मिजोरम विधानसभा चुनाव लोगों का ध्यान अपनी ओर नहीं खींच रहा। वहां 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मिजो नेशनल फ्रंट को हरा कर सत्ता हासिल की थी। सत्तारूढ़ कांग्रेस को लग रहा है कि एक बार फिर वह चुनावी जीत हासिल कर वहां की सत्ता पर काबिज रहेगी। मिजोरम में सिर्फ एक लोकसभा सीट है, जिस पर 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई थी।
2003 और 2008 की विधानसभा चुनावों को देखें तो साफ दिखाई पड़ता है कि चारों हिंदी प्रदेशों के चुनावी नतीजों का अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव पर असर पड़ा था। दिल्ली, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा के चुनावी नतीजे अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में लगभग दुहरा दिए गए थे। इन प्रदेशों में 72 लोकसभा सीटें हैं और इनमें से 41 पर कांग्रेस की 2009 में जीत हुई थी, जबकि भाजपा को 29 सीटें मिली थीं।
इस बार चुनाव नतीजों को प्रभावित करने वाले कुछ निर्णायक फैक्टरों में एक नये मतदाता हैं। वे किसे पसंद करते हैं, यह देखना महत्वपूर्ण होगा। कीमतों में हो रही वृद्धि का असर भी चुनावों पर पड़ा है। देखना दिलचस्प होगा कि यह किस तरह नतीजों को प्रभावित करता है। उम्मीदवारों का अपन रिकार्ड भी चुनाव में हार जीत के लिए मायने रखता है। नरेन्द्र मोदी का कितना प्रभाव मतदान पर पड़ा और अरविंद केजरीवाल ने इस किस तरह प्रभावित किया, इसका भी पता चुनाव नतीजे सामने आने के बाद ही लगेगा।
छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में 75 फीसदी मतदाताओं ने हिस्सा लिया। मध्यप्रदेश में भी 71 फीसदी से ज्यादा मतदाताओं ने वोट डाले। दिल्ली और राजस्थान में भी मतदान का प्रतिशत पहले के चुनावों की अपेक्षा ज्यादा था। मतदाताओं के उत्साह को लोग अपने अपने तरीके से आंक रहे हैं। कांग्रेस का कहना है कि भाजपा शासित प्रदेशों में ज्यादा मतदान होना इसके लिए अच्छा है, क्योंकि ज्यादा मतदान का मतलब लोगों के सरकार के खिलाफ गुस्से को दिखाता है। जबकि भारतीय जनता पार्टी का मानना है कि ज्यादा मतदान युवा मतदाताओं के जोश के कारण हुआ है और उन्होंने कांग्रेस के खिलाफ मत डाले हैं।
ये चुनाव लोकसभा चुनाव के कुछ पहले ही हुए हैं। इसलिए इनका खास महत्व है। आगामी लोकसभा चुनाव के बैरोमीटर के रूप में इसे देखा जाता है। इन चुनावों के नतीजे कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के लिए काफी मायने रखते हैं, क्योंकि आगामी लोकसभा चुनाव में सत्ता के लिए मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों के बीच में है। कांग्रेस को इन चुनावों में खाद्य सुरक्षा विधेयक, मनरेगा और भूमि अधिग्रहण कानून से बहुत उम्मीदें थी। देखना होगा कि उसकी उम्मीदें पूरी होती हैं या उसे नाउम्मीदी का सामना करना पड़ता है।
नरेन्द्र मोदी ने इन चुनावों मे भारतीय जनता पार्टी की ओर से धुंआधार प्रचार किए। भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में वे विधानसभा चुनावों के लिए अपनी पार्टी के खातिर लोगों से वोट मांग रहे थे। देखना होगा कि लोगों ने उन्हें कितना स्वीकारा। चुनाव के नतीजे आने के बाद पता चलेगा कि गुजरात से बाहर उनकी कितनी स्वीकार्यता है। भाजपा के अंदर और उसके बाहर के मोदी विरोधी विधानसभा चुनावों के नतीजों की ओर टकटकी लगाकर देख रहे हैं। यह सच है कि मध्य प्रदेश में वहां के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान की अपनी लोकप्रियता है और छत्तीसगढ़ में रमण सिंह की अपनी साख है। राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया की भी अच्छी धाक है। यह तो दिल्ली है, जिसमें भारतीय जनता पार्टी का कोई मजबूत स्थानीय नेता नहीं है। नरेन्द्र मोदी की स्वीकार्यता की असली परीक्षा दिल्ली में ही होनी है।
यदि इन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी चारों राज्यों में सत्ता में आ जाती है, तो इससे पार्टी को बहुत ताकत मिलेगी। उसके हौसले और भी बढ़ेगे। भाजपा पहले ही नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में उत्साह के साथ लोकसभा चुनाव की तैयारियों में लगी हुई है।(संवाद)
विधानसभा के चुनाव लोकसभा चुनाव की दिशा तय करेंगे
नरेन्द्र मोदी की स्वीकार्यता का भी पता चलेगा
कल्याणी शंकर - 2013-12-06 10:48
पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव के बाद अब लोकसभा चुनाव की ओर सबकी नजर है। लोकसभा चुनाव अब कुछ महीने ही दूर हैं। विधानसभा चुनावों में सिर्फ संबंधित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री उम्मीदवारों की प्रतिष्ठा ही दाव पर नहीं लगी हुई है, बल्कि यूपीए और एनडीए के हौसले पर भी इसका असर पड़ेगा।