भारतीय जनता पार्टी नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री की गददी पर बैठाने और खुद के केन्द्र की सत्ता में लाने के लिए उत्तर प्रदेश पर बहुत भरोसा कर रही है। उसे लगता है कि देश की सबसे बड़ी आबादी वाले प्रदेश में उसे काफी संख्या में लोकसभा की सीटों पर विजय हासिल होगी। लेकिन लखनऊ की कम उपसिथति ने उन्हें परेशान कर रखा है।

भारतीय जनता पार्टी ने लखनऊ की इस रैली में भारी भीड़ जुटाने के लिए भारी संसाधनों को झोंक दिया था। 29 रेल गाडि़यों को किराए पर लिया गया था और 65 सौ से भी ज्यादा बसों की व्यवस्था की गर्इ थी। उनके द्वारा प्रदेश भर से लोगों को लखनऊ में जुटाने की कोशिश की गर्इ थी।

कुल 15 लाख लोगों को सभा स्थल तक लाने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन वहां सिर्फ 2 लाख लोग ही आ सके। दो लाख लोगों की संख्या भी कम नहीं होती, लेकिन जब बात उत्तर प्रदेश की हो रही हो, तो यह संख्या वास्तव में कम है। पिछले 15 जनवरी को बसपा प्रमुख मायावती की इस रमा बार्इ मैदान में रैली हुर्इ थी। उस रैली से यदि हम मोदी की 2 मार्च की सभा की तुलना करें, तो मोदी मायावती के सामने कहीं नहीं टिकते।

भारतीय जनता पार्टी लखनऊ रैली के द्वारा प्रदेश भर में पार्टी के पक्ष में एक लहर पैदा करना चाह रही थी, लेकिन ऐसा करने में वह विफल रही। लखनऊ उसके लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि अटल बिहारी वाजपेयी यहां से 5 बार लोकसभा सांसद रह चुके हैं।

यह भी कहा जा रहा था कि लखनऊ की रैली से उत्साहित होकर नरेन्द्र मोदी इसी लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहेंगे और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत को आगे ले जाएंगे।

इस बात को मानने के लिए कोर्इ तैयार नहीं है कि लोग भारी संख्या में इसलिए नहीं जुटे, क्योंकि पशिचमी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड में मौसम खराब हो गया था।

सच तो यह है कि जिस तरह से गुजरात से आकर अमित शाह ने उत्तर प्रदेश की भाजपा राजनीति पर कब्जा कर लिया है, उसके कारण भाजपा के वरिष्ठ नेता दुखी हैं।

इस चुनावी रैली में लखनऊ के लोगों की भागीदारी ज्यादा नहीं थी। इससे पता चलता है कि यहां के लोकसभा सांसद लालजी टंडन और मेयर दिनेश शर्मा ने लोगों को जुटाने में बहुत दिलचस्पी नहीं दिखार्इ। तथ्य यह भी है कि दोनों इस लोकसभा सीट से टिकट पाने के लिए दावा ठोंक रहे हैं।

लेकिन दोनों इस बात को लेकर परेशान हैं कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह खुद यहां से चुनाव लड़ना चाहते हैं। वे इस समय गाजियाबाद का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन इस बार वे वहां से चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं हैं। इसका मुख्य कारण है कि पिछली बार भाजपा का अजित सिंह के राष्ट्रीय लोकदल के साथ चुनावी गठबंधन था और अजित सिंह के जाट समर्थक मतदाताओं ने राजनाथ सिंह की जीत में योगदान किया था। इस बार अजित सिंह की पार्टी का गठबंधन कांग्रेस के साथ हुआ है। जाहिर है राजनाथ सिंह अब गाजियाबाद से अपने आपको असुरक्षित समझने लगे हैं।

पिछली दफा भाजपा का जद(यू) के साथ भी गठबंधन था और जद(यू) के केसी त्यागी के कारण उन्हें त्यागियों के मत भी मिले थे। इसके साथ साथ समाजवादी पार्टी ने भी राजनाथ के खिलाफ गाजियाबाद से कोर्इ उम्मीदवार नहीं उतारा था।

लालजी टंडन ही नहीं, बलिक कलराज मिश्र और मुरली मनोहर जोशी भी पार्टी के अंदर नाराज चल रहे हैं, क्योंकि उनके टिकटों पर भी खतरा पैदा हो गया है।

ओबीसी के नेता ओमप्रकाश सिंह और विनय कटियार भी बहुत खुश नहीं हैं, क्योंकि अमित शाह उनसे ज्यादा कल्याण सिंह को तवज्जो दे रहे हैं।

राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है कि यदि भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश से 40 सीट पाने का लक्ष्य हासिल करना चाहती है, तो उसे बहुत मेहनत करनी पड़ेगी और अंदरूनी कलह से भी मुक्त होना पड़ेगा। (संवाद)