पर प्रियंका ने कांग्रेस की राजनीति मे सक्रियता अब तक नहीं दिखाई है। समय समय पर उनके पार्टी की राजनीति में सक्रिय होने की खबरें उठती हैं और उनके खंडन के साथ उन खबरों का अंत भी हो जाता है। ऐसी बात नहीं है कि प्रियंका गांधी को राजनीति में रुचि नहीं है, पर उनके राजनीति में आने से राहुल गांधी पर असर पड़ सकता है। एक ही परिवार में सत्ता के दो केन्द्र उभरने का खतरा भी पैदा हो सकता है। परिवार की पूजा करने वाले कांग्रेसियों के बीच राहुल बनाम प्रियंका का प्रसंग छिड़ सकता है। इन सबके कारण पार्टी में अप्रिय स्थितियां पैदा हो सकती हैं और तब राहुल की स्थिति कमजोर हो सकती है।

जाहिर है, राहुल की स्थिति कांग्रेस के अंदर कमजोर न हो, इसके लिए प्रियंका ने खुद को कांग्रेस की राजनीति से बाहर कर रखा है अथवा सोनिया गांधी उन्हें राजनीति में नहीं आने देती। लेकिन कांग्रेस कार्यकत्र्ताओं व अनेक नेताओं की ओर से मांग की जाती रही है कि प्रियंका राजनीति में सक्रिय हों। लोकसभा चुनावों की समय मांग उठती है कि प्रियंका पार्टी का प्रचार करें, पर वह प्रचार अमेठी और रायबरेली से बाहर नहीं करतीं। कुछ महीने पहले तो उत्तर प्रदेश में कुछ कांग्रेसी नेताओ ने पोस्टर लगाकर प्रियंका के राजनीति में आने की मांग कर दी थी और यहां तक कह डाला था कि सोनिया गांधी के बीमार पड़ जाने के कारण प्रियंका को राहुल का साथ देने के लिए राजनीति में आना जरूरी है। पोस्टर निकालने वाले कांग्रेसियों के खिलाफ तब पार्टी ने कार्रवाई भी कर दी थी।

लेकिन अब लगता है कि उन कार्यकत्र्ताओं की मांग पूरी हो रही है। इसका एक बहुत बड़ा कारण यह है कि राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस आगे ब़ड़ती दिखाई नहीं पड़ रही है। महत्वपूर्ण राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों मे कांग्रेस एक के बाद एक हारती जा रही है। और वह हार की कोई साधारण नहीं होती, बल्कि अभूतपूर्व हार होती है। बिहार में राहुल गांधी ने जबर्दस्त मेहनत की थी, लेकिन वहां पार्टी को सिर्फ 4 विधानसभा सीटें मिलीं, जो उस राज्य में कांग्रेस का सबसे खराब प्रदर्शन था। उसके बाद तमिलनाडु में भी राहुल ने बहुत जोर लगाया, पर वहां करुणानिधि के समर्थन के बावजूद पार्टी को सिर्फ 5 सीटें मिलीं।

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को राहुल से बहुत उम्मीदें थीं। राहुल ने अपना सबकुछ वहां दांव पर लगा रखा था, पर कांग्रेस की करारी हार हुई। 2009 में 22 लोकसभा सीटो पर जीतने वाली कांग्रेस मात्र 28 विधानसभा सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और दिल्ली के चुनावों में भी कांग्रेस को मुह की खानी पड़ी। कर्नाटक की जीत पर कांग्रेसी अपने आपको कुछ सांत्वना दे सकते हैं, पर वहां कांग्रेस की जीत भाजपा में विभाजन के कारण हुई थी, न कि राहुल गांधी के नेतृत्व के कारण। इस बात को कांग्रेसी समझते हैं। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और मिजोरम जैसे छोटे छोटे राज्यों की जीत से कांग्रेस के पतन की कहानी समाप्त नहीं होती।

यानी कांग्रेस आज अभूतपूर्व संकट के दौर से गिर रही है। इसका तेजी से पतन हो रहा है। पतन के इस दौर में पार्टी अपना सब हथियार आजमाने को तैयार है और उनमे से एक हैं प्रियंका गांधी। पर सवाल यह उठता है कि क्या प्रियंका कांग्रेस की डूबती नैया को बचा पाएगी?

पहली बात तो यह है कि कांग्रेस का पतन राहुल गांधी के कारण नहीं हो रहा है। यह दूसरी बात है कि पतन के इस दौर में पार्टी को संभाल पाने में राहुल सफल नहीं हो पा रहे हैं। कांग्रेस का खात्मा कुछ ऐतिहासिक कारणों से हो रहा है। समाज और राजनीति में तेजी से बदलाव हो रहे हैं और कांग्रेस इस बदलाव के अनुसार अपने आपको बदलने को तैयार नहीं है। सत्ता में बने रहने के लिए कांग्रेस ने एक सामाजिक समीकरण बना रखा था, जिसके मुख्य भाग दलित और मुस्लिम हुआ करते थे। इनके साथ अगड़ी जातियों का गठबंधन था। पिछड़े वर्गां की कमजोर जातियां भी इसमे शामिल थीं। कांग्रेस का यह सामाजिक समीकरण ध्वस्त हो चुका है। 10 सालों तक मंडल की सिफारिशों पर कोई कार्रवाई नहीं करने के कारण कांग्रेस पिछड़े वर्गांे के कमजोर तबकों का समर्थन तो बहुत पहले खो चुकी थी, बाबरी मस्जिद पर अपनाए गए उसके रुख ने मुसलमानों को भी उससे दूर करना शुरू कर दिया। इस बीच मायावती के उभार ने उत्तर प्रदेश में उसके दलित आधार को भी क्षीण कर डाला है। उनके समर्थक अगड़ी जातियों के लोग भी उन्हें छोड़ते जा रहे हैं, क्योंकि सत्ता में रहना उनकी पहली पसंद है।

कांग्रेस समझ नहीं पा रही है कि बदल रहे हालात में वह अपने आपको कैसे बदले? उसके पास मौके बहुत थे, लेकिन केन्द्र की सत्ता में काबिज रहने के कारण उसे शायद समय ही नहीं मिल पाया कि विपरीत होती परिस्थितियों का सामना करने के लिए अपने आपको नये सिरे से तैयार करे। अपने को बदल पाने में विफल होने का एक बहुत बड़ा कारण यह भी है कि कांग्रेस के अंदर जमीन से जुड़े नेताओं का अभाव है और जो कुछ नेता समझने की क्षमता रखते हैं, पार्टी मे उनकी पूछ नहीं है। जिन तत्वों के कारण कांग्रेस कमजोर हुई, उन्हें तत्वों को प्रश्रय देने में भी कांग्रेस ने कभी कोई कंजूसी नहीं की। मायावती, मुलायम और लालू बिहार व उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को कमजोर करने मे सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं, लेकिन सत्ता में बने रहने के लिए कांग्रेस इन तीनों नेताओं को सीबीआई का संरक्षण प्रदान करती रही है।

अपनी आर्थिक नीतियों से भी कांग्रेस ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का काम किया है। एक तरफ तो वह अमीरों को बढ़ावा देने वाली नीतियां अपनाती है और दूसरी तरफ गरीबो के लिए सरकार का खजाना खोल देती है। अमीर परस्त नीतियों से गरीबों का नुकसान हो रहा है और उनके लिए खोले गए खजाने भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहे हैं। जाहिर है, इसके कारण कांग्रेस के खिलाफ लोगों में रोष उमड़ रहा है। फिर ऐसी हालत मे प्रियंका गांधी कांग्रेस का किस तरह कल्याण कर पाएगी? (संवाद)