इसमें कोई शक नहीं है कि विधेयक संसद द्वारा पारित कर दिया गया है, लेकिन इसका असर आने वाले दिनों में कांग्रेस सहित अनेक पार्टियों पर दिखाई पड़ेगा। ये पार्टियां अपने आपको नई चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करती रहेंगी और जब कुछ समय के बाद कुहरा छंटेगा, तब पता चलेगा कि वास्तव में क्या हुआ। विधेयक पारित होने के बाद भी केन्द्र को कुछ अनसुलझे सवालों के जवाब देने होंगे। केन्द्र ने तेलंगाना को विशेष राज्य का दर्जा देना स्वीकार किया है। अब विशेष राज्य का स्वरूप क्या होगा, इसे भी केन्द्र द्वारा तय किया जाना है। केनदकेन्द्र सरकार के सामने यह एक बहुत बड़ी चुनौती है और इसे पूरा करने के लिए उसके पास समय बहुत ही कम है। इसका कारण यह है कि विधानसभा और लोकसभा के चुनाव सिर पर खड़े हैं और केन्द्र चाहेगा कि चुनाव के पहले सबकुछ हो जाय।

योजना आयोग और केन्द्र को सीमा‘ध्रा के लिए सही पैकेज तैयार करने की चुनौती है। राज्य को विशेष दर्जा देने के लिए राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक बुलानी पड़ेगी। सबसे बड़ी समस्या सीमांध्रा को होने वाले राजस्व नुकसान की है। माना जा रहा है कि शेष आंध्र प्रदेश को 9 हजार करोड़ रुपये से 15 हजार करोड़ रुपये तक के राजस्व का नुकसान हो सकता है। इस राजस्व क्षति की पूर्ति के लिए पहले सोचा गया था कि हैदराबाद से प्राप्त होने वाले राजस्व का वितरण किया जा सकता है, पर बाद में विशेषज्ञों ने बताया कि एक राज्य के राजस्व में दूसरा राज्य हिस्सेदारी नहीं कर सकता।

कांग्रेस के लिए इस विभाजन के राजनैतिक मायने भी बहुत विघ्वंसकारी हो सकते हैं। उसे पहले लग रहा था कि राज्य के विभाजन से उसे लाभ होगा, पर आज टीआरएस जीत की मुद्रा में है। पहले टीआरएस ने कहा था कि यदि तेलंगाना राज्य का गठन होता है तो वह अपने आपको कांग्रेस से मिला देगा। कांग्रेस टीआरएस के नेता चंद्रशेखर राव को नवनिर्मित राज्य के मुख्यमंत्री के रुप में प्रोजेक्ट करने को तैयार भी थी। लेकिन अब राव अपने इरादों से डगमगा रहे हैं और अपनी पार्टी के कांग्रेस में विलय की जगह उससे गठबंधन की बातें कर रहे हैं।

कांग्रेस के साथ एक समस्या यह भी है कि उसके पास तेलंगाना क्षेत्र में कोई बड़ा नेता नहीं है, जबकि राव यहां के एक बडे नेता के रूप में अपने को स्थापित कर चुके हैं। उनके परिवार के अन्य सदस्यो ंने भी आंदोलन में शिरकत कर अपना कद बढ़ लिया है। कांग्रेस के पास जयपाल रेड्डी के रूप में एक जाना पहचाना चेहरा है। वे राष्ट्रीय स्तर पर जाने जाते हैं, लेकिन राज्य की राजनीति में वे अपने को बहुत ज्यादा बढ़ा चढ़ाकर नहीं दिखाते।

राव की पार्टी के साथ सीट तालमेल करना भी कांग्रेस के लिए आसान नहीं है। श्री राव लोकसभा में तो कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने को तैयार हैं, पर राज्य में अधिकांश सीट अपनी पार्टी के लिए ही चाहते हैं। यदि कांग्रेस ने उनका फार्मूला स्वीकार कर लिया, तो यह शुरू से ही राज्य की राजनीति में हाशिए पर रहेगी। तेलंगाना में कुल 119 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से 75 पर टीआरएस ही चुनाव लड़ना चाहती है। यदि कांग्रेस इसके लिए तैयार हो जाए, तो फिर आने वाले दिनों में भी उसे लगातार दोयम दर्ज की पार्टी बने रहने को मजबूर होना पड़ेगा।

2009 में आंध्र प्रदेश में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ हुए थे। इस बार भी दोनो चुनाव एक साथ सीमांध्रा और तेलंगाना में होंगे, इसके पर भ्रम बना हुआ है। वहां के स्थानीय कांग्रेसी नेता चाहते हैं कि विधानसभा के चुनाव लोकसभा चुनाव के बाद हों। उन्हें लगता है कि समय बीतने के साथ सीमांध्रा के लोगों का कांग्रेस के प्रति गुस्सा कमजोर पड़ जाएगा। (संवाद)