लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव ने दिल्ली की राजनीति को बदल डाला है। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के अतिरिक्त आम आदमी पार्टी ने यहां अपना एक मजबूत आधार बना लिया है। मजबूत आधार ही नहीं, बल्कि दिल्ली की सबसे मजबूत पार्टी के रूप में उसने कांग्रेस को तीसरे स्थान पर धकेल दिया है।

पिछले विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा मत भारतीय जनता पार्टी को मिले थे और सर्वाधिक सीटें भी उसे ही प्राप्त हुई थी, लेकिन वह बहुमत का आंकड़ा प्राप्त नहीं कर सकती थी। इसके कारण दूसरी सबसे बड़ी पार्टी आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार भी बना ली थी।

बहरहाल, आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार अब नहीं रही, लेकिन विधानसभा में उसके प्रदर्शन को देखते हुए माना जा रहा था कि इस बार मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी के बीच में ही होगा और कांग्रेस पूरी तरह हाशिए पर धकेल दी जाएगी।

कांग्रेस को पिछले चुनाव में 23 फीसदी मत मिले थे और आम आदमी पार्टी को 29 फीसदी। माना जा रहा था कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का मतप्रतिशत और घटेगा और इसका फायदा आम आदमी पार्टी को होगा। कांग्रेस वोटों के शिफ्ट होने के कारण आम आदमी पार्टी की स्थिति भारतीय जनता पार्टी से भी बेहतर होने की उम्मीद की जा रही थी।

पर कांग्रेस की स्थिति अब पहले से बेहतर हो गई है। सच तो यह है कि कांग्रेस ने दिल्ली में अपनी वापसी कर ली है और इसका खामियाजा आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों को भुगतना पड़ रहा है। सभी सीटों पर त्रिकोणात्मक मुकाबला हो रहा है और यह नहीं कहा जा सकता कि कांग्रेस इन तिकाने मुकाबले में सभी सीटों पर पिछड़ रही है।

कांग्रेस की फिर मुकाबले में वापसी आम आदमी पार्टी के कमजोर होने के कारण हुआ है। आम आदमी पार्टी की कमजोरी का मुख्य कारण उम्मीदवारों को तय करने में आप नेताओं द्वारा की गई गड़बड़ी है। यह नहीं कहा जा सकता कि पार्टी ने गलत उम्मीदवारों का चयन किया है, लेकिन उसकी असली गड़बड़ी उसके झूठे दावों के रूप में सामने आई है।

आम आदमी पार्टी के नेताआंे ने सभी से उम्मीदवारी के लिए आवेदन आमंत्रित कर डाले थे और कहा था कि उन आवेदनो ंपर विचार किया जाएगा और उनमें से ही उम्मीदवारों का चयन किया जाएगा। आवेदन की प्रक्रिया भी थकाने वाली थी। सभी आवेदकों को कहा गया था कि वे प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र से सौ सौ प्रस्तावकों के साथ आवेदन करे। यानी एक आवेदक को एक हजार प्रस्तावकों की जरूरत थी, क्योंकि दिल्ली के एक लोकसभा क्षेत्र में 10 विधानसभा क्षेत्र है। औसतन एक लोकसभा क्षेत्र से 1000 आवेदकों ने आवेदन किया। जाहिर है, उनके प्रस्तावकांे की संख्या ही प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में लाखों में थी।

पर जब आम आदमी पार्टी ने अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कि तो पता चला कि अधिकांश सीटों पर उम्मीदवार पहले से ही तय थे। इसके कारण जिन लोगों ने आवेदन किए थे, वे नाराज हो गए और उनकी नाराजगी उन लोगों तक पहुंच गई, जिन्होंन उम्मीदवारों को प्रस्तावित किया था। इस तरह उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया में दिल्ली के लाखों लोगों को शामिल करके और उसके बाद उनको निराश करके आम आदमी पार्टी ने अपना नुकसान कर लिया। और इसके कारण कांग्रेस एक बार फिर मुख्य मुकाबले में आ गई है। (संवाद)