आप नहीं चाहती थी कि वह किसी से समर्थन लेकर सरकार बनाए। वह दिल्ली में दुबारा चुनाव चाहती थी, क्योंकि मतदाताओं ने इस चुनाव में किसी को भी सरकार बनाने का जनादेश दिया ही नहीं था। एक स्पष्ट जनादेश के लिए दिल्ली विधानसभा का दुबारा चुनाव जरूरी है, पर कांग्रेस और भाजपा ने ऐसा माहौल खड़ा कर दिया कि अरविंद केजरीवाल को आखिरकार न चाहते हुए भी सरकार बनाने का निर्णय लेना पड़ा।
आखिर कांग्रेस और भाजपा केजरीवाल सरकार का गठन करवाकर साबित क्या करना चाहती है? यह स्पष्ट है। ये दोनों पार्टियां यह साबित करना चाहती हैं कि भ्रष्टाचार मिटाया ही नहीं जा सकता। ये दोनों यह भी साबित करना चाहती हैं कि बिजली की दर आधी नहीं की जा सकती और 700 लीटर पानी प्रत्येक घरों को मुफ्त में मुहैया नहीं कराया जा सकता। ये दोनों पार्टियां यह भी साबित करना चाहती हैं कि अरविंद केजरीवाल और उनके साथी सरकार चलाने की क्षमता नहीं रखते हैं। एक वाक्य में कहा जाय, तो दोनों पार्टियां अरविंद केजरीवाल का पर्दाफाश करना चाहती है कि वे जो कह रहे हैं, वह कर ही नहीं सकते।
सरकार बनाने की चुनौती देकर और केजरीवाल की अल्पमत सरकार का गठन करवाकर भाजपा और कांग्रेस ने खतरा मोल ले लिया है और इसमें सबसे ज्यादा खतरा तो कांग्रेस को ही है, क्योंकि उसने दिल्ली के उपराज्यपाल को खत लिखकर आम आदमी पार्टी की सरकार के गठन का समर्थन कर दिया है। कांग्रेस के दिल्ली प्रभारी शकील अहमद ने तो केजरीवाल को पत्र लिखकर उनके सभी 18 मुद्दों का समर्थन भी कर दिया है। जाहिर है, यदि कांग्रेस ने समर्थन वापस लिया और सरकार गिरी, तो किरकिरी कांग्रेस की ही होगी। केजरीवाल द्वारा किए गए वायदे पूरे न होने का दोष कांग्रेस के ऊपर ही जाएगा, केजरीवाल पर नहीं। जाहिर है कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी की सरकार का गठन करवाकर उसका पर्दाफाश करने की जो राजनीति खेली है, उसमें खुद कांग्रेेस का ही पर्दाफाश होने की पूरी संभावना है।
केजरीवाल द्वारा सरकार बनाने का मन बनाने के बाद कांग्रेस नेताओं की बेचैनी देखी जा सकती थी। पहले कांग्रेस कह रही थी कि हमारा समर्थन बिना शर्त है। अब शीला दीक्षित व अन्य कांग्रेसी नेता कह रहे हैं कि हमने बिना शर्त समर्थन नहीं दिया है। नवनियुक्त प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली कह रहे हैं कि उनकी पार्टी समर्थन वापस भी ले सकती है। पहले वे कह रहे थे कि 6 महीने तक समर्थन वापस लेने का सवाल ही नहीं उठता। दिल्ली के कांग्रेस प्रभारी अब कह रहे हैं कि हम अपने आठों विधायकों की राय लेंगे और देखेंगे कि वे क्या कहते हैं। तो इसका मतलब है कि बिना विधायकों की राय लिए हुए ही शकील अहमद ने केजरीवाल को सभी 18 मुद्दों पर समर्थन का खत लिख डाला था।
कांग्रेस ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना के आंदोलन को कम करके आंका। उसने आंदोलन में शामिल लोगों को पार्टी बनाकर चुनाव लड़ने की चुनौती दे डाली। पार्टी बन भी गई, लेकिन उस पार्टी को भी कम करके आंका। पहले तो उसे लगा कि आम आदमी पार्टी बनने से उनका काम आसान हो गया है, क्योंकि यह पार्टी कांग्रेस विरोधी मतों का बंटवारा करके भाजपा को हराने और उसको जिताने का काम करेगी। यहां भी वह गलत साबित हुई। आप के कारण उसका सूफड़ा साबित हुआ, भाजपा का नहीं। अब सरकार बनवाने का फैसला केजरीवाल टीम की क्षमता को कम करके आंकने का नतीजा है।
यह कहना कि केजरीवाल अपने वायदे को पूरा नहीं कर सकते, अपने आप में गलत है। केजरीवाल ने ऐसा कोई वायदा नहीं किया है, जिसे पूरा नहीं किया जा सकता। बिजली की दर आधी की जा सकती है। इसके लिए एक प्रशासनिक फैसला काफी है। उसके कारण पड़ने वाले वित्तीय बोझ को सहने की क्षमता दिल्ली सरकार के पास है। मुफृत पानी की व्यवस्था भी केजरीवाल की सरकार कर सकती है। इससे पड़ने वाले वित्तीय बोझ को सहने की क्षमता भी दिल्ली सरकार के पास है। ऐसा निर्णय करने के लिए सिर्फ एक प्रशासनिक आदेश की जरूरत है। जब खा़द्य सुरक्षा कानून लाकर 25 रुपये किलो चावल को दो रुपये और 16 रुपयें किलो गेहूं को एक रुपये किलो देश की आबादी के दो तिहाई को उपलब्ध कराया जा सकता है, तो दिल्ली की जनता को दिल्ली की प्रदेश सरकार मुफ्त पानी क्यों नहीं उपलब्ध करा सकती?
जाहिर है, ये दोनों निर्णय लेने में केजरीवाल सरकार को कोई दिक्कत नहीं होगी। हां, भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ेगी, लेकिन इसकी शुरुआत तो की ही जा सकती है। भ्रष्ट लोगों की धर पकड़ शुरू की जाएगी और आप नेता बार बार कह रहे हैं कि भ्रष्ट भाजपा और कांग्रेस नेताओं को वे प्राथमिकता से जेल भेजने का काम करेंगे। कितने लोगों को जेल भेजा जाएगा, इसका पता तो बाद में लगेगा, लेकिन एक नाम शीला दीक्षित का भी है, जिन्हें जेल भेजने की बात आप नेता लगातार कर रहे हैं। भ्रष्टाचार के लिप्त होने के कारण भ्रष्ट लोगों के खिलाफ दिल्ली सरकार एफआइआर तो दायर कर ही सकती है। एफआइआर दायर करने के साथ ही हंगामा शुरू हो जाएगा।
तो क्या अपने नेताओं को जेल जाते कांग्रेस देख पाएगी? क्या वे यह कहते हुए केजरीवाल सरकार से समर्थन वापस नहीं लेगी कि राजनैतिक कारणों से उनके नेताओं को फंसाया जा रहा है? फिर उसके बाद केजरीवाल की सरकार गिरेगी, तो फिर वह कैसे कहेगी कि केजरीवाल अपने वादों को पूरा नहीं कर पाए हैं, इसलिए अगले चुनाव में जनता उनके झांसे में नहीं आएं? भाजपा नेताओं पर भी मुकदमा चलने का खतरा है, क्योंकि राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान उनमें से भी कुछ उसकी आयोजन समिति में शामिल थे। केजरीवाल की सरकार पूर्ण बहुमत न होने के कारण शायद भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने अभियान को अपनी तार्किक परिणति तक नहीं पहुंचा पाए, लेकिन वैसा करते हुए गिरने पर शहादत का मेडल तो उसे मिल ही जाएगा। और कांग्रेस लोगों के सामने तब शायद मुह दिखाने लायक भी नहीं बचे। केजरीवाल को अक्षम साबित करने पर तुली कांग्रेस खुद ही ऐसे जाल में फंसने जा रही है, जिसमें उसे उलझकर रह जाना है। (संवाद)
दिल्ली में आप की सरकार
आग से खेल रही है कांग्रेस
उपेन्द्र प्रसाद - 2013-12-24 11:12
हमारे देश में वह हो रहा है, जिसके बारे में कुछ दिन पहले सोचा तक नहीं जा सकता था। त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में प्रमुख पार्टियां बहुमत जुटाकर सरकार बनाने के लिए एक से एक गंदा खेल खेला करती थीं। कोई विरोधी पार्टी सरकार न बना ले, इसके लिए भी मशक्कत की जाती थी। विधायकों की फौज को लेकर शहर शहर घूमा जाता था, ताकि विरोधी पार्टियों के प्रभाव से वे बचे रहें। लेकिन दिल्ली में विधानसभा चुनाव के बाद यहां की दो मुख्य पार्टियों ने नई गठित आम आदमी पार्टी को अल्पमत में होते हुए भी सरकार गठन को बाध्य कर दिया।