अन्ना द्वारा ममता के लिए काम करने की घोषणा के बाद तृणमूल नेताओं के उत्साह काफी बढ़े हुए थे। उन्हें लगता था कि उनकी सहायता से उनकी पार्टी पश्चिम बंगाल से बाहर भी अनेक सीटें हासिल कर लेंगी और उसके बाद ममता बनर्जी प्रधानमंत्री पद की दावेदार तक हो सकती हैं। उत्साह में पार्टी ने नई दिल्ली में एक वार रूम भी बना लिया था। अब दिल्ली का वह वार रूम भी बंद हो गया है और ममता ने फैसला किया है कि अब वह अपना ध्यान अपने प्रदेश पर ही केन्द्रित रखेंगी।
लेकिन प्रदेश में भी सबकुछ ममता की इच्छा के अनुसार नहीं हो रहा है। वहां भारतीय जनता पार्टी एक बड़ा फैक्टर बन गई है। नरेन्द्र मोदी की लहर पश्चिम बंगाल में भी प्रवेश कर चुकी है और वहां के हिन्दी भाषियों के बीच यह लहर बहुत काम कर रही है। गौरतलब हो कि पश्चिम बंगाल की 15 फीसदी आबादी हिंदी भाषी है। यह बिहार झारखंड की सीमा पर रहने वाले वहां के मूल निवासियों के अलावा बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान से आए हुए लोग हैं।
पहले ये वामपंथी दलों और कांग्रेस को वोट दिया करते थे, उनका ज्यादा रूझान कांग्रेस की ओर ही होता था। ममता बनर्जी की राजनीति चमकने के साथ ये उनके समर्थक हो गए। पिछले कुछ चुनावों में ममता की शानदा विजय के पीछे इन हिंदीभाषी लोगों का बहुत बड़ा हाथ था। पर अब ये मोदी लहर की गिरफ्त में हैं और इसके कारण ममता बनर्जी को परेशानी हो रही है।
माना जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी इस बार पश्चिम बंगाल में 12 से 15 फीसदी तक मत पा सकती है। इन मतों की बदौलत वह कितनी सीटें जीत सकती है, इसके बारे में तो कुछ भी दावे से नहीं कहा जा सकता, लेकिन इसके कारण तृणमूल कांग्रेस का मत प्रतिशत कम हो जाएगा और उसका सीधा फायदा मिलेगा वामपंथी पार्टियों को।
सच यह भी है कि भारतीय जनता पार्टी के बढ़े मत प्रतिशत के बावजूद पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा सीटें ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को ही मिलेंगी। लेकिन सिर्फ पश्चिम बंगाल की सबसे बड़ी पार्टी या सबसे ज्यादा सीटों पर जीतने वाली पार्टी बनने से ही तृणमूल का काम नहीं बनेगा। ममता केन्द्र सरकार के गठन में लोकसभा चुनाव के बाद कोई महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं, इसके लिए उसे 32 से 35 सीटें चाहिए। एक समय तो ममता बनर्जी को लग रहा था कि इतनी सीटें पाकर वह लोकसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी की नेता के रूप में उभर सकती हैं और तब वह गैर भाजपा गैर कांग्रेस गठबंधन की धुरी बन सकती हैं। पर भारतीय जनता पार्टी उनको पश्चिम बंगाल में ही रोकने का काम कर रही है।
ममता बनर्जी की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा है। यह कोई छिपी हुई बात नहीं है। अपनी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी बनाने के लिए वह अन्य राज्यों मंे भी चुनाव लड़वाती हैं। राष्ट्रपति चुनाव के समय भी उन्होंने अपने आपको राष्ट्रीय भूमिका में उतार दिया था। लेकिन तक मुलायम सिंह की राजनीति के कारण उनकी स्थिति खराब हो गई। उसके बाद भी वह वामपंथी दलों से अलग रहकर एक संघीय मोर्चे का ख्वाब देखती रहती हैं। पर अन्य पार्टियों के नेताओं के बीच उनकी वह स्वीकृति नहीं है, जो वाम दलों के नेताओं की है।
तमिलनाडु में जयललिता के वाम दलों से गठबंधन की बातचीत टूटने के बाद उन्होंने तमिलनाडु की मुख्यमंत्री को फोन भी किया था। तब दोनों में अच्छी बातचीत हुई थी और ममता बनर्जी ने जयललिता को प्रधानमंत्री बनने में सहयोग करने की बात कर दी थी।
कांग्रेस के साथ ममता बनर्जी ने अपने संबंध और भी खराब कर लिए हैं। राहुल गांधी ने अपने एक चुनावी भाषण में पश्चिम बंगाल की ममता सरकार पर आरोप लगाए थे कि वह केन्द्र सरकार द्वारा दिए गए पैसे का इस्तेमाल भी नहीं कर पा रही है, जिसके कारण राज्य की हालत खराब है और सड़के टूटी पड़ी हैं। उसके जवाब में ममता बनर्जी ने बिना नाम लिए राहुल की जिस तरह से खिंचाई की, उसके बाद दोनों का एक साथ आना आसान नहीं है।
जाहिर है, लोकसभा चुनाव के बाद अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा को पूरा होने में ममता भारतीय जनता पार्टी को एक बड़ी बाधा मान रही है, क्योंकि वह उसके समर्थकों मतों के एक हिस्से को अपने पास खिंच रही है और इसके कारण वाम दलों के नेताओं की बांछे खिली हुई हैं। (संवाद)
भारत
बदल रहा है पश्चिम बंगाल का मूड
भाजपा की बढ़त से परेशान हैं ममता
आशीष बिश्वास - 2014-04-03 11:37
कोलकाताः तृणमूल कांग्रेस अब पहले की तरह विश्वास के साथ यह नहीं कह रही है कि वह लोकसभा चुनाव में अपने विरोधियों का सूफड़ा साफ कर देगी। दिल्ली में अन्ना के साथ ममता की रैली की विफलता के पहले जो उत्साह तृणमूल नेताओं में देखा जा रहा था, वह अब कहीं दिखाई नहीं दे रहा है।