अब आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति में प्रवेश कर रही है। अभी कहा नहीं जा सकता कि देश की राजनीति में इसका क्या भविष्य होगा, लेकिन इतना तो तय है कि इसने सभी स्थापित पार्टियों को सकते में ला दिया है। उनके नेताओं के पसीने चलने लगे हैं। इसका असर यह हुआ है कि मुख्य धारा की पार्टियों को अब काम करने के अपने तरीकों को बदलना पड़ रहा है। उन्हें अपनी चुनावी राजनीति में भी बदलाव लाने पड़ रहे हैं।
अब उन्हें यह महसूस हो गया है कि लोग राजनैतिक वर्ग से चिढ़ गए हैं। वे राजनैतिक वर्ग के लोगों द्वारा आम आदमी की उपेक्षा किए जाने से नाराज हैं। भ्रष्टाचार ने भी उनका मोह इन राजनेताओं से भंग कर दिया है। आम आदमी पार्टी की सफलता के बाद अब पार्टियां उसका नकल करने लगी है। लेकिन नकल करने से शायद ही उनका कोई भला होगा। जरूरत इस बात की है कि पार्टियां आत्ममंथन करें और अपने आपको फिर से राजनीति के लिए तैयार करें।
आम आदमी पार्टी ने वीआईपी संस्कृति पर हमला बोला है। इसका लोगों ने स्वागत किया है। लोग इस संस्कृति के शिकार हो रहे थे। नवगठित पार्टी ने चुनावी राजनीति में पारदर्शिता लाने की भी यथासंभव कोशिश की है। भ्रष्टाचार के खिलाफ भी कदम उठाए हैं। यह सब राजनीति के लिए नया है।
आज देश के लोग एक भ्रष्टाचार मुक्त सरकार चाहते हैं। इसके लिए वे एक राजनैतिक विकल्प भी चाहते हैं। लेकिन यदि नेता के सादा जीवन के कारण किसी पार्टी की जीत होती है, तो ममता बनर्जी चुनाव कभी नहीं हारेंगीए क्योंकि वह एक बहुत ही साधारण साड़ी पहनती हैं। अपने पांव में हवाई चप्पल पहनती हैं और एक दो कमरे के मकान में रहती हैं। वहीं क्यों, उनके पूर्ववर्ती बुद्धदेव भट्टाचार्य भी सादगी भरा जीवन जी रहे थे। तब तो उन्हें पराजित ही नहीं होना चाहिए था। यही कारण है कि किसी की नकल करके कोई पार्टी अपने आपको मजबूत नहीं कर सकती। हम भारतीय जनता पार्टी का हश्र देख चुके हैं। वह 1998 में सत्ता में आई और कांग्रेस का नकल करने लगी। वह कांग्रेस की बी टीम के रूप में दिखाई दे रही थी। वह सफल नहीं हुई।
आम आदमी पार्टी की सफलता के बाद कांग्रेस की प्रतिक्रिया देखने लायक है। इसके उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने सार्वजनिक तौर पर कह डाला कि 128 साल पुरानी कांग्रेस को एक साल पुरानी आम आदमी पार्टी से सीखना चाहिए। अब केजरीवाल की तरह वह भी आम लोगों से अपनी पार्टी के घोषणापत्र के लिए सुझाव मांग रहे हैं। उम्मीदवारों की चयन के तरीके में भी बदलाव लाकर राहुल गांधी आम आदमी पार्टी की नकल करने की कोशिश कर रहे हैं। राहुल गांधी ने कांग्रेस शासित सभी राज्यों की सरकारों को कहा है कि वे अपने अपने राज्यों मंे लोकायुक्त कानून पास करें। आम आदमी पार्टी की जीत का एक असर यह हुआ है कि दिल्ली की तर्ज पर उत्तराखंड में भी अवैध खनन के लिए हेल्पलाइन नंबर लागू किया गया है। इन सबका स्वागत किया जाना चाहिए, पर ये सब पहले से ही होता रहना चाहिए था। फिर भी हम कह सकते हैं कि देर आयद दुरुस्त आयद।
आम आदमी पार्टी की जीत का असर भारतीय जनता पार्टी पर भी पड़ा है। उसके प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की भाषा बदल गई है। अब वे अपने को आम आदमी कहने लगे हैं। उन्हें पहले लग रहा था कि कांग्रेस को हराकर प्रधानमंत्री बनना आसान है, पर अब आम आदमी पार्टी के केजरीवाल का सामना भी उन्हें करना पड़ रहा है। राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजेे सिंधिया ने अपनी सुरक्षा के तामझाम भी कम कर लिए हैं और वे सरकारी बंगले की जगह अपने ही घर में रह रही हैं। भारतीय जनता पार्टी अब अपनी चुनावी रणनीति ही बदलने में लग गई है। (संवाद)
आम आदमी पार्टी ने खेल के नियम बदल डाले
अन्य पार्टियों को भी अब बदलना होगा
कल्याणी शंकर - 2014-01-17 11:48
कांग्रेस पार्टी ने 2004 में लोकसभा चुनाव के पहले नारा दिया था, "कांग्रेस के हाथ, आम आदमी के साथ"। कांग्रेस का चुनाव चिन्ह हाथ है। उसने अपने हाथ को आम आदमी के साथ जोड़कर तुकबंदी भिड़ा दी और एक नारा तैयार कर लिया। कांग्रेस का यह नारा भारतीय जनता पार्टी के शाइनिंग इंडिया वाले नारे पर भारी पड़ा। पिछले साल अरविंद केजरीवाल ने अपनी पार्टी का नाम ही आम आदमी पार्टी रख लिया है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी की जीत भी हो गई। कांग्रेस के समर्थन से उनकी सरकार भी बन गई है।