दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कह सकते हैं कि अपनी सरकार के कानून मंत्री के उस आचरण से वे शर्मिंदा नहीं हैं, लेकिन पूरा देश उस आचरण से अपने आपको शर्मिंदा महसूस कर रहा है। अफ्रीकी देशों के राजदूत भारत सरकार के अधिकारियों से मिलकर हमारी शर्मिंदगी को और भी बढ़ा रहे हैं। जब दिल्ली पुलिस को केन्द्र सरकार के अंदर रखने का निर्णय लिया गया था, तो उस समय इसका उद्देश्य यह नहीं था कि पुलिस से एक विशेष विदेशी समुदाय के लोगों की रक्षा करनी है, बल्कि इसके पीछे कारण यह था हमारे राजनयिक संबंधों को पुलिस के आचरण से कहीं खतरा न पहुंचे।

यदि दिल्ली सरकार के मंत्री इस संवेदनशील मसले को समझने में विफल हो रहे हैं, तो इसका कारण सिर्फ यह नहीं है कि वे नौसिखिए हैं, जैसा कि टीम अन्ना के एक सदस्य संतोष हेगड़े समझते हैं, बल्कि इसका एक कारण यह भी है कि उन्हें इस बात का गुमान है कि सिर्फ वे ही ईमानदार और पवित्र हैं और बाकी सब बेईमान हैं। वे सीधे लोकतंत्र की बात करते हैं, जिसमें लोगों को इकट्ठा करके वे निर्णय लेने को सही बताते हैं।

पर दुर्भाग्य से भीड़ को इकट्ठा करके उसके द्वारा करवाया गया निर्णय आमतौर पर संवेदशील निर्णय नहीं होता। आम आदमी पार्टी के एक नेता योगेन्द्र यादव यह मानते हैं कि ग्रामीण पंचायतों से हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वे दलितों के बारे में सही निर्णय लें। ऐसे मामलों में जाति अथवा वर्ग का पूर्वाग्रह सामने आ जाता है, जिसके कारण सही निर्णय नहीं लिए जा सकते।

दिल्ली के कानून मंत्री के मामले में जाति अथवा वर्ग का पूर्वाग्रह नहीं काम कर रहा था, पर मानना पडेगा कि नस्लभेद का पूर्वाग्रह वहां काम कर रहा था। काले अफ्रीकियों के खिलाफ नस्लभेद का वह मामला था। यह कोई रहस्य की बात नहीं है कि दिल्ली में अफ्रीका के काले लोगों के बारे में लोग खराब धारणा पालते हैं। दिल्ली में ही नहीं, देश के दूसरे क्षेत्रों में भी उनका उसी तरह देखा जाता है। भारत के लोग रंग को लेकर पूर्वाग्रह ग्रस्त रहे हैं। खासकर मध्यवर्ग में यह रंगभेद बहुत ज्यादा है। दिल्ली में काले वर्ण के लोगों को नशे की दवाइयों के धंधे में शामिल माना जाता है। उनकी महिलाओं के चरित्र को भी संदेह के साथ देखा जाता है। यह अनुचित है, पर सचाई यही है।

आम आदमी पार्टी मध्यवर्ग की पार्टी है। उसके नेता होने के नाते सोमनाथ भारती उन्हीं मध्यवर्गीय धारणाओं से प्रेरित रहे हैं। उसके कारण ही उन्होंने छापा मारा और वह भी बिना किसी वारंट के। लगता है कि जब दिल्ली पुलिस को केन्द्र के अधीन रखने का निर्णय किया गया था, तब निर्णय करने वाले लोगों ने यही सोचा होगा कि यह संभव है प्रदेश में एक ऐसी सरकार आ जाए, जो अपने अनाप शनाप निर्णयों को दिल्ली पुलिस के ऊपर थोपना शुरू कर दे। यह सच है कि ऐसे लोग केन्द्र की सत्ता में भी आ सकते हैं, लेकिन वे केन्द्र की सत्ता में एक गठबंधन के सहयोगी के रूप में ही आ सकते हैं और तब वे अपनी गलत धारणाओं के अनुसार सरकार की नीतियों को नहीं प्रभावित कर सकते।

मध्य वर्ग को शिक्षा और आर्थिक क्षेत्रों में भले ऊंची हैसियत प्राप्त हो, लेकिन उनके विचारों की दकियानूसी समाप्त नहीं हुई है। ऐतिहासिक रूप से देखें तो यह वर्ग फासीवाद का प्रशंसक होता है। इटली में हमने ऐसा देखा है। इटली में लोग मुसोलिनी की सिर्फ इसलिए प्रशंसा करते थे, क्योंकि उसके शासन में गाडि़यां समय से चलती थीं। हमने भारत में भी आपातकाल में देखा है कि किस तरह लोग इन्दिरा गांधी की तारीफ किया करते थे।

कुछ वैसा ही आज दिल्ली में देखने को मिल रहा है। दिल्ली का मध्यवर्ग आम आदमी पार्टी के नेताओं की अराजकता पर तालियां पीट रहा है। अब आम आदमी पार्टी की सरकार दिल्ली पुलिस को अपनी अधीन करने की मांग कर रही है और अपने कानून मंत्री द्वारा किए गए गैरकानूनी काम की भी फिक्र नहीं करती। दिल्ली पुलिस को चाहिए कि वह कानून मंत्री के खिलाफ कानून सम्मत कार्रवाई करे। (संवाद)