गौरतलब है कि 1996 में जयराम रमेश बेरोजगार थे, तो उन्हें वित्त मंत्री की हैसियत से चिदंबरम ने अपना सलाहकार बना लिया था। उसके बाद ही वे राजनीति में आए। यदि चिदंबरम ने उस समय उन्हें सलाहकार नहीं बनाया होता, तो पता नही आज जयराम रमेश कहां होते। पर वही रमेश आज पी चिदंबरम के खिलाफ मोर्चेबंदी में शामिल है। उन्होंने पी चिदबरम के मितव्ययिता अभियान से जुड़े निर्णयों के खिलाफ प्रधानमंत्री को चिट्ठी तक लिखी।

राजकोषीय घाटा कम करने के लिए पी चिदंबरम ने प्रयास तेज कर दिए थे। सरकार भारी राजकोषीय संकट के दौर से गुजर रही है। उसे दूर करने के लिए सरकारी खर्च पर लगाम लगाने के हरसंभव प्रयास किए जा रहे थे। पर केन्द्र सरकार के हाल के अनेक निर्णयों ने वित्त मंत्री के प्रयासों पर पानी फेरने का काम किया है।

एक निर्णय तो सब्सिडी वाले सिलिंडरों की संख्या बढ़ाने से संबंधित है। केन्द्र सरकार ने यह संख्या 9 से बढ़ाकर 12 कर दी है। वित्त मंत्रालय इसके लिए तैयार नहीं हो रहा था। पर उस पर यह निर्णय थोप दिया गया है। राहुल गांधी ने कांग्रेस के सम्मेलन में खुलेआम कहा था कि उनका काम 9 सिलिंडर से नहीं चलेगा और उन्हें 12 चाहिए। उनकी इच्छा पूरी कर दी गई, लेकिन इसके कारण वित्त मंत्रालय का राजकोषीय संतुलन बनाने का काम कठिन हो गया है।

यह साफ दिखाई दे रहा है कि पी चिदंबरम के प्रयासों की धज्जियां उड़ाने वाले मंत्रियों और नौकरशाहों को राहुल गांधी का समर्थन हासिल है। राहुल गांधी ही क्यों, सोनिया गांधी ने पी चिदंबरम की देश में अनुपस्थिति के दौरान सोने पर आयात शुल्क कम करने का आदेश वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा को दे डाला। सोने के आयात को कम करके पी चिदंबरम अनेक लक्ष्य हासिल करना चाह रहे थे। इसके पीछे रु्रपये की गिरती विनिमय दर को संभालने का लक्ष्य भी शामिल था और भुगतान संतुलन को सुधारने का उद्देश्य भी। लेकिन खुद सोनिया गांधी ने उस निर्णय के खिलाफ वाणिज्य मंत्री को अपने फरमान सुना दिए।

अभी हालत यह है कि यूपीए सरकार के बड़े लोग पी चिदंबरम से अपनी दूरी बना रहे हैं। इसका एक कारण कांग्रेस आलाकमान द्वारा उन्हें राज्य सभा के लिए नामित नहीं करना भी है। चिदंबरम ने घोषणा कर रखी है कि अगला लोकसभा चुनाव वे नहीं लड़ेगे। इसलिए उम्मीद की जा रही थी कि उन्हें राज्य सभा के लिए नामित किया जाएगा। पर वैसा नहीं किया गया। आने वाले समय कांग्रेस का ग्राफ और भी नीचे जाने की उम्मीद है। इसलिए भविष्य में उनके कांग्रेस द्वारा राज्य सभा में भेजे जाने की उम्मीद भी बहुत ही कम है।

राजकोषीय घाटे को लेकर वित्त मंत्री चिदंबरम की चिंता को केन्द्र सरकार किस रूप में देखती है, इसका एक उदाहरण केन्द्रीय कर्मचारियों के महंगाई भत्ते को 10 फीसदी बढ़ाया जाना है। इसके कारण केन्द्र ही नहीं, बल्कि राज्य सरकारों के राजकोष पर भी भारी दबाव पड़ेगा। अनेक राज्यों की सरकारों की माली हालत काफी खराब है। उन राज्यों को भी केन्द्र के बराबर महंगाई भत्ता बढ़ाना पड़ेगा। कुछ राज्य सरकारें तो सही समय पर कर्मचारियों को वेतन तक नहीं दे पा रही हैं। सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि उनका क्या होगा।(संवाद)