गौरतलब है कि चंद्रशेखरन की हत्या में सीपीएम के नेताओं पर आरोप लगे हैं। उसके कुछ सीनियर नेता तो इस आरोप से मुक्त हो गए हैं, लेकिन कुछ स्थानीय स्तर के नेताओं को इसमें सजा सुना दी गई है। चंद्रशेखरन की पत्नी अदालत द्वारा सुनाई गई सजा से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं। उन्हें लगता है कि पुलिस ने सही तरीके से जांच नहीं की और कुछ दोषी अभी भी कानून से बचे हुए हैं। सबको सजा सुनिश्चित कराने के लिए मृत नेता की पत्नी रेमा ने अनशन किया था। उस अनशन को भारी समर्थन हासिल हुआ था, पर सरकार सीबीआई जांच की मांग को लेकर बहुत सकारात्मक नहीं है, हालांकि अनशन तुड़वाने के लिए उसने उस मांग से सैद्धांतिक तौर पर सहमत होने की बात स्वीकार कर ली है।

अच्युतानंदन की इस चिटठी इसलिए काफी मायने रखती है, क्योंकि प्रदेश की पार्टी ईकाई इस मामले को आगे तूल दिए जाने के पक्ष तें नहीं है। उसे लगता है कि इस मामले को जितना तूल दिया जाएगा, सीपीएम को उतना ही नुकसान होगा। लोकसभा चुनाव सिर पर है। ऐसे माहौल में सीपीएम पर इस मसले का खराब असर पड़ सकता है। सच तो यह है कि अच्युतानंदन की चिट्ठी ने सीपीएम की स्थिति और भी खराब कर दी है। इसके कारण पार्टी में हलचल मची हुई है।

इसके पहले भी वीएस अच्युतानंदन के बयानों से सीपीएम को अनेक बार परेशानी का सामना करना पड़ा है। इसके कारण राज्य ईकाई में बढ़े विवादों को शांत करने के लिए कई बार सीपीएम के केन्द्रीय नेताओं को हस्तक्षेप करना पड़ा है। प्रदेश की ईकाई के सचिव से अच्युतानंदन की ठनी रहती है। बहुत मुश्किल से दोनों के बीच तालमेल बैठाए रखने की कोशिश पार्टी करती रहती है। इस बार फिर स्थिति बिगड़ गई है।

अच्युतानंदन के विरोधी एक बार फिर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई किए जाने की मांग कर रहे हैं, पर ऐसा करना केन्द्रीय नेतृत्व के लिए आसान नहीं है। चुनाव सिर पर हैं और अच्युतानंदन पार्टी के सबसे लोकप्रिय नेता हैं। उनके खिलाफ की गई किसी भी कार्रवाई से जनता में गलत संदेश जाएगा और चुनावों के दौरान इसका खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ेगा।

अच्युतानंदन भी अपनी इस स्थिति को समझते हैं। यही कारण है कि जब भी उन्हे ंठीक लगता है, वे पार्टी के अंदर विवाद खड़ा कर देते हैं। फिलहाल उनके विरोधी उनके खिलाफ सक्रिय हो गए हैं और वे इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि केन्द्रीय नेतृत्व उनके खिलाफ क्या निर्णय लेता है।

वीएस के विरोधी चाहते हैं कि लोकसभा चुनाव के पहले ही उनके खिलाफ कार्रवाई हो। उन्हें लगता है कि उनके खिलाफ कार्रवाइ्र नहीं किए जाने से गलत संदेश जाएगा और गलत नतीजे जाने से भी पार्टी की चुनावी संभावनाओं पर खराब असर पड़ सकता है। इसलिए वे बिना विलंब के अनुशासनात्मक कार्रवाई किए जाने के पक्ष में है।

पर पार्टी का केन्द्रीय नेतृत्च चाहता है कि अच्युतानंदन के बारे में फैसला चुनाव के बाद हो। खुद अच्युतानंदन पत्र लिखने के बाद पार्टी की गतिविधियों को देख रहे हैं। यदि पार्टी ने उनके खिलाफ कार्रवाई की तो वे टीपी चंद्रशेखरन की पार्टी आरएमपी में शामिल हो सकते हैं। आरएमपी के नेता और कार्यकत्र्ता भी यही चाहेंगे कि अच्युतानंदन उनका नेतृत्व करें।

खास बात यह है कि पार्टी ने अच्युतानंदन को रेमा के अनशन से अलग रखने की भरसक कोशिश की थी। पार्टी ने उन्हें सख्त हिदायत दी थी कि वे रेमा के अनशन स्थल पर नहीं जाएं। उन्होंने पार्टी के उस आदेश का पालन भी किया। वे खुद रेमा के अनशन के स्थल पर नहीं गए, लेकिन जिस दिन रेमा का अनशन टूटा उसकी सुबह ही उन्होंने मुख्यमंत्री को वह पत्र लिख डाला, जिसमें रेमा की सीबीआई जांच की मांग का समर्थन किया गया था।

कांग्रेस ने मौके का फायदा उटाने में तनिक भी समय नहीं गंवाया। गृहमंत्री रमेश चेनिंथाला ने उस पत्र को एक प्रेस कान्फ्रंेस में जारी कर दिया और कहा कि आगे की कार्रवाई के लिए पत्र को उपयुक्त अधिकारियों के पास भेज दिया गया है। (संवाद)