सवाल उठता है कि घोषणापत्रों को लेकर यह हंगामा क्यों? मतदाता तो घोषणापत्रों को पढ़ते तक नहीं और यदि उनमें से कुछ पढ़ते भी हैं, तो उनके आधार पर मतदान नहीं करते। मतदाता अपनी जरूरतों की चीजों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करते हैं और उन्हें इसकी परवाह नहीं होती कि चुनाव घोषणा पत्रों में उनके लिए क्या क्या वादा किए जा रहे हैं। वे तो चुनाव के पहले उन्हें दिए जाने वाले लाभों पर ध्यान देते हैं। यानी उनकी नजर उस पर रहती है, जो उन्हें चुनाव के समय या उसके ठीक पहले उन्हें दिया जाता है, बल्कि उन चीजों पर नहीं जो उन्हें भविष्य मंे देने का वायदा राजनैतिक पार्टियां करती हैं। कुछ छोटी पार्टियां तो चुनावी घोषणापत्रों की परवाह ही नहीं करती। तेलुगू देशम पार्टी के नेता एनटी रामाराव ने मात्र एक पेज का घोषणापत्र तैयार किया था। बहुजन समाज पार्टी ने तो आजतक कभी भी अपना चुनावी घोषणापत्र जारी ही नहीं किया।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि चुनाव के पहले चुनावी घोषणापत्रों की जरूरत ही नहीं है। इसका कारण यह है कि चुनावी घोषणापत्रों में पार्टियों के वे वायदे होते हैं, जिन्हें वे चुनाव में जीत के बाद पूरा करने की बात करते हैं। इससे पता चलता है कि राजनैतिक पार्टियों की सोच क्या है।
2014 में निर्वाचन आयोग ने पहले बार चुनावी घोषणापत्रों को चुनावी आचार संहिता की परिधि में लाने का काम किया है। जुलाई 2013 के अपने एक आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने इसकी आवश्यकता को रेखांकित किया था। उस समय कोर्ट के सामने एक मामला था, जो सरकार द्वारा लोगों में मुफ्त कंप्यूटर बगैरह बांटने से संबंधित था।
घोषणापत्रों में मतदाताओं से चांद लाने का वादा किया जाता है, जिसे पूरा नहीं किया जा सकता। अगला चुनाव आता है और फिर वायदों की संख्या और भी बढ़ा दी जाती है। यानी पहले किया गया वायदा तो पूरा नहीं हुआ और फिर कुछ और वायदे कर दिए जाते हैं। नये वायदों के आधार पर वोट मांगे जाते हैं, पर पुराने वायदों का हिसाब नहीं दिया जाता। हालांकि चुनाव के परिणाम उन घोषणापत्रों से प्रभावित नहीं होते, फिर भी यह पूरे योग के साथ हर चुनाव के पहले जारी किए जाते हैं। मतदाता आमतौर पर स्थानीय मुद्दों के आधार पर मतदान करते हैं और वे उम्मीदवारों के व्यक्तित्व से प्रभावित या आतंकित होकर भी मतदान करते हैं।
राष्ट्रीय पार्टियां राष्ट्रीय मुद्दों को उठाती हैं, तो क्षेत्रीय पार्टियां क्षेत्रीय मुद्दों को। इसलिए कोई मतदाता इन पर आधारित होकर मत देने के अपने अधिकार को कैसे प्रभावित कर सकता है। क्षेत्रीय दल तो विेदेशी मसलों पर कोई विचार ही नहीं रखते। इधर आम आदमी पार्टी ने लोगों से पूछ कर घोषणा पत्र तैयार करने का फार्मूला इजाद किया है, जो अन्य पार्टियों में भी लोकप्रिय हो रहा है। खासकर कांग्रेस ने इस पर अमल किया है या कम से कम वह इस पर अमल करने का दावा कर रही है।
भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्रों में अनेक समानताएं हैं। कांग्रेस का घोषणापत्र कहता है, ’’ आपकी पसंद, हमारा संकल्प’’। उसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक बदलाव के लिए 15 सूत्री कार्यक्रम है। यह स्वास्थ्य के अधिकार की वकालत करता है। वह 80 करोड़ लोगों को मध्यवर्ग में तब्दील करने का वायदा करता है और 8 फीसदी विकास दर प्राप्त करने की बात भी करता है। आगामी 5 सालों में यह 10 करोड़ लोगों को रोजगार देने का वायदा भी करता है। अर्थव्यवस्था को स्वस्थ बनाने के लिए यह और भी बहुत सारी बातें करता है। पाकिस्तान के साथ संबंध बेहतर करने की भी यह बात करता है और श्रीलंका के तमिलों के पुनर्वास में सहायता करने का भी वायदा करता है। चीन से साथ सीमा विवाद को सुलझाने से सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता हासिल करने का भी संकल्प व्यक्त करता है।
भारतीय जनता पार्टी हिंदुत्व के मसलों को किसी न किसी रूप में सामने ले ही आती है। 1999 का चुनाव इसका अपवाद था। वह सीधे या परोक्ष रूप से, साफ साफ या इशारों में राम मंदिर के मसले को जनता के सामने लाती है।
भारतीय जनता पार्टी ने भी अनेक वायदे कर डाले हैं। महंगाई पर नियंत्रण करना, रोजगार अवसर बढ़ाना और विदेशों में पड़े काले धन को वापस लाने की यह बात करते है। टैक्स व्यवस्था को सुगम बनाने के प्रति भी यह प्रतिबद्धता दिखाती है। महिलाओं के आरक्षण के मसले को भी यह उठाती है।
दुर्भाग्य से इन चुनावी घोषणापतत्रों को कानूनी पवित्रता प्राप्त नहीं है। कहने का मतलब इन्हें नहीं लागू किए जाने की स्थिति में लोग राजनैतिक पार्टियों के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं कर सकते। (संवाद)
भारत
चुनावी घोषणापत्र की प्रासंगिकता
पार्टियों को अपने चुनावी वायदों के प्रति जिम्मेदार बनाया जाए
कल्याणी शंकर - 2014-04-13 10:47
चुनावी घोषणा पत्रों को लेकर तीखी बहस चल रही है। इसकी प्रासंगिकता पर भी चर्चा हो रही है। खासकर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस इसको लेकर कुछ ज्यादा ही उत्तेजित हैं। दोनों ने अपने चुनाव घोषणापत्र जारी कर दिए हैं। कांग्रेस ने इसे पहले जारी किया था और भारतीय जनता पार्टी ने इसमें देर कर दी। घोषणापत्र जारी करने वाली वह शायद सबसे अंतिम पार्टी है। जिस दिन पहले चरण का मतदान हो रहा था, उसी दिन भारतीय जनता पार्टी ने इसे जारी किया।