इस तरह के सर्वे के नतीजे गलत भी होते हैं और सच तो यह है कि अधिकांश बार यह गलत ही हुए हैं, लेकिन एक्जिट पोल के पहले जो राजनैतिक दृश्य दिखाई दे रहा था, उस दृश्य से ये नतीजे मेल खाते हैं। नरेन्द्र मोदी की सभाओं में अभूतपूर्व भीड़ उमड़ रही थी। भीड़ बड़े उत्साह के साथ मोदी के भाषण सुना करती थी और कई बार तो उत्साह में भाषण सुनने के बदले मोदी मोदी का उच्चारण करने लगती थी। दूसरी तरफ कांग्रेस नेताओं की सभाओं का हाल कुछ और हुआ करता था। सभा मंडप मे‘ लगाई गई कुर्सियां तक अनेक सभाओं मंे नहीं भरा करती थीं। दिल्ली में तो राहुल गांधी के एक भाषण के समय लोग इतनी संख्या में उपस्थित ही नहीं थे कि राहुल वहां भाषण देना सम्मानजनक समझते। इसलिए उनके भाषण को तीन घंटा विलंबित कर दिया गया है और कांग्रेस नेता उस बीच जहां तहां से कुछ लोगों को बुला लाए। उस सभा की दुर्दशा देखकर राहुल गांधी ने अगली सभा में पहुंचने में तीन घंटे देर लगा दी। लेकिन उस समय तक जो लोग आए थे, वे वहां से उठकर जाने लगे और राहुल गांधी को 6 मिनट में ही अपना भाषण समाप्त करना पड़ा। उस सभा की विफलता के बाद राहुल गांधी ने उसके बाद दिल्ली में चुनावी सभा ही नहीं की और कांग्रेस उम्मीदवारों ने भी अपने अपने क्षेत्रों मे उनसे भाषण न करवाना ही बेहतर समझा।

जाहिर है, चुनावी सभाओं ने कांग्रेस की पराजय के संकेत दे दिए थे। कांग्रेस राजस्थान में सरकार में है। वहां सरकार विरोध की जन मानसिकता का लाभ उठाकर भाजपा के सत्ता में आने की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे भाजपा शासित राज्यों में भी कांग्रेस का बुरा हाल होना यह साबित करता है कि लोगों के एक वर्ग में सरकार के खिलाफ स्वाभाविक असंतोष का फायदा उठाने में कांग्रेस विफल रही है। यानी जहां कांग्रेस भाजपा से सत्ता छीन सकती थी, वहां वह वैसा करने में विफल दिखाई पड़ रही है और जहां वह भाजपा को सत्ता छीनने से रोक सकती थी, वहां भी वह विफल दिखाई पड़ रही है। जाहिर है, हिंदी के इन 4 राज्यों में कांग्रेस को मुह की खानी पड़ रही है। बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में उसकी हालत पहले से ही खराब है।

कांग्रेस को लग रहा था कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की उपस्थिति का उसे लाभ मिलेगा, क्योंकि आप जिस अन्ना आंदोलन की उपज है, उसमें मुख्य रूप से मध्यवर्ग और उच्च मध्यवर्ग की भागीदारी थी और उस वर्ग में आप की पैठ का मतलब भाजपा का समर्थन आधार बंटना था। कांग्रेस अपने निम्न मध्यवर्ग और गरीब मतदाताओं के आधार को अक्षुण्ण मान रही थी, पर दिल्ली विधानसभा के एक्जिट पोल से पता चलता है कि आप ने भाजपा से ज्यादा कांग्रेस का ही नुकसान कर दिया है। उसने कांग्रेस के आधार को तोड़ डाला है, जबकि भारतीय जनता पार्टी अपना समर्थन आधार बचाने में सफल रही है। आप का हमला तो भाजपा पर ही था, लेकिन नरेन्द्र मोदी के कारण वह भाजपा के आधार को तोड़ने में विफल रही। मतलब कि नरेन्द्र मोदी के कारण केजरीवाल भारतीय जनता पार्टी को नुकसान पहुंचाने में विफल रहे। मोदी ने तो अपनी भाजपा को केजरीवाल से बचा लिया, लेकिन कांग्रेस का कोई नेता केजरीवाल के सामने टिक नहीं सका। एक्जिट पोल का एक निष्कर्ष तो यह भी है कि दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित खुद अरविंद केजरीवाल के हाथों चुनाव हारने वाली है। चुनाव प्रचार के दौरान शीला दीक्षित की बदहवासी देखी जा सकती थी। वे अपने चुनाव क्षेत्र नई दिल्ली में मतदाताओं को कह रहे थे कि क्षेत्र की स्थानीय उम्मीदवार हैं, जबकि अरविंद केजरीवाल तो पड़ोसी उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद से और भाजपा प्रत्याशी विजेंद्र गुप्ता रोहिणी से चुनाव लड़ने के लिए आए हैं। इस तरह का क्षेत्रीयताद नई दिल्ली के मतदाताओं के बीच उपहास का विषय बना हुआ था।

एक्जिट पोल के नतीजे बताते हैं कि नरेन्द्र मोदी के सामने कांग्रेस विवश है। उसे नरेन्द्र मोदी का कोई तोड़ दिखाई नहीं पड़ रहा है। दिल्ली में पूरे हंगामे के साथ कांग्रेस ने खाद्य सुरक्षा कानून को लागू किया। पता नहीं, गरीबों को एक रुपये किलो गेहू‘ और दो रुपये किलो चावल मिल रहा है या नहीं, लेकिन दिल्ली में कांग्रेस के तुरुप का पत्ता खाद्य सुरक्षा कानून भी मोदी की काट नहीं कर पाया। मोदी क्या वह केजरीवाल के हमले से भी कांग्रेस के जनाधार को नहीं बचा सका और अब तक के इतिहास का सबसे छोटा मत प्रतिशत इस बार कांग्रेस को प्राप्त होना है। गौरतलब है कि कांग्रेस ने दिल्ली के इतिहास में कभी भी 30 फीसदी से कम वोट हासिल नहीं किया है और इस बार पहली बार उसे 30 फीसदी से कम वोट मिलता दिखाई दे रहा है।

भाजपा के नजरिए से देखा जाय, तो मध्य प्रदेश में उसे पहले से ही उम्मीद थी कि शिवराज सिंह के नेतृत्व में उसकी एक बार और सरकार बन जाएगी। उसे यह भी उम्मीद थी कि राजस्थान में उसकी सरकार बनेगी, लेकिन छत्तीसगढ़ में उसकी स्थिति डांवाडोल थी। यदि वहां भारतीय जनता पार्टी की जीत होती है, तो उसका मुख्य कारण नरेन्द्र मोदी द्वारा किया गया धुआंधार प्रचार ही होगा। कहते हैं कि पहले दौर के मतदान में भाजपा की स्थिति वहां पतली महसूस की जा रही थी और उसके बाद भाजपा ने नरेन्द्र मोदी को वहां झोक दिया और उसी बीच समाजवादी पार्टी नेता नरेश अग्रवाल ने कह डाला कि एक चाय बेचने वाला देश का प्रधानमंत्री नहीं हो सकता। छत्तीसगढ़ में भाजपा ने मोदी के खिलाफ दिए गए इस बयान का इस्तेमाल वहां की गरीब जनता को अपनी ओर लुभाने में किया और उसमें उसे सफलता मिलती भी दिखाई पड़ रही है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की लहर को रोकने में भी मोदी ने भाजपा की सहायता की, अन्यथा यहां भाजपा ने अपनी जीत को खुद संशय की दृष्टि से देखना शुरू कर दिया था।

कांग्रेस की समस्या यह है कि उसमें ऐसा नेताओं की भरमार हो गई है, जो जमीन से कभी जुड़े ही नहीं रहे और वही नेता पार्टी की रणनीति तय कर रहे हैं। जमीन से जुड़े नेता हासिए पर धकेल दिए गए हैं और वे पार्टी के पतन का मूक तमाशा देख रहे हैं। लोकसभा चुनाव के पहले यदि कांग्रेस ने हवाई नेताओ को त्यागकर जमीनी नेताओं को रणनीति निर्माण की प्रक्रिया में शामिल नहीं किया, तो फिर उसका भगवान ही मालिक है। (संवाद)