तब मैंने उनसे पूछा था कि जिस वायदे को वे पूरा नहीं कर सकते, उसे वह करते ही क्यों हैं? तो उनका जवाब था कि वायदा करते वक्त उन्हें पता नहीं था कि वे चुनाव जीतकर सरकार में आ ही जाएंगे।
अब आम आदमी पार्टी के सामने भी वही समस्या आ खड़ी हुई है। उन्होंने बहुत सारे वायदे कर डाले हैं। इसके कारण लोगों की उम्मीदें उनसे बढ़ी हुई हैं। वे सत्ता भी संभाल रहे हैं। अब उन्हें अपने वायदे पूरे करने हैं। पर लाख टके का सवाल है कि क्या वे वायदे पूरे कर पाएंगे?
आम आदमी पार्टी की जीत देश की राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण घटना है। देश की पूरी राजनीति ही इसके कारण हिल गई है। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस उसकी जीत से सकते में है। बिना पैसे और नाम के कोई चुनाव जीत भी सकता है, इस पर लोगों ने यकीन करना बंद कर दिया था। लेकिन जो असंभव लग रहा था, अब संभव हो गया है।
आम आदमी पार्टी की सरकार का कांग्रेस समर्थन कर रही है। वह इसलिए समर्थन कर रही है, ताकि लोग उस पर आरोप नहीं लगाए कि उसने सरकार बनने नहीं दी। दूसरा कारण यह है कि कांग्रेस को लगा कि केजरीवाल की सरकार बनने से उनकी आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय भूमिका में आ जाएगी और फिर देश भर में अपने उम्मीदवार खड़े करेगी, जिसका नुकसान भारतीय जनता पार्टी को होगा। केजरीवाल का उभार नरेन्द्र मोदी के उभरते कद को रोकने में भी सहायक हो सकता है। ऐसा ही कांग्रेस ने सोचा और केजरीवाल की सरकार को बिना शर्त समर्थन देने का फैसला कर डाला। इसके अलावा कांग्रेस के नवनिर्वाचित विधायक तुरंत चुनाव का सामना करने के लिए भी तैयार नहीं दिख रहे थे।
जहां तक भारतीय जनता पार्टी का सवाल है, तो उसके अनेक विधायकों को लग रहा है कि विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी होने के कारण उसे ही दिल्ली में सरकार बनानी चाहिए थी। विपक्ष में बैठना उन्हें अच्छा नहीं लग रहा है। मोदी समर्थकों को लग रहा है कि केजरीवाल मोदी को चुनौती दे सकते हैं, यदि उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में बेहतर का कर दिया। मोदी की तरह की केजरीवाल एक अच्छे वक्ता हैं और अपनी बात लोगों तक पहुंचाने की कला में उन्हें महारत प्राप्त है। यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी अब अपनी चुनावी रणनीति पर फिर से विचार कर रही है।
पर फिलहाल आज जो सबसे बड़ा सवाल उठाया जा रहा है वह यह है कि क्या केजरीवाल अपने वायदों को पूरा कर पाएंगे? यह सच है कि उन्होंने राजनीति के नियम बदल डाले हैं और सरकार बनने के बाद उनको शुरू शुरू में लोगों का विश्वास भी हासिल होगा। उनकी छोटी मोटी गलतियों को लोग यह कहकर नजरअंदाज कर देंगे कि वे नये हैं और उनको कुछ समय मिलना चाहिए।
प्रशासन से भी उनको सहयोग मिलने की उम्मीद है। जिस विधानसभा क्षेत्र से वे चुनाव जीते हैं, वहां सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों की बहुत भारी संख्या है। उसी क्षेत्र से उन्होंने शीला दीक्षित को लगभग 26 हजार मतों से पराजित कर डाला था। इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि सरकारी अमलों का सहयोग उन्हें सरकार चलाने में भी मिलेगा और वे चाहेंगे कि वह सरकार सफल हो।
केजरीवाल जनलोकायुक्त के गठन की भी कोशिश करेंगे। देश का मूड मजबूत लोकायुक्त और लोकपाल के पक्ष में है। इसलिए कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी अड़ंगा लगाने की कोशिश भी नहीं कर सकती। यदि उसने ऐसा किया तो जनता का सामना करना उसके लिए कठिन हो जाएगा। (संवाद)
क्या केजरीवाल लोगों की उम्मीदों को पूरा कर पाएंगे?
कल्याणी शंकर - 2013-12-27 12:43
दो दशक पहले जब वीपी सिंह की सरकार केन्द्र की सत्ता में आई थी, तो मेरी उस समय के वित्त मंत्री मधु दंडवते जी से एक दिलचस्प बातचीत हुई थी। वित्तमंत्री तब किसानों के 10 हजार करोड़ रुपये के लोन को माफ करने के लिए बजटीय गुना भाग करने में लगे हुए थे। उनके लिए वह काम बहुत ही मुश्किल साबित हो रहा था। अब चूंकि उनकी पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में कहा गया था कि उनकी पार्टी सत्ता में आने के बाद किसानों के लोन को माफ कर देगी, तो वैसा करना उनकी मजबूरी भी थी।