इसके कारण दिल्ली विधानसभा त्रिशंकु हो गई है। इसके कारण कांग्रेस को आम आदमी पार्टी को सरकार बनाने के लिए समर्थन करना पड़ा, क्योंकि यह दिल्ली में दुबारा विधानसभा चुनाव का सामना करना नहीं चाहती। भारतीय जनता पार्टी विधानसभा में विपक्ष की भूमिका निभा रही है। वह इसे कांग्रेस की बी टीम कह रही है।
आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के अनेक पूर्व मंत्रियों की सीटें जीत ली। 15 साल से दिल्ली की मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित खुद चुनाव हार गईं। उन्हें आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने करीब 26 हजार मतों से पराजित किया। आम आदमी पार्टी ने इस बात को भी गलत साबित कर दिया कि उसे सिर्फ मध्यवर्ग का ही समर्थन हासिल है। उसने दिल्ली के गरीब इलाकों में काफी बेहतर प्रदर्शन किया। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 12 सीटों में से 9 में उसने जीत हासिल कर ली। उसने यह साबित कर दिया िकवह गरीबों का प्रतिनिधित्व करती हैं। हालांकि मुसलमानों ने कांग्रेस का ही साथ दिया। कांग्रेस के 8 जीते हुए विधायकों में से 4 मुसलमान ही हैं। चार अन्य विधायकों मंे से दो सिख हैं। कांग्रेस के गैर मुस्लिम विधायक की जीत के पीछे भी मुसलमानों द्वारा कांग्रेस को दिया गया एकमुश्त समर्थन जिम्मेदार था।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सफलता से जाहिर होता है कि जहां कहीं भी गैर कांग्रेस गैर भाजपा पार्टियां है, उनकी सफलता की उम्मीद बेहतर है। आप की सफलता ने क्षेत्रीय पार्टियों को एक साथ आने की उम्मीदें भी बढ़ा दी हैं। इस तरह से तीसरे मोर्चे की संभावना अब प्रबल हो गई है।
पिछले दिनों तीसरे मोर्चे के गठन के लिए किए जा रहे प्रयास विफल हुए हैं। इसको लेकर दिल्ली में अक्टूबर महीने में एक सम्मेलन हुआ था। पर उसमें चुनाव के पहले किसी तरह की मोर्चेबंदी का खारिज कर दिया गया था। न तो समाजवादी पार्टी ने और न ही बहुजन समाज पार्टी ने तीसरे मोर्चे की चुनाव पूर्व गठबंधन के प्रति किसी प्रकार की प्रतिबद्धता दिखाई।
आप की सफलता से उत्साहित होकर उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक अब कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के विकल्प की तैयारी का विचार जाहिर कर रहे हैं। इस सिलसिले में वाइएसआर कांग्रेस के प्रमुख जगनमोहन रेड्डी के साथ नवीन पटनायक की बैठक हुई, जिसमें श्री पटनायक ने कांग्रेस और भाजपा दोनो से समान दूरी बनाए रखने की अपनी इच्छा का इजहार किया।
जगन ने उडि़सा के मुख्यमंत्री से आंध्र प्रदेश के विभाजन के खिलाफ समर्थन मांगा। नवीन ने उनकी मांग का तुरंत समर्थन किया। उड़ीसा का विभाजन करके कौशल नाम के प्रांत की मांग वहां भी की जा रही है। उनके अलावा जगन को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी आंध्र प्रदेश के विभाजन के खिलाफ उनकी मुहिम का समर्थन किया। ममता बनर्जी भी पश्चिम बंगाल के विभाजन की मांग के आंदोलनों का सामना कर रही हैं। वहां गोरखालैंड और कामतापुर राज्य की मांग की जा रही है।
जगन से हुई अपनी मुलाकात मे ममता बनर्जी ने अपने संघीय मोर्चे की चर्चा चलाई। ममता बनर्जी इसी नाम से क्षेत्रीय दलों का एक मोर्चा बनाना चाहती हैं। उन्होंने कुछ समय पहले कहा था कि वह कोई तीसरा मोर्चा नहीं बनाना चाहतीं और न ही कोई सेकुलर फ्रंट बनाना चाहती है, बल्कि उनकी रुचि यूनाइटेड इंडिया फ्रंट बनाने में है।
आगे इसका स्वरूप चाहे जैसा हो, लेकिन जगन ने नवीन और ममता से मिलकर एक गैर कांग्रेस गैर भाजपा मोर्चे के गठन की नींव डाल दी है। ये दोनों मुख्यमंत्री अपने अपने राज्यों का विभाजन नहीं चाहते। जगन ने इन दोनों से अपील की है कि संविधान की धारा 3 में संशोधन किया जाना चाहिए, ताकि कोई केन्द्र सरकार अपनी इच्छा से किसी राज्य का विभाजन नहीं कर सके। अभी तो बिना राज्य विधानसभा की सहमति के केन्द्र सरकार सिर्फ साधारण बहुमत से किसी राज्य का विभाजन कर नये राज्य का गठन कर सकती है। उनका कहना है कि विधानसभा की सहमति कम से कम दो तिहाई बहुमत से विभाजन के लिए सुनिश्चित किया जाना चाहिए। संसद में भी इसके लिए दो तिहाई सदस्यों के समर्थन को अपरिहार्य कर दिया जाना चाहिए। (संवाद)
कांग्रेस और भाजपा की चिंताएं बढ़ी
आप ने तीसरे मोर्चे की आस बढ़ा दी है
अशोक बी शर्मा - 2013-12-27 12:40
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सफलता ने देश भर में तीसरे मोर्चे की सफलता की उम्मीदें बढा दी है। यह पार्टी मात्र एक साल नई है और यह दिल्ली में सरकार बनाने जा रही है। उसे दिल्ली विधानसभा में 28 सीटें मिली, जबकि भाजपा को 31 सीटें और उसके सहयोगी अकाली दल को एक सीट मिली। कांग्रेस का तो सूफड़ा ही साफ हो गया, जिसे मात्र 8 सीटें ही मिल पाईं। गौरतलब है कि दिल्ली विधानसभा में मात्र 70 सदस्य होते हैं।