यदि कांग्रेस को 100 के आसपास सीटें मिलीं, और तीसरे मोर्चे को 200 से ज्यादा, तो तो दोनों को मिलकर 272 का आंकड़ा हासिल करना कठिन नहीं होगा। मोर्चा बनना यद्यपि आसान काम नहीं है, लेकिन प्रधानमंत्री बनने का लोभ किसी एक पार्टी के नेता को सरकार बनाने के लिए जोड़तोड़ करने को प्रेरित करेगा।

सवाल उठता है कि सरकार बनाने की पहल कौन करेगा? फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि जयललिता ने इस मामले में अपने आपको सबसे आगे कर रखा है। उन्होंने अप्रत्यक्ष तौर पर अपने आपको प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश भी कर रखा है। कुछ समय के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी अपने आपको प्रधानमंत्री की दावेदार के रूप में प्रस्तुत किया था। लेकिन अन्ना हजारे ंके साथ उनके कड़वे अनुभव के बाद उन्होंने जयललिता को इस पद के लिए समर्थन कर दिया है।

अचरज की बात यह है कि मायावती इस मसले पर अभी तक चुप हैं। उनकी यह चुप्पी रहस्यमय है। इसका कारण यह है कि पिछले लोकसभा चुनाव के पहले उन्होंने अपने आपको खुलकर प्रधानमंत्री का दावेदार घोषित कर दिया था। वाम मोर्चा उनकी उम्मीदवारी की दावेदारी का समर्थन भी कर रहा था। लगता है कि मायावती को अपनी कमजोरी का अहसास हो गया है। खासकर वह 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद कुछ ज्यादा ही हतोत्साह हो गई हैं। उस चुनाव में उनको करारी शिकस्त मिली थी।

मुलायम सिंह यादव ने भी अभी तक अपना दावा पेश नहीं किया है, हालांकि वे एक समय कहा करते थे कि यदि एचडी देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बन सकते हैं, तो वे क्यों नहीं बन सकते। देश के सामने वे भले ही अपने आपको प्रधानमंत्री का दावेदार नहीं बता रहे हों, लेकिन अपने प्रदेश की जनता को संबोधित करते हुए वे जरूर कहते हैं कि यदि वे उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं, तो समाजवादी पार्टी के ज्यादा से ज्यादा उम्मीदवारों को विजयी बनाएं। हालांकि इस तरह की बात वे चुनाव प्रचार की शुरुआत में कर रहे थे। अब उन्होंने यह कहना भी छोड़ दिया है, क्योंकि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की सभाओं में उमड़ रही भारी भीड़ उन्हें चिंतित कर रही है।

उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी अतीत में अनेक मौके पर प्रधानमंत्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षा का इजहार कर चुके हैं, पर वे इस समय इस मसले पर चुप्पी साधे हुए हैं। प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखने के बावजूद, वे नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए जयललिता को प्रधानमंत्री बनने के लिए आगे आ सकते हैं।

जयललिता के प्रधानमंत्री बनने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। यह सच है कि कभी वे नरेन्द्र मोदी की प्रशंसक थीं, लेकिन अब उन्होंने अपने आपको भारतीय जनता पार्टी और नरेन्द्र मोदी से अलग कर लिया है। भाजपा उनकी पार्टी से तमिलनाडु में गठबंधन करना चाहती थी, पर जयललिता ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। हालांकि मोदी अब भी जयललिता को अपनी अच्छी दोस्त बताते हैं।

ममता बनर्जी के जयललिता के साथ होने के कारण वामपंथी दल तमिलनाडु की मुख्यमंत्री से दूर ही रहेंगे। तमिलनाडु मंे लोकसभा चुनाव में सीटों का तालमेल न हो पाने के कारण अभी कुछ समय पहले ही उनका गठबंधन टूटा है। लेकिन यदि कम्युनिस्टों को लगेगा कि किसी तीसरे मोर्चे की सरकार बनने की संभावना प्रबल है, तो नरेन्द्र मोदी को सत्ता से बाहर रखने के लिए वे भी बाहर से समर्थन देना पसंद करेंगे।

इसमें शक नहीं कि तीसरे मोर्चे की इस तरह बनी सरकार बहुत ही कमजोर होगी और यह ज्यादा दिनों तक नहीं टिकेगी। यदि नरेन्द्र मोदी की सरकार भी बनी, तो उसका भी वही ंहाल होगा। वह सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगी, क्योंकि उसे भी बहुत साधारण बहुमत ही हासिल रहेगा। यानी सरकार जिसकी बने, उसकी उम्र कम होगी और एक या दो साल के अंदर ही फिर से चुनाव हो सकते हैं। (संवाद)