वह तो नरेन्द्र मोदी की अपील है, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का जिस तरह से सफाया हुआ है, उससे तो यही लगता है कि देश आने वाले कुछ वर्षो में कांग्रेस मुक्त भी हो सकता है। दिल्ली में कांग्रेस का लगभग सफाया करने का काम नरेन्द्र मोदी की पार्टी भाजपा ने नहीं, बल्कि अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने किया है। सच तो यह है कि आम आदमी पार्टी द्वारा कांग्रेस के सफाए के क्रम में भारतीय जनता पार्टी की सीटें अपने आप बढ़ गईं। गौर तलब हो कि पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को करीब साढ़े 36 फीसदी मत मिले थे, जो इस बार 3 फीसदी घट गए हैं। पर भाजपा की सीटें 23 से बढ़कर 31 हो गई हैं।

बात कांग्रेस की हो रही है। कांग्रेस को दिल्ली विधानसभा में मात्र 8 सीटें ही मिलीं। उनके जीते हुए उम्मीदवारों में से 4 तो मुसलमान ही हैं। अन्य सीटों पर भी कांग्रेस की विजय इसलिए हुई, क्योंकि वहां मुसलमानों के उसे पूरे वोट मिले। यानी यदि दिल्ली के मुस्लिम मतदाताओं ने अन्य मतदाताओं की तरह की मतदान किए होते, तो कांग्रेस शून्य पर भी दिल्ली में आउट हो सकती थी। बिहार की बात करें, तो वहां पिछले चुनाव में कांग्रेस को मात्र चार सीटें मिली थीं और उनमें से तीन मुस्लिम विधायक हैं। यानी इक्का दुक्का सीटों को जीतने के लिए कांग्रेस के पास मुस्लिम मतों का ही सहारा रह गया है।

यह कांग्रेस के लिए बहुत ही खतरनाक स्थिति है। कांग्रेस की पहुंच एक समय समाज के सभी तबकों तक रहती थी, लेकिन धीरे धीरे इसके समर्थन का सामाजिक आधार खिसकता जा रहा है और लगता है कि एक समुदाय के रूप में इसके अंतिम समर्थक मुस्लिम ही रह गए हैं।

यह सामाजिक शास्त्रियों के शोध का विषय है कि दिल्ली में मुसलमानों के मतदान की प्रवृत्ति गैर मुस्लिमों से भिन्न क्यों रही? मुुस्लिम भाजपा को पसंद नहीं करते। इसलिए भाजपा और कांग्रेस में किसी एक को चुनना है, तो वह कांग्रेस को चुनेंगे, लेकिन आम आदमी पार्टी के प्रति उसकी अरुचि क्यों?

सच यह भी है कि यदि कांग्रेस को अपने आपको बचाना है, तो उसे फिर सभी समुदायों में अपनी पैठ बढ़ानी होगी। सिर्फ एक मुस्लिम समुदाय के ठोस समर्थन से उसका भला नहीं होने वाला है। और सच यह भी है कि यदि कांग्रेस को सभी समुदायों के बीच अपनी पैठ बढ़ानी है, तो उसे समुदाय विशेष की राजनीति से भी परहेज करना होगा। उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव के पहले उसने मुस्लिम मत पाने के लिए जिस तरह से उनके आरक्षण का पासा फेका, वह बहुत ही मूर्खतापूर्ण था। उसने देश की 13 फीसदी आबादी को खुश करने के लिए 52 फीसदी ओबीसी को नाराज कर दिया। इसका खामियाजा उसे उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ा और देश के अन्य हिस्सों में भी उसने ओबीसी के बहुसंख्यक लोगो को नाराज कर दिया है। इसका खामियाजा उसे देश भर में भुगतना पड़ रहा है।

आज भारतीय राजनीति में जो कुछ भी गड़बड़ है, उसका स्रोत कांग्रेस दिखाई पड़ रही है। वंशवादी राजनीति ने देश की लोकतांत्रिक व्ष्यवस्था को अपनी पकड़ में इस तरह ले लिया है कि हम भारतीय लोकतंत्र को अब एक वंशवादी लोकतंत्र कह सकते हैं। इस गड़बड़ी का स्रोत कांग्रेस ही है। भ्रष्टाचार के मामले भी सबसे ज्यादा कांग्रेस नेताओं के खिलाफ ही आ रहे हैं। मामले आने के बाद कांग्रेस नेतृत्व उन आरोपों पर जो रवैया अपनाता है, उसके कारण जनमानस में उसकी छवि और भी खराब हो जाती है। कांग्रेस के अनेक नेताओं पर अनियमितता के आरोप लगे, लेकिन कलमाड़ी और अशोक चैहान के अलावा किसी के खिलाफ कांग्रेस नेतृत्व ने कार्रवाई नहीं की। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ राष्ट्रमंडल खेलों से संबंधित सबसे गंभीर भ्रष्टाचार लगे, लेकिन शीला के खिलाफ कांग्रेस ने कोई कार्रवाई नहीं की। केन्द्र सरकार द्वारा गठित शुंगलू कमिटी ने ही शीला को भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार माना। पर अपनी सरकार द्वारा बनाई गई एक कमिटी की रिपोर्ट को संज्ञान में लेते हुए कांग्रेस नेतृत्व ने शीला को मुख्यमंत्री के पद पर बनाये रखा। सलमान खुर्शीद पर जब भ्रष्टाचार के आरोप लगे, तो उन्हें कानून मंत्री से प्रमोट कर विदेश मंत्री बना दिया गया। कांग्रेस अध्यक्ष के दामाद राॅबर्ट वाडेरा पर भूमि घोटाले के आरोप लगाए, तो उनके एक घोटाले के खिलाफ कार्रवाई कर रहे एक अधिकारी अशोक खेमका की ऐसी तैसी हो गई और अब तो उनके खिलाफ कार्रवाई भी कांग्रेस की हरियाणा सरकार द्वारा की जा रही है।

वंशवादी राजनीति के खिलाफ लोगों का बढ़ रहा आक्रोश और भ्रष्टाचार के खिलाफ चिंता के अलावा बढ़ती महंगाई भी लोगांें के सामने ऐसी समस्या बनकर सामने आई है जिसके लिए लोग सीधा कांग्रेस को ही जिम्मेदार मान रहे हैं। महंगाई का भ्रष्टाचार से सीधा संबंध है। यदि बिजली उत्पादन कंपनियों में भारी भ्रष्टाचार होगा, तो भ्रष्टाचार की राशि बिजली उत्पादन को ही महंगा कर देगी। यदि तेल और गैस उत्पादक और शोधक कंपनियों में भ्रष्टाचार होगा, तेल और गैस की उत्पादन लागत बढ़ेगी और तेल व गैस की उपभोक्ता कीमतें भी बढ़ जाएंगी। कोयला खनन में भ्रष्टाचार होगा, तो कोयला भी महंगा होगा और उससे बनने वाली बिजली भी। कहने का मतलब चैतरफा भ्रष्टाचार से चैतरफा महंगाई। आज हमारे देश में यही हो रहा है। और इसके लिए लोग कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को जिम्मेदार मान रहे हैं। इसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ रहा है।

अब आम आदमी पार्टी पूरे देश में अपने उम्मीदवार खड़ी करने जा रही है। जो वर्ग भाजपा विरोधी होने के कारण अभी भी कांग्रेस के साथ रहने को मजबूर है, उसे एक नया विकल्प मिल रहा है। इस विकल्प को दिल्ली के लोगों ने अपनाया और कांग्रेस का सूफड़ा साफ हुआ। जो दिल्ली में हुआ, वह देश के अन्य हिस्सों में भी हो सकता है। अनेक जगह तो कांग्रेस वैसे भी साफ हो चुकी है। डर है अन्य क्षेत्रों मे जहां वह पहली या दूसरी ताकत है, आम आदमी पार्टी उसके आधार को उसी तरह अपनी ओर खींच ले, जैसा उसने दिल्ली में किया।(संवाद)