कांग्रेस की भारी पराजय में ही लोगों के बदलाव की कामना झलकती है। आज कांग्रेस बदलाव विरोध और यथास्थितिवाद की प्रतीक सी बन गई है। लोग यथास्थिति से असंतुष्ट हैं। वे कुछ नयेपन का ओर बढ़ना चाहते हैं। उन्हें जहां कहीं नयापन दिखाई पड़ता है, उसकी ओर आशा की दृष्टि से देखते हैं। दिल्ली के चुनाव नतीजे लोगों के बदलाव की कामना को सबसे बेहतर ढंग से रेखांकित करते हैं।

इन विधानसभा चुनावों मे नरेन्द्र मोदी और अरविंद केजरीवाल का बोलबाला रहा। भाजपा की तीन राज्यों में सफलता के पीछे नरेन्द्र मोदी का हाथ था। राजस्थान में हुई रिकार्ड तोड़ जीत मोदी के कारण ही संभव हुआ। मध्य प्रदेश में तो शिवराज सिंह चैहान की सरकार के आने के बारे में पहले से ही उम्मीद लगाई जा रही थी, पर चुनाव के ठीक पहले एक के बाद एक आ रहे घोटालों की खबरें शिवराज सरकार की वापसी की उम्मीदों को धूमिल कर रही थीं। कांग्रेस के अंदर की गुटबाजी समाप्त करने में राहुल गांधी ने सफलता पाई थी और वहां के सभी कांग्रेसी गुट एक साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे थे। जाहिर है शिवराज सिंह चैहान के लिए फिर पिछली विधानसभा के नतीजों को दुहराना मुश्किल लग रहा था, हालांकि तब भी राजनैतिक विश्लेषक कह रहे थे कि मामूली बढ़त के साथ ही सही, पर शिवराज सिंह चैहान की सरकार की वापसी होगा। पर नरेन्द्र मोदी की लहर ने मध्य प्रदेश में भाजपा की जीत का अंतर बहुत बढ़ा दिया। पिछले चुनाव का स्तर भी कांग्रेस बरकरार नहीं रख सकी और भाजपा को बहुत बेहतरीन सफलता हाथ लगी।

छत्तीसगढ़ की हालत भारतीय जनता पार्टी के लिए माकूल नहीं थी। 10 साल से मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह और उनकी सरकार के खिलाफ लोगों का असंतोष बढ़ रहा था। पर मोदी लहर ने वहां भी भाजपा का काम आसान कर दिया। कहते हैं कि पहले दौर के मतदान में भारतीय जनता पार्टी को काफी नुकसान हो रहा था। उसके बाद छत्तीसगढ़ में मोदी की ताबड़तोड़ सभाएं कराई गईं और पहले दौर के मतदान में हुए नुकसान की भरपाई करती हुई भारतीय जनता पार्टी ने दूसरे दौर मे ंअपनी जीत का ग्राफ इतना बढ़ाया, जिससे उसकी सरकार छत्तीसगढ़ में एक बार फिर आ गई।

आखिर नरेन्द्र मोदी में ऐसा क्या है, जो उन्हें अन्य नेताओं से अलग कर रही है? इसका एकमात्र जवाब यही हो सकता है ंकि वे बदलाव के प्रतीक बन गए हैं और देश की वर्तमान दशा से तंग लोगों को लगता है कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने से यह दशा शायद बदल जाएगी। यही कारण है कि भाजपा के अन्दर ही नहीं, भाजपा के बाहर के लोगों के बीच में भी नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ सबसे ऊपर है।

तीन राज्यो में तो मोदी लहर का लाभ उठाकर भारतीय जनता पार्टी अपनी सरकारें बना रही रही हैं, लेकिन दिल्ली इस मायने में अपवाद है कि सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी यहां भाजपा सरकार बनाने लायक जीत हासिल नहीं कर सकी है। यहां यदि मोदी के जादू ने भाजपा को गद्दी दिलाने में सफलता नहीं पाई, तो उसका कारण यह है कि बदलाव के एक अन्य प्रतीक पुरुष अरविंद केजरीवाल यहां मुख्यमंत्री पद पर दावा करते हुए चुनाव लड़ रहे थे। केजरीवाल जन लोकपाल कानून के लिए अन्ना के नेतृत्व में हो रहे आंदोलन की उपज हैं। उनकी आम आदमी पार्टी भी उसी आंदोलन से निकली है। दिल्ली में उस आंदोलन की तीव्रता सबसे ज्यादा थी।
आंदोलन की पार्टी होने के कारण आम आदमी पार्टी के प्रति दिल्ली के लोगों का जबर्दस्त झुकाव था, हालांकि इस झुकाव को लहर के रूप में नहीं देखा जा रहा था, पर इसका अंडरकरंट बहुत ही तेज था। सच कहा जाय, तो यदि अन्ना ने आम आदमी पार्टी के पक्ष में सिर्फ दो या तीन सभाएं दिल्ली में की होती, तो फिर केजरीवाल का मुख्यमंत्री बनना यहां तय था। लेकिन अन्ना ने केजरीवाल का समर्थन करने के बदले चुनाव अभियान के द्वारा ही चिट्ठीबाजी करके अपने आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी के लिए मुसीबतें खड़ी करने का ही काम किया।

अन्ना का समर्थन न मिलने के बावजूद भी आम आदमी पार्टी को पूर्ण बहुमत आ सकता था और अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बन सकते थे, लेकिन नरेन्द्र मोदी ने मरी सी भारतीय जनता पार्टी में जान फूंक डाली। शुरू में कांग्रेस की तरह भाजपा की स्थिति भी पस्त थी। पसंदीदा मुख्यमंत्रियों में केजरीवाल और शीला दीक्षित के नाम ही शीर्ष पर थे, लेकिन नरेन्द्र मोदी के भाषणों के बाद स्थिति बदलने लगी। दिल्ली में बदलाव के दो प्रतीक पुरुष (मोदी और केजरीवाल) आमने सामने थे। मोदी ने हाशिए पर धकेल दी गई भारतीय जनता पार्टी को फिर चुनाव की मुख्यधारा मे ला दिया और उसके बाद तो आम आदमी पार्टी के समर्थन का अंडरकरंट लहर बन नहीं पाया।

यानी मोदी के कारण आम आदमी पार्टी की बढ़त रुक गई, तो आम आदमी पार्टी के कारण भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस को पराजित कर 15 साल पहले गंवाई अपनी सरकार को दुबारा पाने का अपना सपना पूरा नहीं कर पाई। दिल्ली चुनाव में कोई मोदी की विफलता तलाश सकता है, लेकिन सच्चाई यह भी है कि आम आदमी पार्टी के समर्थकों का एक हिस्सा मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहता है। आप नेता योगेन्द्र यादव के अनुसार उन्होंने अपने सर्वेक्षणों मे पाया कि उनकी पार्टी का समर्थन करने वाले 31 फीसदी मतदाता नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। शायद यही कारण है कि आम आदमी पार्टी के नेताओं ने एक रणनीति के तहत अपने भाषणो और बयानों मे नरेन्द्र मोदी की आलोचना नहीं की, क्योंकि उन्हें डर लग रहा था कि ऐसा करने से उनके समर्थकों का मोदी समर्थक तबका उनसे नाराज हो सकता है। दूसरी तरफ नरेन्द्र मोदी को केजरीवाल पर निजी हमले करने पड़े, ताकि उनके समर्थक केजरीवाल का साथ छोड़ें।

इस तरह विधानसभाओं के चुनाव में नरेन्द्र मोदी और अरविंद केजरीवाल को बदलाव के प्रतीक के रूप में न केवल उभारा है, बल्कि उनकी बदलावकारी छवि से इनके नतीजे प्रभावित भी हुए हैं।(संवाद)