केरल की यूडीएफ सरकार पीने के पानी का निजीकरण करना चाह रही थी। लेकिन लोगों ने इसका विरोध करना शुरू किया। उनके विरोध के दबाव में राज्य सरकार को अपना यह कदम वापस लेना पड़ा।

केरल जल प्राधिकरण प्रदेश के लोगों को पीने के पानी की आपूर्ति करता है। इस प्राधिकरण का ही निजीकरण करने की योजना केरल की सरकार बना रही थी। पर इसका निजीकरण होते होते रह गया।

इसका निजीकरण करने के लिए केरल सरकार ने पिछले साल केरल पेय जल आपूर्ति कंपनी के गठन का एक आदेश जारी किया था। कंपनी के गठन के साथ ही प्राधिकरण उसमें समा जाता। इस तरह प्राधिकरण समाप्त हो जाता और उसकी जगह एक कंपनी पानी की आपूर्ति करती।

इस योजना पर काम 2012 में ही शुरू हो गया था। उसी समय सरकार ने जल आपूर्ति कंपनी के गठन की हरी झंडी देना शुरू कर दिया था। उसके बाद से ही लोगो में उस निर्णय के खिलाफ गुस्सा उमड़ने लगा था। गुस्से को देखते हुए प्रदेश सरकार ने मार्चए 2013 में ही एक स्पष्टीकरण जारी किया कि वह कंपनी सिर्फ कालोनियों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में ही पीने के पानी की आपूर्ति करेगी और पैक में पानी कम कीमतों पर उपलब्ध कराएगी।

लेकिन उससे भी लोगों का गुस्सा शांत नहीं हुआ। लोग अलग अलग तरीके से पीने के पानी की आपूर्ति के निजीकरण की कोशिशों का विरोध करते रहे। इसके कारण चांडी सरकार को अपना यह निर्णय पूरी तरह वापस लेना पड़ा। जाहिर है इससे प्रदेश सरकार के निजीकरण के प्रयासों को झटका लगा है।

प्रदेश सरकार ने एक आदेश जारी करते हुए कहा कि यह देखते हुए कि राज्य भर में लोग पीने के पानी की कंपनी के गठन का विरोध कर रहे हैं, राज्य सरकार अपने उस आदेश को खारिज करती है, जिसमें उक्त कंपनी के गठन का फैसला किया गया था।

यह कोई पहला मौका नहीं है, जब यूडीएफ सरकार की निजीकरण कोशिशों को झटका लगा है, क्योंकि लोगों का मत उसके खिलाफ था। आइएएस अधिकारियों की एक शक्तिशाली लाॅबी ने कोच्चि मेट्रो प्रोजेक्ट को दिल्ली मेट्रो रेल कार्पोरेशन को दिए जाने का भारी विरोध किया था। लेकिन जन दबाव में उस विरोध की भी हवा निकल गई थी।

चांडी सरकार निजीकरण के मामले में कबड्डी का खेल खेलती रही है और कभी आगे तो कभी पीछे होती रही है। निजीकरण की लाॅबी नहीं चाहती थी कि ई ईश्वरन के नेतृत्व में कोच्चि मेट्रो प्रोजेक्ट पर काम शुरू होए जबकि श्री ईश्वरन से सफलता पूर्वक दिल्ली मेट्रो को अंजाम पर पहुंचाया है। कोंकन रेल प्रोजेक्ट भी ईश्वरन के नेतृत्व में ही सफल हुआ। इसके कारण उनकी दुनिया भर में प्रतिष्ठा बढ़ी है। जाहिर है कि केरल के लोग कोच्चि मेट्रो प्रोजेक्ट से ईश्वरन को बाहर रखने के प्रयासों का विरोध कर रहे थे और उस विरोध के कारण अंततः यह प्रोजेक्ट ईश्वरन के नेतृत्व वाले दिल्ली मेट्रो को ही दिया गया।

अब पब्लिक सेक्टर की वकालत करने वाले लोग उत्साह में हैं। दूसरी तरफ निजीकरण को बढ़ावा देने वाली लाॅबी मायूस है। लेकिन वे अभी भी पूरी तरह निराश नहीं हुए हैं। आने वाले समय में निजीकरण के लिए उनका प्रयास फिर शुरू होगा। (संवाद)