बांग्लादेश की जातीय(राष्ट्रीय) संसद में 300 सदस्य हैं। उसके चुनाव का प्रमुख विपक्षी दल ने बहिष्कार किया और मतदान को भी तबाह करने की हर संभव कोशिश की। बहिष्कार का नतीजा यह हुआ कि 300 में से 153 सीटों पर तो सांसद निर्विरोध जीत गए और बाकी की अधिकांश सीटो पर भी सत्तारूढ़ अवामी लीग और उसके सहयोगियों की ही जीत हुई। अकेली शेख हसीना वाजेद की अवामी लीग के 232 लोग संसद में जीत कर आए हैं। मतदाताओं की भागीदारी भी मतदान में बहुत कम रही। विपक्ष ने तो मतदान नहीं ही किया, उसने बहिष्कार का आवाहन भी किया और उसके डर से अवामी लीग के समर्थक भी पूरी संख्या मंे मतदान करने नहीं आए। जब मतदान का नतीजा पहले से पता हो और मतदान क्षेत्र के रास्ते में हिंसा की आशंका हो, तो ज्यादातर लोग अपने घरों में ही बंद रहना पसंद करते हैं। यही बांग्लादेश में हुआ। 2009 के चुनाव में 87 फीसदी मतदाताओं ने वोट डाले थे। इस बार निर्वाचन आयोग के सूत्रों के अनुसार मात्र 38 फीसदी लोगों ने वोट डाले। यदि विपक्षी बांग्लादेश नेशनल पार्टी की बात मानें तो सही में मतदान 38 फीसदी से भी काफी कम हुआ था।

विपक्षी नेता खालेदा जिया इस चुनाव को चुनाव मानने से इनकार कर रही हैं। विदेशों में भी इस चुनाव के खिलाफ आवाजें उठ रही हैं। अमेरिका भी इसे चुनाव मानने से इनकार कर रहा है और यूरोप के अनेक देश भी इसे धोखा मान रहे हैं। उनका कहना है कि बांग्लादेश में फिर से चुनाव करवाए जाने चाहिए, जिसमें सभी पार्टियों की सहभागिता हो। ब्रिटेन तो कुछ ऐसा संकेत दे रहा है, जिससे लगता है कि वह बांग्लादेश को दिए जाने वाले मदद में कटौती कर सकता है। शेख हसीना वाजेद ने विदेशों में हो रही इन प्रतिक्रियाओं पर खुद कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है और कहा है कि उन देशों को बांग्लादेश के आंतरिक मामलों मंे हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने साफ साफ कहा है कि वह न तो घरेलू और न ही विदेशी दबावों के सामने घुटने टेकने के लिए तैयार है।

बांग्लादेश की पिछले राष्ट्रीय चुनावों मे काफी हिंसा हुई। हिंसा शुरू से ही हो रही थी और मतदान के दिन तो इसने सारे रिकार्ड ही तोड़ डाले। मतदान खतम होने के बाद भी हिंसा हो रही है। जमात ए इस्लामी के लोग हिंदुओं को खास निशाना बना रहे हैं, क्योंकि उन लोगो ने मतदान में हिस्सा लिया था। अब तक इस हिंसा में 300 लोग मारे जा चुके हैं। जिस दिन मतदान हुआ था, उस दिपन 18 लोग मारे गए थै। 100 मतदान केन्द्रों को जला डाला गया था। निजी और सरकारी संपत्तियों को काफी नुकसान पहुंचाया गया।। बांग्लादेश नेशनल पार्टी, जमात और हिफाजत ए इस्लाम ने अवामी लीग के समर्थकों, पुलिस और हिंदुओं पर हमला करने का काम किया है।

चुनाव के बाद भी स्थिति संभल नहीं पा रही है। विपक्ष बहुत ही आक्रामक है। लेकिन अब लग रहा है कि दोनों पक्ष एक दूसरे के साथ बातचीत को तैयार लग रहे है और तनाव खत्म करना चाहते हैं। जमात को लेकर अवामी लीग खासतौर से संवेदनशील है। इसके नेताओं पर 1971 की मुक्ति की लड़ाई के दौरान लोगों पर जुर्म ढहाने का आरोप है और उन पर इसके लिए मुकदमे भी चल रहे हैं। कुछ को सजा भी दी गई है। बीएनपी की नेता खालेदा जिया का उस जमान के साथ गठबंधन है। अब जिया कह रही हैं कि जमात के साथ उसका सबंध स्थाई नहीं था, बल्कि सामयिक था। जमात कह रहा है कि वह इस बात से नाखुश नहीं है कि खालिदा उसके बारे में क्या कह रही है।

हसीना ने भी खालिदा के साथ बातचीत की संभावनाओ से इनकार नहीं किया है। लेकिन उनका कहना है कि वे बातचीत में तभी शामिल होंगी, जब खालिदा जमात के साथ अपने सारे संबंधों को तोड़ लेंगी। पर खालिदा की समस्या यह है कि उनकी पार्टी जमात के संगठनों पर आश्रित है। चाहे जो भी मजबूरियां हो, बातचीत के द्वारा ही समस्या का समाधान निकल सकता है। (संवाद)