सांसद हमेशा से इस लोकपाल बिल को पास करने में रुचि नहीं ले रहे थे। शिवसेना और समाजवादी पार्टी ने तो अभी भी इसका विरोध किया है। लेकिन अधिकांश सांसद, जिन्होंने इसके पक्ष में मतदान किया, इसे नहीं चाहते हैं। निजी बातचीत में वे यह कहते हुए सुनाई देते हैं कि उन्होंने इस बिल को पास कर अपनी मौत के वारंट पर दस्तखत कर डाला है। इसी से पता चलता है कि सांसदों के ऊपर इस बिल को पारित करने के लिए कितना दबाव पड़ रहा था।
पारित किए गए बिल में एक ऐसे लोकपाल का प्रावधान है, जिसके दायरे में प्रधानमंत्री भी रहेंगेे और केन्द्र सरकार की पूरी मशीनरी भी इसके अधिकार के दायरे में ही होगी। इसे भ्रष्टाचार मिटाने की दिशा में एक बड़ा कदम बताया जा रहा है। अभी यह देखना बाकी है कि यह लोकपाल कितना प्रभावी होता है। कुछ लोेग तो कह रहे हैं कि यह अपने आपमें एक समानांतर सरकार होगी।
लोकपाल बिल को सबसे पहले 1968 में पेश किया गया था। उसे अगले साल लोकसभा में पास भी कर दिया गया था। पर यह राज्यसभा से पास किया जाता, उसके पहले ही लोकसभा भंग हो गई और लोकसभा भंग होने के साथ ही यह बिल लैप्स हो गया। उसके बाद लोकपाल बिल को 1971, 1977, 1985, 1989, 1996, 1998, 2001, 2005 और 2008 में संसद में पेश किया गया। लेकिन कभी भी इसे संसद के दोनों सदनों द्वारा पास नहीं किया गया। सभी राजनैतिक पार्टियां भ्रष्टाचार के खिलाफ लंबी चैड़ी बातें करती रहीं। वे अपने चुनावी घोषणा पत्रों में इसे जगह देती रहीं, लेकिन इसे कानून का शक्ल नहीं दिया।
आखिरकार संसद ने इसे पास कैसे कर दिया? एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता का कहना है कि विवशता के कारण ही इसे पास किया गया। राजनैतिक वर्ग को महसूस हो गया था कि उनकी विश्वसनीयता आम लोगों के बीच नहीं रही और उसे फिर से हासिल करने के लिए इस विधेयक को पास करना जरूरी है। 2014 के लोकसभा चुनाव का दबाव उनपर बहुत पड़ रहा था। दिल्ली विधानसभा चुनाव मंे आम आदमी पार्टी की जीत ने कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के कान खड़े दिए। दोनों पार्टियों को उस जीत से गहरा सदमा पहुंचा है। उन्हें अहसास हो गया कि लोगों का धैर्य अब जवाब दे रहा है और वे बदलाव चाहते हैं। इसलिए दोनों पार्टियों ने लोकपास को पास करने में ही अपना भला समझा।
यूपीए को आखिर संसद में इसे फिर से क्यों लाना पड़ा? कांग्रेस पार्टी 4 राज्यों की विधानसभा के चुनावों में भारी हार पाने के कारण हताशा के दौर से गुजर रही है। उसे एक पार्टी के रूप में वजूद खो देने का खतरा पैदा हो गया हैै। लोकपाल पास करने के बाद कांग्रेस को लगता है कि अब वह जनता के पास इसे अपनी उपलब्धि बताकर जा सकती है और अन्य कल्याणकारी कार्यक्रमों के साथ इसे मिलाकर लोगों को समर्थन भी पा सकती है। उसे लगता है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में यह कानून उसके काम आएगा। लोकपाल के कारण राहुल गांधी और अन्ना हजारे में एकाएक दोस्ती हो गई दिखाई पड़ रही है। कांग्रेस इस लोकपाल बिल को पास कराकर अन्ना और केजरीवाल को अलग करने में सफल हो गई है।(संवाद)
लोकपाल बिल का श्रेय किसे मिले
राजनैतिक तुष्टिकरण या उपलब्धि
कल्याणी शंकर - 2013-12-20 10:33
लोकपाल बिल संसद से पारित हो गया। सवाल उठता है कि इसका श्रेय किसे दिया जाय? क्या इसका श्रेय यूपीए सरकार को दिया जाय या मुख्य विपक्षी भारतीय जनता पार्टी को या गांधीवादी अन्ना हजारे को? या इसका श्रेय आम आदमी पार्टी को दिया जाय, जिसने दिल्ली विधानसभा चुनाव में शानदार सफलता पाई और कांग्रेस व भाजपा की नींद हराम कर दी। कहा जाता है कि सफलता के अनेक बाप होते हैं और विफलता अनाथ होती है। लोकपाल के लिए भी यह कहावत सही साबित हो रही है। अनेक लोग इसका श्रेय ले रहे हैं, पर सच्चाई यही है कि यह जन दबाव के कारण संभव हो सका है।