2004 में कांग्रेस को 8 साल के बाद एक बार फिर सत्ता में लाने का श्रेय भी आंध्र प्रदेश को ही मिला था। 2009 में भी कांग्रेस को वहां की 42 में से 33 सीटों पर विजय हासिल हुई थी। यानी यदि वर्तमान लोकसभा में कांग्रेसी सांसदों का आंकड़ा 200 से ऊपर पहुंचा, तो उसके के लिए आंध्र प्रदेश ही जिम्मेदार था।
इसलिए यह बहुत ही दुख की बात है कि जिस कांग्रेस को आंध्र प्रदेश ने इतना संबल प्रदान किया, उसके उसने दो टुकड़े कर डाले। इसका कारण चाहे जो भी रहा हो, लेकिन ऐसा करके कांग्रेस ने एक बड़ी गलती कर डाली है। इसका असर कांग्रेस पर होगा और आगामी लोकसभा चुनाव में शेष आंध्र प्रदेश जिसे सीमांध्रा भी कहा जा रहा है, उसका सफाया हो जाएगा। शायद सीमांध्रा में उसे एक सीट भी प्राप्त न हो।
तेलंगाना के गठन का श्रेय लेते हुए कांग्रेस वहां की 17 सीटों में से अधिकांश पर जीत की उम्मीद कर रही है। पर बड़ा सवाल यह है कि क्या तेलंगाना राष्ट्र समिति (टी आर एस) का कांग्रेस में विलय हो पाएगा। यदि यह संभव होता है, तब तो कांग्रेस तेलंगाना से अच्छी संख्या में सीटें पाने की उम्मीद कर सकती है, लेकिन यदि ऐसा नहीं हो पाता है, तो फिर कांग्रेस के लिए तेलंगाना से भी कुछ हासिल कर पाना आसान नहीं रह जाएगा।
इसका मुख्य कारण यह है कि तेलंगाना वासी अलग राज्य के गठन का मुख्य श्रेय कांग्रेस को नहीं बल्कि चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली टीआरएस को दे रहे हैं। आंदोलन के दौरान टीआरएस के नेता श्री राव ने कहा था कि यदि कांग्रेस तेलंगाना का गठन कर देती है, तो वह अपनी पार्टी को कांग्रेस में मिला डालेंगे। पर अब वे उस तरह की बात नहीं कर रहे हैं। वे कांग्रेस के साथ गठबंधन करने की बात कर रहे हैं। जाहिर है विलय न हो पाने की स्थिति में कांग्रेस के पास पाने के लिए बहुत कम रह गया है।
कांग्रेस की स्थिति चाहे जो भी हो, तेलंगाना के गठन के साथ एक लंबा संघर्ष समाप्त हो गया है। इस राज्य के गठन की मांग उसी समय से शुरू हो गई थी, जब नवगठित आंध्र प्रदेश का इसे एक हिस्सा बना दिया गया था। पहले यह हैदराबाद राज्य का हिस्सा हुआ करता था। मद्रास के तेलुगू भाषी लोगों के लिए अलग राज्य की मांग करते हुए पी श्रीरामलू ने अपनी जान दे दी थी। फिर तेलगूभाषी मद्रास राज्य के हिस्से और तेलंगाना को मिलाकर एक आंध्र प्रदेश नाम के राज्य का गठन कर दिया गया था। पर तेलंगाना के लोग अपने लिए एक अलग राज्य चाहते थे और उसके लिए उनका आंदोलन हमेशा चलता रहा। वह आंदोलन कभी कमजोर, तो कभी मजबूत हो जाता और कभी कभी शांत भी हो जाता।
इस राज्य के गठन का श्रेय के चंद्रशेखर राव को मिलेगा, क्योंकि पिछले 14 साल से वे ही इस राज्य के गठन का आंदोलन कर रहे थे। उनके अनशन को तोड़ने के लिए ही अलग राज्य की मांग पर केन्द्र सरकार ने सहमति दी थी। यह 2009 की बात है। पर सीमांध्रा में प्रदेश के विभाजन के खिलाफ होने वाले आंदोलनों के कारण इसके गठन का काम रुका हुआ था और केन्द्र सरकार टाल मटोल करने वाली नीतियां अपना रही थी। पर चंद्रशेखर राव की ओर भी आंदोलन तेज किया गया और इसके दबाव के केन्द्र को अपनी टाल मटोल की नीतियों को त्यागना पड़ा। फिर तो तेलंगाना का गठन भी हो गया। (संवाद)
अभी समाप्त नहीं हुआ है तेलंगाना मुद्दा
कांग्रेस का खेल बिगड़ा
हरिहर स्वरूप - 2014-02-24 12:22
आंध्र प्रदेश कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था। जब 1977 में कांग्रेस का पूरे उत्तर भारत से सफाया हो गया था, उस समय भी आंध्र प्रदेश में कांग्रेस जीती थी। रायबरेली से पराजित इन्दिरा गांधी तब मेडक लोकसभा क्षेत्र से एक उपचुनाव के द्वारा लोकसभा पहुंची थी। वह मेडक अब तेलंगाना राज्य का हिस्सा होगा। जाहिर है कि इन्दिरा गांधी के सबसे बुरे दिनों में आंध्र प्रदेश ने ही उनका साथ दिया था। 1989 के लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस की उत्तर भारत में भारी पराजय हो गई थी, तब उस समय भी आंध्र प्रदेश में उसकी जीत हुई थी। वह जीत इस तथ्य के बावजूद हुई थी कि उस समय आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री गैर कांग्रेसी एनटीरामाराव थे।