अखिलेश यादव आजकल यह कहते फिर रहे हैं कि वे भी एक आम आदमी हैं। वे अपने आपको अरविंद केजरीवाल से भी ज्यादा आम बताने की कोशिष कर रहे हैं, लेकिन लोगों को पता है कि वे उत्तर प्रदेश में बहुत बड़ी समस्या का सामना कर रहे हैं और चुनौतियों पर खरे उतरने के लिए उन्हें बहुत मेहनत की जरूरत है।

सवाल उठता है कि अखिलेश यादव करें तो क्या करें? उनके पिता मुलायम सिंह यादव और दो चाचा शिवपाल यादव व रामगोपाल यादव भी उनकी सरकार की आलोचना कर रहे हैं। सरकार की विफलताओं का जिम्मा वे तीनों नेता सीधे सीधे अखिलेश पर डाल देते हैं। कोई एक बार आलोचना करें, तो फिर भी बात कुछ समझ में आए, लेकिन वे तीनों अखिलेश सरकार की आलोचना लगातार किए जा रहे हैं। खराब कानून व्यवस्था का ठीकरा वे सीधे मुख्यमंत्री के ऊपर फोड़ देते हैं और जिस किसी भी मोर्चे पर सरकार विफल दिखाई देती है, उसके लिए सीधे अखिलेश यादव को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है।

2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने अखिलेश यादव को ही अपना चेहरा बनाया था। वह चुनाव अखिलेश के चेहरे पर ही जीता गया था। जीत के बाद उन्हें प्रदेश का मुख्यमंत्री भी बनाया गया। लेकिन अब पार्टी के सभी वरिष्ठ नेता उनकी आलोचना कर रहे हैं।

वे आलोचना तो कर ही रहे हैं, पर उन्हें अपने तरीके से काम भी करने नहीं दे रहे। मुख्यमंत्री अपने आपको इतने कमजोर पा रहे हैं कि वे अपने आदेश का पालन भी अपने सचिवालय से नहीं करवा पा रहे हैं।

सरकार में अनेक सत्ता केन्द्र बने हुए हैं और नौकरशाहों को समझ नहीं आता कि वे किसके आदेश का पालन करें और किसके आदेश का पालन न करें।

ऐसे भी मौके देखने को मिले, जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को खुद भी पता नहीं चला कि उनकी सरकार ने कौन से निर्णय ले लिए और सरकार में कौन से बदलाव कर डाले।

मुख्यमंत्री हमेशा मुस्कुराते दिख पड़ते हैं, लेकिन यह मुस्कान तो सिर्फ दिखावे के लिए है। उन्हें वरिष्ठ नेताओं को मनाने के लिए एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे तक जाना पड़ता है।

आज पूरा विपक्ष इस बात को मान रहा है कि अखिलेश यादव ने विकास को प्रदेश के राजनैतिक एजेंडे पर ला खड़ा किया है। वह प्रदेश में निवेश को बढ़ावा देने के लिए सचेष्ट हैं। वे कानून व्यवस्था की स्थिति बेहतर करने के लिए भी प्रयत्नशील हैं, लेकिन सरकार में अनेक सत्ता केन्द्र होने के कारण स्थिति खराब हो रही है।

अखिलेश यादव ने जब माफिया से राजनीतिक बने डीपी यादव को समाजवादी पार्टी में आने से रोक दिया था, तो उस समय उनकी बहुत प्रशंसा हुई थी। उसके कारण विधानसभा चुनाव में माहौल पार्टी के पक्ष मे ंबना था, लेकिन अब समाजवादी पार्टी में अतीक अहमद को शामिल कर लिया गया है और उन्हें सुलतानपुर से लोकसभा का उम्मीदवार बना दिया गया है। अब अखिलेश से अतीक अहमद केा सपा में प्रवेश के बारे में पूछा जाता है, तो उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं रहता।

अतीक अहमद एक अकेले ऐसे अपराधी नेता नहीं हैं, जिसे समाजवादी पार्टी में प्रवेश दिया गया है, बल्कि अंसारी परिवार के कुख्यात लोगों को भी पार्टी में लाया जा रहा है और अखिलेश यादव कुछ कर नहीं पा रहे हैं।

राजनैतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि हालांकि मुजफ्फरनगर के दंगे ने पार्टी का खासा नुकसान कर दिया है, लेकिन यदि अखिलेश को पूरी ताकत दे दी जाय, तो वे स्थिति सुधार भी सकते हैं। (संवाद)