देश के सामने मौजूद चार प्रमुख चुनौतियों के बारे में मीडिया और प्रतिनिधियों के साथ अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हुए डॉ. स्वामीनाथन् ने बताया कि जलवायु परिवर्तन, पोषाहार की कमी, जैव-प्रौद्योगिकी के जरिए खाद्य-सुरक्षा हासिल करना और जैव-विविधता का संरक्षण जैसी प्रमुख चुनौतियां हैं ।

डॉ. स्वामीनाथन ने शरणार्थियों के नये ग्रुप - जलवायु शरणार्थियों के उभरने का जिक्र करते हुए बताया कि ये लोग विपरीत जलवायु दशकों के कारण अपने-अपने निवास स्थानों से अन्य क्षेत्रों में प्रवास करने के लिए बाध्य हो रहे हैं । जैसे समुद्र का जल स्तर बढऩे के कारण तटवर्ती इलाकों की भारी संख्या अन्दरूनी इलाकों में पलायन करने के लिए बाध्य हो रही है । उन्होंने देश से आग्रह किया कि समुद्र-तल से नीचे खेती करने के कुट्टनड माडल को अपनाने के प्रयास किए जाएं ।

डॉ. स्वामीनाथन ने बताया कि तापमान में वृद्धि के प्रभाव का आकलन करने के लिए अभी पर्याप्त निष्कर्षात्मक आंकड़े नहीं हैं । भारत के सभी 127 कृषि जलवायु क्षेत्रों में अनुसंधान केन्द्रों की आवश्यकता है, जहां व्यापक तौर पर आंकड़ों के संग्रह और विश्लेषण के लिए कम-से-कम वास्तविक केन्द्रों को स्थापित किया जाए ।

उन्होंने स्पष्ट किया कि किसानों के लिए उनकी अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय नीति समिति बनाई गई थी, उसकी सिफारिशों पर भारत सरकार द्वारा अमल किया जाना था। रिपोर्ट में आय की तुलना में उत्पादन पर, युवाओं को कृषि की ओर आकृष्ट रखने और महिला कृषकों की चिन्ताओं पर अधिक जोर दिया गया था । सबसे पहले माता-पिता को चाहिए कि वे युवाओं को कृषि की ओर प्रेरित करें । कृषि विज्ञान, पशु चिकित्सा विज्ञान और गृह विज्ञान में व्यावसायिक रूप से प्रशिक्षित युवाओं को अपना रोजगार स्वयं शुरू करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए । डॉ स्वामीनाथन ने चेतावनी दी कि यदि हमारे कृषि क्षेत्र को पुनरुज्जीवित करने के लिए सही समय पर कदम नहीं उठाये जाते हैं तो खाद्य मोर्चे पर एक बड़ी आपदा की ओर राष्ट्र के बढऩे की आशंका है ।#