केंद्रीय वन व पर्यावरण मंत्री जय राम रमेश के अनुसार भारत के वन संपदा जिसमें औषधीय पौधे भी आते हैं, के बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा व्यापारिक उपयोग रोकने के लिए कानून बने हुए हैं, फिर भी हल्दी तथा नीम जैसे पौधे का पेटेन्ट कराने की नाकाम कोशिशें दूसरे देशों की कंपनियों द्वारा की गयी हैं। इस साल जापान के नागेाया शहर में बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी को ले कर एक कान्फेरेंस होने जा रहा है जिसमें इन औषधीय पौधों का व्यापारिक उपयोग संबंधित देशों तक सीमित करने के लिए अंतराष्ट्रीय प्रोटोकॅाल स्वीकृत किया जाएगा। इस प्रोटोकॉल पर विभिन्न देशों द्वारा सहमति मिल जाने के बाद बहुराष्ट्रीय कंपनियां किसी दूसरे देश में अनधिकृत घुसपैठ नहीं कर सकेगी।

जय राम रमेश ने बताया कि भारत बायो डाइवर्सिटी के क्षेत्र में विश्व में प्रमुख भूमिका निभाने जा रहा है। भारत 2012 में बायो डाइवर्सिटी पर कन्वेंसन का मेजबानी करने जा रहा है। इसकी शुरुआत रियो से 1992 में हुई थी। उन्होंने बताया कि वर्ष 2010 को अंतर्राष्ट्ीय बायो डाइवर्सिटी वर्ष के रुप में मनाया जाएगा।

बायो पायरेसी को रोकने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम की जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि सीएसआइआर द्वारा भारत के परंपरागत ज्ञान का डाटा एकत्र किया गया है, जिसका नाम परंपरागत नॉलेज डिजिटल लाइब्रेरी रखा गया है। यह डाटा अग्रेजी के अलावा स्पेनिश, फ्रेंच, जर्मन तथा जापानी भाषाओं में भी उपलब्ध है।

उन्होंने बताया कि 240 लाख पेज के इस डाटा में आयुर्वेदिक, यूनानी, सिद्ध तथा योग के लगभग दो लाख फार्मूले दिए गए हैं। इसकेा तैयार करने में 10 साल लगे हैं जिस पर कुल 7 करोड़ रु खर्च आया है।

उन्होंने यह डाटा अमेरिका, यूरोप तथा अन्य पेटेन्ट देने वाले कार्यालयों में उपलब्ध करा दी गयी है। अब किसी भारतीय परंपरागत ज्ञान का पेटेन्ट कराना आसान नहीं होगा। किसी भारतीय फार्मूले को पेटेन्ट देने के पहले पेटेन्ट कार्यालयों द्वारा इस डाटा का अध्ययन किया जाएगा। अगर वह फार्मूला इस डाटा में पाया जाता है तो उसका पेटेन्ट नहीं किया जाएगा।

जय राम रमेश ने बताया कि भारत के परंपरागत मौखिक ज्ञान का भी लिखित संग्रहण किया जा रहा है।इसकी शुरुआत केरल और कर्नाटक राज्य ने कर दी है।#