एक समय था, जब भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाल एनडीए में 24 दल शामिल थेण् लेकिन उसमें अब केवल 4 दल रह गए हैं। कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए का भी यही हाल है। उसके घटक भी उसका साथ छोड़ते जा रहे हैं। तृणमूल कांग्रेस उससे बाहर हो चुकी है। डीएमके भी उससे बाहर है। तेलंगाना का टीआरएस भी कभी उसका हिस्सा हुआ करता था। वह बहुत पहले उससे बाहर हो चुका है। तमिलनाडु का पीएमके भी यूपीए का हिस्सा था। वह भी उससे बहुूत पहले से ही बाहर है।

लेकिन विधानसभा चुनावों में शर्मनाक हार मिलने के बाद कांग्रेस अब अपने गठबंधन को बड़ा करने में सक्रिय हो गई है। विजय पाने के बाद भारतीय जनता पार्टी भी पूरे विश्वास के साथ अपने गठबंधन में नये साथियों को लाने की कोशिश में लग गई है। दोनो की नजरें आमामी लोकसभा चुनाव पर लग गई हैं।

कांग्रेस को लगता है कि वह उन पार्टियों को अपनी ओर ला सकती है, जो भारतीय जनता पार्टी के साथ नहीं जा सकतीं। कुछ पार्टियां ऐसी हैं, जो भाजपा के साथ पहले कभी रह चुकी हैं, लेकिन नरेन्द्र मोदी के कारण वह अब भाजपा के साथ नहीं जाना चाहतीं। ऐसी पार्टियों पर भी कांग्रेस की नजर है। खासकर नीतीश कुमार ऐसे नेता हैं, जो भाजपा को सांप्रदायिक नहीं मानते और उनका विरोध सिर्फ नरेन्द्र मोदी के साथ है। कांग्रेस की नजर बिहार में नीतीश कुमार से गठबंधन करने पर जरूर पड़ी हुई थी, लेकिन अब लगता है कि उसने लालू से ही गठबंधन करने का मन बना लिया है।

नीतीश कुमार को कांग्रेस के इस बदले हुए रुख का अंदाजा हो गया है। उन्होंने काग्रेस का सूफड़ा साफ होते हुए भी देख लिया है। इसलिए वे अब अपनी तरफ से भी कांगेस से दूरी बनाते दिख रहे हैं। अब नीतीश के पास बिहार में अकेला जाने के अलावा और कोई चारा नहीं दिखाई पड़ रहा है और वे उसी ओर जाते हुए दिखाई दे रहे हैं।

नीतीश दिल्ली में आप की विजय से उत्साहित दिखाई पड़ रहे हैं, हालांकि उनकी अपनी पार्टी का दिल्ली में दिवाला निकल गया। उनके उम्मीदवारों के कुल मिल ेमत दिल्ली में पड़े मतों के एक फीसदी से भी कम था। उन्हें यह सोचना चाहिए कि न तो उनका जनता दल (यू) आम आदमी पार्टी है और न ही वे अरविंद केजरीवाल हैं। बिहार में उनकी अपनी लोकप्रियता घटती जा रही है और वे हताशा में आकर कुख्यात अपराधियों को अपनी पार्टी में शामिल करवाए जा रहे हैं।

उधर लालू यादव जेल से बाहर आ चुके हैं। उनके पास अपना जातीय जनाधार है, जो उनके जेल जाने के कारण काफी आंदोलित हो रहा है। कांग्रेस को यह पता है और इसलिए वह अब लालू की पार्टी से ही बिहार मे गठबंधन करेगी। इसका सीधा नुकसान नीतीश कुमार को होगा। नीतीश भाजपा के से अलग होकर मुस्लिम जनाधार को अपनी ओर लाने की कोशिश कर रहे थे। गौरतलब है कि पिछले 23 सालों से बिहार का मुसलमान लालू के साथ है। कांग्रेस के साथ मिलकर नीतीश उस आधार को तोड़ सकते थे। लालू के जेल मे ंरहने के कारण उनका मुस्लिम आधार तोड़ना और भी आसान हो जाता। पर अब वे बाहर है और कांग्रेस उनके साथ जाएगी, फिर नीतीश के पास बहुत कम स्पेस रह जाता है।

भाजपा अपने साथियों की संख्या को बढ़ाने के लिए ओमप्रकाश चैटाला के दल को अपने साथ लाने की कोशिश कर रही है। वह चन्द्रबाबू नायडू को भी मिलाने की कोशिश कर रही है और यदुरप्पा को फिर से पार्टी मे वापस लाने का प्रयास कर रही है।(संवाद)