शपथ ग्रहण के बाद केजरीवाल सरकार ने पानी और बिजली के मसले पर ताबड़तोड़ निर्णय इसलिए ही किए, ताकि कांग्रेस द्वारा सरकार गिरा दिए जाने की स्थिति में वह अपनी कुछ उपलब्धियों के साथ फिर जनता के सामने जा सके। जिस तरह से पानी और बिजली के मोर्चे पर निर्णय किए गए, उसके कारण कांग्रेस को हिम्मत ही नहीं हो सकी कि वह इस सरकार को गिराने का काम कर सके।

लेकिन शपथ ग्रहण के बाद कांग्रेस की रणनीति काम करती दिखाई पड़ रही है। भले देश भर में आम आदमी पाटी्र को लेकर लोगों के मन में एक नया उत्साह पैदा हो गया हो, लेकिन दिल्ली की जनता अब इसके बारे में अपना मत इसके द्वारा किए गए गए काम के आधार पर ही करेगी। यह सरकार अपने किए गए वायदों के प्रति कितनी ईमानदार है, इसका पता अगले एक महीने तक चल जाएगा।

भ्रष्टाचार आम आदमी पार्टी के लिए सबसे बड़ा मुद्दा रहा है। सच तो यह है कि इस पार्टी का जन्म ही भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की कोख से हुआ है। पर शपथ ग्रहण के बाद इसने अपने वायदों के अनुसार राष्ट्र मंडल खेलों के दौरान हुए घोटालों के दोषियों के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई शुरू नहीं की है। इसके कारण इसके विरोधी खासकर भारतीय जनता पार्टी इसे कटघरे में खड़ा कर रहे हैं।

केन्द्र सरकार ने एक शुगलु कमिटी बनाई थी। उस कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में शीला दीक्षित सहित अनेक कांग्रेसी नेताओं को भ्रष्टाचार का दोषी पाया है। केजरीवाल सरकार से उम्मीद की जा रही थी कि वे मौजूदा कानूनों और व्यवस्था के तहत शुंगलू कमिटी द्वारा चिन्हित किए गए दोषियों के खिलाफ मुकदमा करें, लेकिन उन्होंने ऐसा अभी तक नहीं किया है। इसका एकमात्र कारण यही हो सकता है कि केजरीवाल की सरकार कांग्रेस के समर्थन पर टिकी हुई है और वे कांग्रेस को नाखुश नहीं करना चाहते। हो सकता है जिन 8 कांग्रेसी विधायकों के समर्थन पर केजरीवाल की सरकार टिकी हुई है, उनमें से कुछ या अनेक भी भ्रष्टाचार के खिलाफ की गई कार्रवाई के शिकार हो जायं।

केजरीवाल की सरकार को अगले 6 महीने तक विधानसभा का विश्वासमत हासिल करने की जरूरत नहीं और न ही इसके खिलाफ 6 महीने तक कोई अविश्वासमत प्रताव पेश किया जा सकता है। लेकिन वित्तीय विधेयक पर यह सरकार विधानसभा में पिट जाती है, तो संवैधानिक तौर पर यह सरकार का पतन माना जाएगा और सरकार गिर जाएगी। इसलिए यदि दिल्ली सरकार को अपना बजट पास करवाना है और अपने आपको बचाए रखना है, तो इसे अगले बजट सत्र में भी कांग्रेस के लगातार सहयोग की जरूरत पड़ती रहेगी। यही कारण है कि भ्रष्टाचार के मसले पर केजरीवाल ने कांग्रेस नेताओं के खिलाफ अपना रुख नर्म कर लिया है।

अपने प्रशासन को भ्रष्टाचार मुक्त करने में केजरीवाल लगे हुए हैं। यदि यहां उनकी सफलता देखी जाती है, तब दिल्ली के लोग उसे सफल मानेंगे और कांग्रेस नेताओं के खिलाफ कार्रवाई न करने के लिए केजरीवाल को माफ कर सकते हैं। पर सवाल यह है कि क्या प्रशासन से भ्रष्टाचार को मुक्त किया जा सकता है? यह कितना संभव है और कितना नहीं, इसका पता अगले महीने तक लग जाएगा। फिलहाल तो भ्रष्टाचार करने वाले लोग डरे हुए हैं, लेकिन उनका डर कितना लंबा खिंचता है, यह सरकार द्वारा आने वाले समय में उठाए गए कदमों पर निर्भर करता है।

कांग्रेसी नेताओं पर कार्रवाई को स्थगित रखने के पीछे जन लोकायुक्त के गठन के इंतजार का हवाला दिया जा रहा है। शायद अरविंद केजरीवाल चाहते हैं कि सारे मामले नये कानून के तहत बने लोकायुक्त को दिए जाए। इसके लिए उन्होंने विधानसभा का एक विशेष सत्र बुलाने की बात कह रखी है, लेकिन संविधान विशेषज्ञ मानते हैं कि दिल्ली विधानसभा में यह विधेयक लाने के पहले उसे केन्द्र सरकार की अनुमति लेनी होगी और केन्द्र सरकार कितनी जल्दी अथवा कितनी देरी से इसकी अनुमति देती है, यह उस पर निर्भर करता है, न कि अरविंद केजरीवाल पर। आगामी एक महीने में यह भी पता चल जाएगा कि एक मजबूत जनलोकपाल बन पाता है या नहीं।

पानी की समस्या बिजली की समस्या से भी ज्यादा गंभीर है। इसका कारण यह है कि अभी भी दिल्ली के एक बड़े हिस्से में दिल्ली जल बोर्ड का पाइप बिछा नहीं है। दूसरा कारण है कि 19 लाख पानी के वैध कनेक्शन के 10 लाख में मीटर ही नहीं लगे हैं। जिनमें मीटर लगे हैं, उनमें आधे तो खराब पड़े हुए हैं। इस तरह से दिल्ली के अधिकांश लोगों को मुफ्त पानी का लाभ मिलेगा ही नहीं। कनेक्शनों में मीटर लगवाकर दिल्ली सरकार इस समस्या का समाधान कर सकती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि 10 लाख कनेक्शनों में केजरीवाल सरकार एक महीने के भीतर मीटर लगवा पाती है या नहीं।

बिजली कंपनियों पर नकेल लगाने में सरकार कामयाब हो पाती है या नहीं, यह देखना भी दिलचस्प होगा। इसके बारे में भी एक महीने में तस्वीर साफ हो जाएगी। (संवाद)