यहां बहुकोणीय मुकाबला हो रहा है और इसमें कांग्रेस की रीता जोशी बहुगुणा उनकी मुख्य चुनावी प्रतिद्वंद्वी हैं। वे इस समय विधानसभा की सदस्य हैं और वे कांग्रेस की उत्तर प्रदेश ईकाई की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं।

लखनऊ लोकसभा क्षेत्र इस मायने में एक खास क्षेत्र है कि इसका प्रतिनिधित्व कई बार अटल बिहारी वाजपेयी कर चुके हैं। प्रधानमंत्री के पद पर जब अटल थे, तो वे इसी लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।

लोग कह रहे हैं कि राजनाथ सिंह के लखनऊ से चुनाव लड़ने के पीछे एक कारण उनका प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा भी है। उन्हें लगता है कि यदि राजग को पर्याप्त सीटें नहीं मिलीं और बाहर से समर्थन देने वाले नेताओं ने मोदी को बदल कर किसी और को नेता बनाने को कहा तो वे खुद भी प्रधानमंत्री बन सकते हैं।

राजनाथ सिंह पिछला चुनाव गाजियाबाद से जीते थे। इस बार वे वहां अपनी जीत के प्रति आश्वस्त नहीं था। कहा जाता है कि पिछले चुनाव में मुलायम सिंह ने उनकी सहायता की थी। उस समय मुलायम ने अपनी पार्टी का उम्मीदवार उनके खिलाफ नहीं खड़ा किया था। उस समय अजित सिंह के राष्ट्रीय लोकदल के साथ भी भाजपा का गठबंधन था। इसके कारण राजनाथ सिंह की वहां से आसान जीत हुई थी। पर इस बार स्थिति वहां बदल गई है। इस बार न तो अजित सिंह उन्हें समर्थन दे रहे थे और न ही मुलायम सिंह यादव। यही कारण है कि उन्होंने गाजियाबाद सीट छोड़ने में ही अपनी भलाई समझी।

लखनऊ में आते ही राजनाथ सिंह ने घोषणा की कि वे अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए यहां आए हैं और जो काम अटलजी ने लखनऊ में शुरू करवाया था, उसे वे उनकी पूर्णता तक पहुंचाएंगे।

लखनऊ के युवकों का दिल जीतने के लिए राजनाथ सिंह ने कहा कि वे रोजगार सृजन को बढ़ावा देने वाली नीतियों को अपनाएंगे ताकि भारी संख्या में लोगों को रोजगार मिले। उन्होंने सरकारी कर्मचारियों को आकर्षित करने के लिए कहा कि वे उन समस्याओं को प्राथमिकता से निबटाएंगे, जो पिछले 30 सालों से लंबित पड़ी हैं।

उन्होंने लखनऊ में एक बायोटेक सीटी के निर्माण के अटल के सपने को भी पूरा करने का वायदा किया। उन्होंने कहा कि इससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार मिलेगा।

राजनाथ सिंह की मुख्य समस्या यहां भाजपा के समर्थन आधार में हो रही क्षति है। 1991 से भाजपा का आधार यहां लगातार कम हो रहा है। इस बीच लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है और प्रदेश की दूसरी जगहों से भी लोग यहां आकर बस रहे हैं।

मतदाताओं की कुल संख्या यहां 18 लाख है, जिनमें अकेले ब्राह्मणों की संख्या ही 4 लाख है। ब्राह्मण यहां के मतदान को प्रभावित करते रहे हैं। अटल बिहारी की जीत का एक बड़ा कारण ब्राह्मणों द्वारा मिलने वाला समर्थन भी हुआ करता था।

राजनाथ सिंह से लालजी टंडन के समर्थक नाराज हैं। वे यहां के निवर्तमान सांसद हैं। वह यहां से इस बार भी चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन राजनाथ सिंह ने उनकी इच्छा के खिलाफ खुद को यहां का उम्मीदवार बना दिया। श्री टंडन अटलजी के चुनाव प्रभारी हुआ करते थे। यहां के लोगों और भाजपा कार्यकत्र्ताओं पर उनकी अच्छी पकड़ है। उनकी नाराजगी राजनाथ सिंह को भारी पड़ सकती है।

लखनऊ लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत 5 विधानसभा क्षेत्र हैं, जिनमें 4 पर ब्राह्मण विधायक हैं। दो विधायक समाजवादी पार्टी से है। भाजपा के कलराज मिश्र भी यहीं से विधायक हैं और कांग्रेस की रीता बहुगुणा भी यहीं से एक विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती हैं। कांग्रेस ने उन्हें लखनऊ लोकसभा क्षेत्र से अपना प्रत्याशी बना रखा है।

बसपा ने भी अपना उम्मीदवार ब्राह्मण ही बनाया है। नुकुल दुबे उसके उम्मीदवार हें। वे पिछले दो सालों से यहां अपना प्रचार कर रहे हैं। लेकिन राजनाथ का मुख्य मुकाबला रीता बहुगुणा से ही है। (संवाद)