इस मामले में जांच अधिकारी कैसे केन्द्रीय तेल मंत्री के खिलाफ जांच करता है और किस तरह से कीमतों को तय करने से संबंधित दस्तावेजों को हासिल करता है, यह देखना दिलचस्प होगा। लेकिन यह तय है कि केजरीवाल ने अपने इस निर्णय से देश को चैंका दिया है। उनके द्वारा किए गए मुकदमे को हल्केपन से नहीं लिया जा सकता, क्योंकि जिन लोगों की शिकायत पर यह मुकदमा दर्ज किया गया है, वे कोई मामूली लोग नहीं है। बंगाल की खाड़ी से उस गैस का दोहन होता है और हमारी जल सेना के प्रमुख रह चुके एक प्रतिष्ठित व्यक्ति ने वह शिकायत की है। शिकायत करने वालों में एक तो केन्द्र सरकार के पूर्व कैबिनेट सचिव हैं और एक अन्य भी केन्द्र सरकार में सचिव रह चुके हैं।

जाहिर है, जिन लोगों ने केजरीवाल से शिकायत की वे जानकार लोग हैं और उन्हें पता होगा कि किस तरह का भ्रष्टाचार कीमत के निर्धारण में हुआ है। उनका कहना है कि एक यूनिट गैस के उत्पादन में एक अमेरिकी डाॅलर का भ खर्च नहीं आता है, पर उसकी कीमत 8 अमेरिकी डाॅलर प्रति यूनिट रखी गई है, जो आगामी एक अप्रैल से लागू होगा। फिलहाल उसकी कीमत 4 डाॅलर प्रति यूनिट से थोड़ा ज्यादा है।

जाहिर है आगामी 1 अप्रैल से गैस की कीमत दो गुनी हो जाएगी, जब देश में त्राहि त्राहि मच सकती है, क्योंकि गैस की कीमत दोगनी होने का मतलब है चैतरफा महंगाई। गैस की सीधे उपभोक्ताओं की जेब पर यह महंगाई भारी तो पड़ेगी ही, इसके कारण परिवहन महंगा हो जाएगा। गैस से खाद भी बनते हैं। उनकी कीमत भी दोगनी हो सकती है। गैस से बिजली का उत्पादन भी होता है। जाहिर है बिजली भी महंगी हो जाएगी। खाद, बिजली और परिवहन महंगे होने के कारण सबकुछ महंगा हो जाएगा और इस महंगाई के लिए यदि वह कथित भ्रष्टाचार जिम्मेदार होगा, जिसके खिलाफ केजरीवाल ने मुकदमा दर्ज कराया है।

पता नहीं जांच का क्या नतीजा निकलता है। सबसे पहले तो लगता है कि जिनके खिलाफ मुकदमा हुआ है, उनमें से कोई अदालत मे जाकर उसे अवैध साबित करने की कोशिश करेगा। केजरीवाल ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर प्रस्तावित कीमत को प्रभावी बनाने से रोकने की अपील भी की है। उन्होंने कहा है कि जबतक जांच पूरी नहीं हो जाती, केन्द्र सरकार कीमत बढ़ाने का आदेश जारी नहीं करे। चुनाव भी निकट ही है। इसलिए शायद केन्द्र सरकार कीमत बढ़ाने की दिशा में कदम नहीं बढ़ाए।

कुछ भी हो सकता है। उसके बारे में दावे से अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतना तय है कि इस तरह का मुकदमा दायर कर केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग का एलान कर दिया है। वे दिल्ली की अपनी पूर्ववर्ती सरकार के दौरान हुए कथित घोटालों पर भी अनेक मुकदमे दायर करवा चुके हैं और मुकदमों की शीघ्र और प्रभावी सुनवाई के लिए एक प्रभावी दिल्ली लोकपाल विधेयक को विधानसभा से पास करवाने की कोशिश में लगे हैं।

भ्रष्टाचार के खिलाफ केजरीवाल के छिड़े अभियान का तुरत नतीजा सामने आने तो संभव नहीं दिखाई पड़ता, लेकिन इतना तय है कि लोकसभा चुनावों पर इसका असर पड़ेगा। दिल्ली में सरकार बनाने के बाद केजरीवाल की नजर लोकसभा चुनाव पर है और भ्रष्टाचार के खिलाफ एकाएक सक्रियता दिखाने के पीछे उनका मकसद यही है कि यह चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा बने और इसका ज्यादा से ज्यादा लाभ उनकी पार्टी के उम्मीदवरों को मिले।

क्ेजरीवाल की पार्टी का संगठन मजबूत नहीं है। उनकी पार्टी बिल्कुल नई है और वे बड़े पैमाने पर चुनाव में उतारना चाहते हैं। उन्हें पता है कि उनके उम्मीदवारों को मत मिलना आसान नहीं है, क्योंकि उनकी पार्टी का सांगठनिक ढांचा अभी तक बनकर तैयार नहीं हुआ है। दिल्ली चुनाव भी उन्होंने बिना किसी विशेष तैयारी के ही लड़ी। उन्होंने देखा कि उनके उम्मीदवारों को मिल मत दरअसल मुद्दों को मिल मत थे। अनेक विधानसभा क्षेत्रों में उनकी पार्टी को वोट देने वाले लोग तो उनके उम्मीदवारों के नाम भी नहीं जानते थे, लेकिन उन्होंने मुद्दों के कारण केजरीवाल की पार्टी को वोट डाले।

अब केजरीवाल दिल्ली की सफलता की कहानी को उसी तरह देश भर में दुहराने की कोशिश करना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि चुनाव के ठीक पहले भ्रष्टाचार बहुत बड़ा मुद्दा बना और लोगों ने उनसे छुटकारा पाने की इच्छा शक्ति दिखाई, तो इसका फायदा उनके उम्मीदवारों को हो सकता है।

यही कारण है कि केजरीवाल केन्द्र सरकार से भ्रष्टाचार के मसले पर लगातार टकराव मोल ले रहे हैं। कृष्णा बेसिन गैस का मामला तो बस एक मामला भर है, उनकी असली लड़ाई तो केन्द्र से दिल्ली लोकपाल के मसले पर होगी, जिसे विधानसभा से पारित कराने के लिए केजरीवाल बेकरार है। पारित कराने के बाद वे उस पर जल्द से जल्द राष्ट्रपति का दस्तखत भी चाहेंगे और विलंब होने पर आंदोलन का रास्ता भी अख्तियार कर सकते हैं। इस्तीफा देने के बाद या उसके पहले ही वे एक बार फिर जनवरी के तीसरे सप्ताह को दुहरा सकते हैं, जब उन्होंने रेल भवन के बाहर धरना दे डाला था। वह धरना तो एक छोटे मसले पर था, इस बार तो दिल्ली लोकपाल के मसले पर होगा और इसके साथ साथ केजरीवाल के पास दिल्ली व केन्द्र सरकार में हुए भ्रष्टाचार की एक बड़ी लिस्ट भी होगी।

यही नहीं, केजरीवाल अन्ना को भी उसमें शामिल होने के लिए आमंत्रित करेंगे। अन्ना का संबंध उनसे तनावपूर्ण चल रहा था, लेकिन उनके पिछले दिल्ली प्रवास के दौरान केजरीवाल ने उनके गुस्से को शांत करने में आंशिक सफलता हासिल कर ली है। यदि अन्ना को अपने आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए केजरीवाल राजी कर लेते हैं, तो निश्चय ही इसका देशव्यापी असर होगा और आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए एक अच्छा माहौल तैयार होगा।

सवाल उठता है कि आम आदमी पार्टी किसे नुकसान पहुंचाएगी? सबसे ज्यादा नुकसान तो यकीनन कांग्रेस का ही होगा। भ्रष्ट नेताओं जेबी पार्टियों को भी इससे नुकसान हो सकता है। भारतीय जनता पार्टी को इससे नुकसान भी हो सकता है और फायदा भी। यदि भाजपा विरोधी मतों को आम आदमी पार्टी ने और भी विभाजित किया तो, इससे भाजपा की उम्मीदवारों को लाभ भी हो सकता है। हालांकि भाजपा के नेताओं को अपने वोट बचाने के लिए भी बहुत मेहनत करनी होगी और भ्रष्टाचार के मसले पर पाक साफ दिखना होगा। (संवाद)