राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी सख्सियत के रूप में उभरने के बाद अन्ना ने ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री के रूप में देखने का संकल्प किया है, क्योंकि उनमें वे लोगों के प्रति लगाव देखते हैं। उन्हें लगता है कि ममता जमीन से जुड़ी हुई नेता है और लोगों के लिए संघर्ष करने का उनके पास सहज स्वभाव है। कुछ लोग ममता बनर्जी के पक्ष में अन्ना के बयान का एक दूसरा अर्थ भी लगा रहे हैं। उन्हें लगता है कि अन्ना अरविंद केजरीवाल के खिलाफ भी खुन्नस निकाल रहे हैं। अरविंद उनकी इच्छा के खिलाफ पार्टी बनाकर चुनाव लड़ बैठे थे और वे सफल भी रहे। अन्ना को लगता है कि अरविंद ने उनका इस्तेमाल अपने राजनैतिक मंसूबों को पूरा करने के लिए किया। वे उनका इस्तेमाल और न कर सकें और अपने आपको अन्ना के अघोषित उत्तराधिकारी के रूप मे लेगों के सामने न पेश कर सकें, इसलिए अन्ना ने खुद ममता बनर्जी का समर्थन करने का मन बना लिया है।

लेकिन कोलकाता के मीडिया से जुड़े लोगों को इसकी कोई परवाह नहीं कि अन्ना किन कारणों से ममता बनर्जी को समर्थन कर रहे हैं। उनके लिए बस इतना काफी है कि अन्ना ने बंगाल की एक नेता को प्रधानमंत्री के पद पर देखने का मन बनाया है और इसके कारण कोलकाता के मीडिया के लोग उत्साहित हैं। उन्हें लगता है कि उनके बीच का एक व्यक्ति देश के सबसे शक्तिशाली पद पर बैठने की ओर अग्रसर और देश का एक बड़ा आदमी उसका साथ दे रहा है।

बंगालियों के आभिजात्य वर्ग की बहुत दिनों से इच्छा रही है कि कोई बंगाली भी देश के प्रधानमंत्री के पद पर बैठे। यह सच है कि देश का राष्ट्रपति भी बंगाल से ही आते हैं, लेकिन यह एक सांत्वना पुरस्कार से ज्यादा नहीं है, क्योंकि संसदीय प्रणाली वाली सरकार में प्रधानमंत्री का पद ज्यादा मायने रखता है, राष्ट्रपति का पद नहीं। इसके अलावा एक तथ्य यह भी है कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी बंगाल के होते हुए भी बंगाल के राजनैतिक हलकों में बहुत महत्व नहीं रखते थे।

यही कारण है कि ममता बनर्जी की पीठ पर अन्ना हजारे का हाथ आने से पश्चिम बंगाल के लोगों में उत्साह का संचार हुआ। उन्हें लग रहा है कि अन्ना हजारे का समर्थन पाने के बाद ममता बनर्जी राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण तो हो ही गई हैं, पश्चिम बंगाल में भी इसके कारण उनकी विश्वसनीयता और भी बढ़ जाएगी।

दो साल पहले जब अन्ना हजारे ने जनलोकपाल कानून के लिए दिल्ली में अपना आंदोलन शुरू किया था, तो देश भर में एक भूचाल आ गया था। इसे अभूतपूर्व समर्थन हासिल हुआ था। इस भूचाल को देखने से पता लगता था कि लोग सिर्फ भ्रष्टाचार से ही मुक्ति नहीं चाहते हैं, बल्कि देश की वर्तमान राजनैतिक व्यवस्था से भी नाखुश हैं। यह साल लग रहा था कि लोग एक अलोकतांत्रिक कानून का पसंद कर रहे हैं। यह कानून इसलिए अलोकतांत्रिक था, क्योंकि उसके द्वारा चुनी हुई सरकार से ऊपर भी एक सत्ता खड़ा करने का प्रावधान वाला था। जाहिर है उस आंदोलन को उन लोगों का समर्थन मिल रहा था, जो लोकतंत्र के शोर शराबे को पसंद नहीं करते। (संवाद)