तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने खुद प्रधानमंत्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षा का इशारों ही इशारों में इजहार कर दिया है। यदि चुनाव पूर्व बने किसी मोर्चे को लोकसभा चुनाव के बाद बहुमत नहीं मिलता है, तो जयललिता प्रधानमंत्री पद की दावेदारी कर सकती है। इसके लिए जरूरी होगी कि 40 में से अधिकांश सीटों पर उनकी पार्टी के उम्मीदवार जीतें। इस सच्चार्इ को जयललिता महसूस करती हैं और इसीलिए उन्होंने नारा दिया है कि यदि तमिलनाडु को विकास करना है, तो हमें 40 में से 40 सीटों पर जीत हासिल करनी होगी। पिछले महीने फरवरी में उन्होंने तमिलनाडु के लोगों से मांग की कि उन्हें अपनी जन्म तिथि पर उपहार के रूप में तमिलनाडु और पुदुचेरी की जनता 40 में से 40 उनकी पार्टी को दें।

ममता बनर्जी द्वारा जयललिता को मिला समर्थन भी देश की राजनीति की एक महत्वपूर्ण घटना है। पहले जयललिता ने वाम पार्टियों के साथ प्रदेश में गठबंधन की घोषणा की थी। पर सीटों पर उनसे तालमेल नहीं बैठ पाया। सीपीआर्इ और सीपीएम अपने अपने लिए तीन तीन सीटें मांग रही थीं, पर जयललिता दोनों को एक एक सीट ही देना चाह रही थी। कोर्इ बीच का रास्ता भी नहीं निकल सका और अंत में गठबंधन की समापित की घोषणा कर दी गर्इ। अब उनकी पार्टी सभी 40 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ी करेगी। वाम दलों से गठबंधन टूटने की खबर आते ही पशिचम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तमिलनाडु की मुख्यमंत्री को फोन किया और अपनी शुभकामना प्रेषित की। जिस तरह से तमिलनाडु में जयललिता मजबूत हैं, उसी तरह से पशिचम बंगाल में ममता बनर्जी भी बहुत मजबूत होती जा रही हैं। दोनों की पार्टियों के अधिकांश उम्मीदवारों की जीत की उम्मीद है। अब चुनाव के बाद यदि त्रिशंकु लोकसभा असितत्व में आ जाती है, तो फिर ममता द्वारा जयललिता को दिया गया समर्थन सरकार गठन की प्रकि्रया को प्रभावित कर सकता है।

तमिलानाडु विधानसभा का परिदृश्य भी इस समय जयललिता के पक्ष में दिखार्इ पड़ रहा है। इस बार वहां पंचकोणीय मुकाबला दिखार्इ पड़ रहा है। पिछले 4 दशक में पहली बार कांग्रेस वहां अकेली चुनाव लड़ेगी। अन्ना डीएमके भी इस बार अकेली ही चुनाव लड़ रही है। डीएमके का गठबंधन उन पार्टियों के साथ है, जिनका राज्य में लगभग कोर्इ वजूद ही नहीं है। भारतीय जनता पार्टी ने डीएमडीके, एमडीएमके और पीएमके के साथ गठबंधन कर लिया है। वाम पार्टियां अलग से चुनाव लड़ रही हैं।

इस पंचकोण्ीय मुकाबले में जयललिता सबपर भारी पड़ रही हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने बहुत ही शानदार सफलता हासिल की थी। उनका उस समय का जनाधार अभी नहीं हुआ है, क्योंकि सरकार के खिलाफ लोगों में अभी मोहभंग की सिथति पैदा नहीं हुर्इ है। जयललिता ने भी इसका ख्याल रखा है कि अपनी नीतियों से वह जनता को गुस्सा दिलाने का कोर्इ काम नहीं करे। दूसरी तरफ कांग्रेस और डीएमके अब अलग अलग चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस की सिथति तो वैसे ही पतली है, करुणानिधि के पारिवारिक झगड़े के कारण डीएमके की हालत भी डांवाडोल हो रही है। करुणानिधि ने अपने बड़े बेटे अलागिरी को अपनी पार्टी से निकाल दिया है। उनका बगावती तेवर डीएमके को कमजोर कर रहा है। इसका सीधा फायदा जयललिता की पार्टी को मिलने वाला है। इसके कारण उनकी पार्टी के उम्मीदवारों की जीत के आसार बढ़ जाएंगे और वे ज्यादा से ज्यादा संख्या में जीत कर आएंगे।

तमिलनाडु में भाजपा की उपसिथति बहुत ही कमजोर रही है। उसने इस बार तीन क्षेत्रीय पार्टियों को अपने साथ लाने में सफलता पार्इ है। भाजपा के इस मोर्चे को तमिलनाडु में करीब 16 फीसदी मत मिलेंगे। इन मतों से कितनी सीटों पर भाजपा को सफलता मिलेगी, यह देखना दिलचस्प होगा। (संवाद)