ग्यारहवीं अनुसूची के साथ धारा 243 जी में प्रावधान है कि ऐसे कानूनों में भी शक्तियां और दायित्व निहित हों कि आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय, जिंसमें ग्यारहवीं अनुसूची में सूचीबद्ध 29 मामलों में सम्बद्ध मामले जुड़े हों, पंचायतों को शक्तियां और उत्तरदायित्व दिये जा सकते हैं ।
द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने अपनी छठीं रिपोर्ट में स्थानीय निकायों के सम्बंध में सिफारिश की है कि स्थायीन निकायों के प्रत्येक स्तर पर कार्यों का स्पष्ट तौर पर रेखांकन होना चाहिए । ऐसा केवल एक ही बार ही नहीं बल्कि हमेशा करना चाहिए, ऐसा स्थानीय सामाजिक-आर्थिक कार्यक्रमों को बनाते समय, संगठनों का पुनर्गठन करते समय और किसी विषय पर कानून बनाते समय भी किया जाना चाहिए ।
इस समय राज्य पंचायत कानूनों में पंचायतों के लिए कार्य निर्धारित किए जाते हैं, अधिकतर मामलों में कानून इतने अस्पष्ट होते हैं कि कार्यक्रमसेवा प्रदायगी के विकन्द्रित और केन्द्रित- दोनों ही मामलों को अनुमति देते हैं । कुछ मामलों में वास्तविक स्थिति वैधानिक-स्थिति से पूरी तरह नहीं मिलती । कुछ मामलों में, जहां राज्य ऐसी जिम्मेदारियों को पंचायतों को सौंप देते हैं, तो वे या तो (अ) अब भी राज्य प्रशासनिक सेवा तंत्र के जरिए ऊपर नीचे तरीके से उपलब्ध करा दी जाती हैं या (ब) इन्हें देने में पंचायतों की क्षमता अत्यंत सीमित होती हैं क्योंकि उनके पास वित्तीय और प्रशासनिक शक्तियां सीमित होती हैं और इसलिए नागरिकों के लिए सेवाओं से गिरावट जारी रहती है ।
विभिन्न स्तरो वाली पंचायतों की भूमिका और जिम्मेदारियों में स्पष्टता को कार्य-मापन से समझा जा सकता है, इस प्रकार पंचायतों को कार्य सौंपने के मामले में यह कदम महत्वपूर्ण बन जाता है । यहां यह उल्लेखनीय है कि पंचायतों पर कार्यों, कोषों और कायकर्ताओं को कार्य बल सौंपने की रिपोर्ट 2001 में प्रस्तुत की गई थी । कार्यकलाप मापन की विस्तृत समीक्षा करने तथा उसको अद्यतन करने की आवश्यकता स्पष्ट है ।
यहां यह उल्लेखनीय है कि कार्यकलाप चित्रण से तात्पर्य विषयों के समग्र दृश्यांकन से नहीं है । विषयों या क्षेत्रों को खोलने तथा उसे सार्वजनिक वित्त एवं लोक उत्तरदायित्व के स्पष्ट सिद्धांतों के आधार पर सरकार के विभिन्न स्तरों पर निर्धारित करने की है और सर्वोपरि हैं — पूरकता के प्रशासनिक सिद्धांत, लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण तथा नागरिक केन्द्रीयता ।
पंचायतों का प्रशासनिक दायित्व आम तौर पर राज्य सरकार द्वारा प्रतिनियुक्त कर्मचारियों से होता है । प्रतिनियुक्त कर्मचारियों पर पंचायतों का बहुत कारगर प्रभाव नहीं रहता है क्योंकि वे प्रतिनियुक्त कर्मचारियों के खिलाफ कोई कठोर अनुशासनात्मक कारर्वाइ नहीं कर पाते हैं । आवश्यक यह होगा कि पंचायतों में पद सृजित किए जाएं तथा कर्मचारियों के संवर्गों को सृजित किया जाए । प्रतिनियुक्ति की शर्तें और दशाएं निर्धारित की जाय । ग्राम पंचायतों की भूमिका के सिलसिले में मार्गनिर्देशों को भी स्पष्ट किया गया है और बताया गया है कि वास्तव में, ग्राम सभा को शक्तियां और कार्य संविधान के अनुच्छेद 243 ए के अनुसार निर्धारित किए जाने चाहिए ताकि वे लोगों के प्रति उत्तरदायी पंचायत चुन सकें ।#
भारत: पंचायती राज
पंचायतों को मजबूत करने के लिए नये दिशानिर्देश जारी
विशेष संवाददाता - 2010-01-05 13:05
नई दिल्ली: पंचायती राज मंत्रालय ने कार्यकलापों की रूपरेखा के माध्यम से कार्यों, कोषों और कार्यकत्र्ताओं को पंचायतीराज संस्थओं को सौंपने के लिए कुछ विशेष मार्गनिर्देश जारी किये हैं । विभिन्न राज्योंकेन्द्रशासित प्रदेशों को जारी किए गये मार्गनिर्देशों के अनुसार, कानून के माध्यम से ऐसी शक्तियां और प्राधिकार पंचायतों को प्रदान किए जायेंगे जो उनके अधीन कार्यरत स्वायत्त संस्थाओं के कार्यों के लिए आवश्यक हों ।