जबतक डीएमके केन्द्र में यूपीए सराकर में था, करुणानिधि ने अपने बड़े बेटे अलागिरी को केन्द्र में मंत्री बनाकर प्रदेश की राजनीति से दूर रखा हुआ था। तब स्टालिन प्रदेश में पार्टी की कमान संभाल रहे थे। अब केन्द्र की सरकार से बाहर आकर अलागिरी अपनी ताकत का प्रदर्शन तमिलनाडु में करते रहते हैं। वे दक्षिण तमिलनाडु में डीएमके के कमांडर हैं और वे अपने छोटे भाई स्टालिन से बहुत दिनों से जलते रहे है। स्टालिन के हाथों में उत्तरी तमिलनाडु की कमान है। स्टालिन चेन्नई के मेयर भी रह चुके हैं। अलागिरी ने अनेक अवसरों पर कहा है कि अपने छोटे भाई को वह अपना नेता नहीं मान सकते। लेकिन करुणानिधि के अधिक उम्र और खराब स्वास्थ्य को देखते हुए उनकी जगह किसी को तो पार्टी का काम देखना है और यह काम स्टालिन देखा करते हैं।

करुणानिधि के दोनों बेटों के बीच यह युद्ध अब सार्वजनिक तौर पर लड़ा जा रहा है और आने वाले समय में इसका पार्टी पर बुरा प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। इस समय वैसे भी प्रदेश में पार्टी अच्छी स्थिति में नहीं है। वह न तो केन्द्र मंे और न ही प्रदेश की सरकार में सत्ता में है। जयललिता ने करुणानिधि के ऊपर बढ़त हासिल कर रखी है। उधर डीएमके 2जी के मुकदमों से परेशान है। इस मुकदमे में ए राजा तो फंसे हैं ही, करुणानिधि की बेटी कणिमोरी और पत्नी दयालु अम्मल भी फंसी हुई हैं। करुणानिधि 90 साल के हो गए हैं और उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता जा रहा है। वे अपने बेटों और बेटी के बीच हो रहे झगडों को सुलटाने में विफल साबित हो रहे हैं। बेटी कणिमोरी की ओर से तो कोई समस्या नहीं आ रही है, क्योंकि वह स्टालिन का नेतृत्व स्वीकार करने के लिए तैयार हैं, पर बड़ा बेटा अलागिरी अपने छोटे भाई को अपना नेता मानने को तैयार नहीं है।

पिछले 15 सालों से करुणानिधि स्टालिन को ही अपना उत्तराधिकारी बनाने की तैयारी कर रहे थे। वे उन्हीं को अपना उत्तराधिकरी बनाना चाहते हैं। पर बड़ा बेटा मानने को तैयार नहीं है। अब यदि अपने छोटे बेटे को स्थापित करने के लिए उन्होंनंे अपने बड़े बेटे को पार्टी से निकाल दिया, तो इसका बहुत बुरा असर पार्टी पर पड़ सकता है। अलागिरी बाहर निकाले जाने के बाद पार्टी को भारी नुकसाना पहुंचा सकते हैं।

डीएमके तमिलनाडृ की राजनीति में अलग थलग होने का खतरा उठा रही है। इस समय वही अकेली है। पिछले चुनावों में करुणानिधि ने अन्य पार्टियों के साथ गठबंधन बनाया था। इस समय वे कांग्रेस के साथ कोइै ताल्लुकात नहीं रखना चाहते और स्थानीय पार्टियों का साथ भी उन्हें नहीं मिल रहा है। दूसरी ओर उनकी प्रतिद्वंद्वी जयललिता बहुत उत्साह के साथ चुनाव लड़ रही हैं। वह प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रही हैं। उन्होंने वाम दलों से गठबंधन भी कर रखा है और प्रदेश की सभी सीटों पर जीत दिलाने की मांग लोगों से कर रही है। त्रिशंकु लोकसभा भी स्थिति में चुनाव के बाद यूपीए और एनडीए दोनों से गठबंधन करने के विकल्प पर काम कर रही हैं। (संवाद)