आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर अपना क्या असर दिखाएगा, इसके बारे मे कुछ तो कहा नहीं जा सकता, लेकिन देश भर में यह हचचल पैदा कर रही है। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस को भी अब इसके कारण अपनी रणनीति बदलने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है। लोग इस समय उसकी आलोचना सुनना नहीं चाह रहे हैं और उसे कुछ और समय देना चाहते हैं।

क्या आप हड़बड़ी दिखा दिखा रही है? लोकसभा चुनाव के मात्र 4 महीने बचे हुए हैं। उसने उन दस राज्यों की पहचान कर ली है, जहां यह अपने आपको चुनाव लड़ने की स्थिति में पा रही है। देश की 542 में से 300 सीटो ंपर यह लड़ना चाहती है। इनमें से अधिकांश सीटें शहरी हैं और आप को शहरी फेनोमेनन ही माना जा रहा है। कुछ लोग आश्चर्य कर रहे हैं कि इतने समय में आप इतने बड़े मिशन पर क्यों जा रही है? सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह राष्ट्रीय स्तर पर अपने को उतार रही है, पर इसकी कोई राष्ट्रीय दृष्टि ही नहीं है।

इसमें कोई शक नहीं कि मिली सफलता को आप के नेता संभाल नहीं पा रहे हैं और एक दूसरे के विरोधी बयान जारी करने में लगे हुए हैं। इसके कारण आप के विजन के बारे में भ्रम पैदा हो गया है। उदाहरण के लिए योगेन्द्र यादव और कोटा की मांग कर रहे हें, तो मनीष सिसोदिया कुछ और बोल रहे हैं। उधर प्रशांता भूषण कश्मीर घाटी मे सेना की उपस्थिति को लेकर वहां के लोगों के बीच रायशुमारी की मांग करते हैं और बहुत जल्द ही अरविंद केजरीवाल उसे भूषण का निजी विचार मान लेते हैं। अफगानिस्तान से अब अमेरिका अपनी सेना हटा रहा है और कश्मीर मे आतंकवाद के खतरे और बढ़ने की आशंका है। वैसी स्थिति में वहां से सेना हटाने की मांग करना कहां तक समझदारी का काम है?

अरविंद केजरीवाल खुद मूल रूप से हरियाणा के हैं। वहां की खाप पंचायतों के बारे में उनकी क्या राय है, उस पर उन्होंने अपना मुह बंद कर रखा है। सुप्रीम कोर्ट तक ने इन खाप पंचायतों पर लगाम लगाने की बात की है। फिर भी इसपर अरविंद केजरीवाल अपनी कोई राय लेकर सामने नहीं आ रहे।

अरविंद केजरीवाल का एक सूत्री कार्यक्रम था भ्रष्टाचार का विरोध करना। अन्य मसलों पर उनकी क्या राय है, इसके बारे में कुछ पता नहीं। यह पार्टी अभी तक एक भ्रष्टाचार विरोधी एक सूत्री पार्टी बनी हुई है। सवाल उठता है कि आप की राय धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता को लेकर क्या है? धर्म के बारे में यह क्या सोचती है? कोटा की राजनीति पर इसका रुख क्या है? दिल्ली जैसे एक छोटे राज्य में अभियान चलाना एक बात है और पूरे देश में चुनाव लड़ना अलग बात है। दिल्ली मे तो पानी और बिजली सस्ता करने का वायदा ढेर सारे वोट दिला सकता है, लेकिन क्या यह राष्ट्रीय स्तर पर भी संभव है?

सच कहा जाय तो राष्ट्रीय राजनीति में आने के लिए इसके पास राष्ट्रीय एजेंडा होना चाहिए, जिसका अभाव दिखता है। अभी तक यह किसी भी मसले पर बोलने में अपनी झिझक दिखा रही है। इसे आर्थिक मामलों पर अपना मत लेकर सामने आना बाकी है। इसे यह भी बताना होगा कि इसकी विदेश नीति क्या होगी।

कुछ विश्लेषक ऐसे भी हैं, जिन्हें इसके राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली की सफलता दुहराने में संदेह है। दिल्ली में पार्टी अन्ना हजारे के आंदोलन के बल पर सत्ता में आई है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी के सामने 15 साल से सत्ता में रही एक पार्टी थी, जिसके खिलाफ लोगों में रोष था। इसके कारण यह नई पार्टी यहां सफल हुई, लेकिन अन्य राज्यों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता, क्योंकि वहां उसे अनेक क्षेत्रीय दलों का सामना करना पड़ेगा, जिनके पास अपना ठोस जनाधार है। इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर आप दिल्ली की सफलता को तो दुहरा नहीं सकती, पर वह कांग्रेस और भाजपा का काम कठिन जरूर कर सकती है। खासकर इसने नरेन्द्र मोदी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। (संवाद)