हम यह भी कह सकते हैं कि चीनी उद्योग को लगा यह घाव खुद उद्योग से जुड़े लोगों ने भी लगाया है, तो यह भी गलत नहीं होगा। इसका कारण है कि इस उद्योग से जुड़े लोग राजनेताओ के साथ मिलकर खेल करते दिखाई देते हैं। यह खेल कभी किसानों के गन्ना उत्पादों को केन्द्र में रखकर खेला जाता है, तो कभी इसके वित्त पोषण के लिए बैंकों को केन्द्र में रखकर खेला जाता है।

वोट बैंक की राजनीति से भी इस उद्योग को खासा नुकसान होता है। भारतीय चीनी मिल एसोसिएशन के निवर्तमान अध्यक्ष एम श्रीनिवासान ने हाल ही में कहा है कि नेताओं द्वारा खेली जाने वाली वोट बैंक की राजनीति के कारण गन्ना की कीमतें जरूरत से ज्यादा बढ़ा दी गई है। राज्य सरकारें चुनावों को ध्यान में रखते हुए गन्ना की कीमतों को बहुत बढ़ा देती हैं और ऐसा करते समय यह नहीं देखा जाता कि इससे चीनी उद्योग पर क्या असर पड़ रहा है और इसके कारण चीनी की लागत कितना बढ़ रही है।

श्रीनिवासन का कहना है कि केन्द्र सरकार ने गन्ना से साढ़े 9 फीसदी चीनी की रिकवरी को आधार मानकर चीनी की न्यूनतम खरीद कीमत 210 रुपये प्रति क्विंटल चीनी वर्ष 2013-14 के लिए तय कर दिया था।

गौरतलब है कि चीनी वर्ष का महीना अक्टूबर से शुरू होकर अगले साल सितंबर में समाप्त हो जाता है। केन्द्र सरकार के इस निर्णय का अनेक राज्यों के गन्ना किसानों ने विरोध करना शुरू कर दिया और वे धरना प्रदर्शन करने लगे। वे इस कीमत को 300 रुपये तक बढ़ाना चाह रहे थे और ऐसा करते समय वह यह देखना भी मंजूर नहीं कर रहे थे कि उनके गन्ने से चीनी की रिकवरी का अनुपात क्या है।

राज्य सरकारों ने भी कभी केन्द्र सरकार द्वारा तय दर को स्वीकार करने की जहमत नही उठाई और वे अपने अपने राज्यों मंे अपनी अपनी कीमतें खुद भी तय करने लगी। जाहिर है उनके द्वारा तय कीमतें और भी ऊंची हुआ करती हैं और वैसा करते समय वह यह नहीं देखती कि चीनी मिल मालिकों पर उसका क्या असर पड़ने वाला है। बढ़ी लागत के बोझ को कौन उठाएगा, इस सवाल पर भी सरकारों ने कभी ध्यान नहीं दिया।

इसका असर चीनी उद्योग पर पड़ रहा है। इसके कारण कभी चीनी के उत्पादन में भारी गिरावट आ जाती है, तो कभी स्टाॅक से चीनी ही नहीं उठाई जाती और उसके रखरखाव की समस्या पैदा हो जाती है। किसानों के बकाये भी चीनी मिलों पर बढ़ते जाते हैं। उसके कारण अनेक समस्याएं पैदा हो जाती हैं।

उत्तर प्रदेश देश का दूसरा सबसे बड़ा गन्न उत्पादक प्रदेश है। पिछले महीने उत्तर प्रदेश के 70 से 100 चीनी मिलों मंे 10 दिनों तक गन्ना की पेराई ही नहीं सकी। मिल मालिक पेराई करने से इनकार कर रहे थे, क्योंकि उनका कहना था कि गन्ना की कीमतें जो उत्तर प्रदेश सरकार ने तय की है, वह बहुत ज्यादा हैं।(संवाद)