अब समय आ गया है कि सभी पार्टियों के नेता मिलजुलकर बिगड़ रही स्थिति को संभालें।
प्रतिनिधियों को फिर से वापस बुलाने का अधिकार पहले अव्यवहारिक लगता था। इस अधिकार की मांग करते हुए कहा जाता है कि यदि किसी क्षेत्र के लोगों को लगे कि उनका प्रतिनिधि सही ढंग से काम नहीं कर रहा है और भ्रष्टाचार में शामिल है, तो उसे अपने प्रतिनिधि को वापस बुलाने को अधिकार दिया जाना चाहिए। अब लगता है कि लोगों को यह अधिकार दे ही दिया जाना चाहिए। सबसे पहले लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने यह मांग उठाई थी, लेकिन राजनैतिक पार्टियों ने इस मांग को खारिज कर दिया था। अब पार्टियों को इस तरह का कानून बनाने का कोई तरीका निकालना चाहिए।
यह तो जनता का अधिकार होगा, पर संसद के अंदर भी कुछ ऐसे प्रावधान तो होने ही चाहिए, जिससे काम में बार बार व्यवधान देने वालों के साथ कुछ सख्ती बरती जा सके। ऐसे सांसदों को दंड देने का भी कोई तरीका ईजाद किया जाना चाहिए।
एक तरीका तो यह हो सकता है कि जिस दिन सदन की कार्रवाई नहीं चले, उस दिन सांसदों को मिलने वाले भत्ते को रोक दिया जाय। यदि उपस्थिति दैनिक भत्तों को रोकने से काम नहीं चले, तो उनका मिलने वाली अन्य सुविधाओं को भी धीरे धीरे रोकने का प्रावधान हो। यानि जो सदस्य जितना व्यवधान पहुंचाए, उसकी सुविधा में उसी अनुपात से कमी की जाए।
और यदि किसी सांसद द्वारा व्यवधान पहुंचाने का काम लगातार जारी रहे और सभी सीमाएं उनके द्वारा तोड़ दी जाए, तो उस सांसद के फिर से चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दी जाए। वह रोक कुछ समय के लिए ही हो। उसी तरह यदि यह पाया जाय कि कोई पार्टी सदन को लगातार बाधित कर रही है और उसके कारण पूरा का पूरा सत्र ही बाधित हो जाता है, तो उस पार्टी पर भी एक निश्चित समय सीमा तक चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जा सकती है।
यह तो कुछ सुझाव हैं, जिन्हें अपनाकर संसद के सत्र में डाली जाने वाली बाधाओं को हतोत्साह किया जा सकता है। और भी अनेक उपाय सोचे और अमल में लाए जा सकते हैं, ताकि संसद का सत्र शांतिपूर्वक चल सके और उसमें काम काज संपन्न किया जा सके। इसका उद्देश्य यही होना चाहिए कि लोगों के प्रतिनिधि सही व्यवहार करें।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले जुलाई महीने में एक फैसले में दो साल से ज्यादा सजा पाने वाले सांसदों और विधायकों के तत्काल प्रभाव से सदस्यता समाप्त करने का प्रावधान कर दिया। उस फैसले के कारण ही अब सजा पाया हुआ कोई व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता है। यह बहुत ही अच्छा फैसला है। इस फैसले की भावना को आगे बढ़ाते हुए ऐसे उपाय किए जाने चाहिए, ताकि अवांछित तत्व संसद या विधानसभा में न आ सकें और वहां का कामकाम अच्छी तरह से चल सके। (संवाद)
संसद को चलने दिया जाना चाहिए
बाधा डालने वाले सांसदों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो
हरिहर स्वरूप - 2013-12-02 10:36
संसद का आगामी शीत सत्र 5 दिसंबर से शुरू हो रहा है। संसद का कोई भी सत्र अबतक इतना छोटा नहीं रहा है, जितना छोटा इसे रखा गया है। यह महज दो सप्ताह तक ही चलेगा। आमतौर पर संसद का मानसून और शीत सत्र पूरे एक महीने का होता है। इस बार छोटा सत्र बुलाने का कोई साफ कारण नहीं बताया गया है। एक कारण शायद यह हो सकता है कि संसद के सत्र पिछले सालों से बार बार बर्बाद किए जा रहे हैं। उनमें काम ढंग से नहीं हो पाते और बार बार संसद स्थगन का शिकार हो जाती है। इसीलिए लगता है कि सरकार ने इस बार छोटा सत्र बुलाया है, ताकि पैसों की फालतू में बरबादी नहीं हो सके।