2004 के लोकसभा चुनाव के समय केन्द्र में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार थी। उस समय इंडिया शाइनिंग का अभियान मीडिया से चलाया जा रहा था और अधिकांश चुनाव शास्त्री व चुनाव पूर्व सर्वेक्षण एनडीए की सरकार एक बार फिर बनवा रहे थे, लेकिन नतीजा बिल्कुल उलटा हुआ। भाजपा की हार हुई। कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और उसके नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार का गठन हुआ।
2009 में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए की हार की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन नतीजा चैंकाने वाला निकला। कांग्रेस की स्थिति पिछले चुनाव से काफी बेहतर हुई और यूपीए को लगभग पूर्ण बहुमत भी मिल गया। गौरतलब है कि 2004 में यूपीए की सरकार वामपंथी दलों के सहयोग से ही बनी थी और चार साल से भी ज्यादा समर्थन देने के बाद जब उसने गठबंधन को समर्थन देना बंद किया, तो फिर समाजवादी पार्टी उस सरकार की रक्षा में आई थी। पर 2009 में यूपीए अपने दम पर ही बहुमत के आंकड़े के बहुत नजदीक पहुंच गई थी और तृणमूल कांग्रेस व डीएमके जैसे अपने घटक दलों के बाहर जान के बाद भी उसकी सरकार गिरी नहीं।
इस बार भाजपा के सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर आने की चर्चा जोरों पर है। इसलिए यह स्वाभाविक है कि यह 272 का आंकड़ा पाने के लिए अन्य दलोे के साथ संपर्क में आने की कोशिश करे। इसने अपने मोर्चे में कुछ नये दलों को शामिल भी किया है। लेकिन इसके बावजूद इसे एनडीए के वर्तमान घटक दलों के बाहर के दलों को भी अपने साथ जोड़ना पड़ सकता है। इसके कारण यह उम्मीद की जा रही थी कि यह अन्य क्षेत्रीय दलों के प्रति अभी अच्छा रुख तैयार करेगी, ताकि चुनाव के बाद उन्हें मिलाने मे ंज्यादा समस्या का सामना नहीं करना पड़े।
पर आश्चर्य की बात है कि भारतीय जनता पार्टी इससे उलटा कर रही है। इसके प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने क्षेत्रीय दलों के नेताओ पर जोरदार हमले करने शुरू कर दिए हैं। शुरू में भाजपा उनपर हमले करने से परहेज कर रही थी, लेकिन अब उसने अपनी रणनीति बदल डाली है। आखिर इसका क्या कारण हो सकता है? एक कारण तो यह हो सकता है कि भाजपा को लग रहा होगा कि उसकी स्थिति बहुत मजबूत हो गई है और चुनाव के बाद वह अकली अथवा अपने वर्तमान चुनाव पूर्व सहयोगियों के साथ लोकसभा मे पूर्ण बहुमत हासिल कर लेगी। इसलिए अपनी जीत की संख्या बढ़ाने के लिए वह एकाएक काफी आक्रामक हो गई है।
नरेन्द्र मोदी की आक्रामकता के शिकार सभी गैर एनडीए दल और उनके नेता हो रहे हैं। उन्होंने मुलायम सिंह यादव और मायावती पर हमले करना तो शुरू से ही तेज कर रखा था, अब तो ममता बनर्जी भी उनके हमले से तिलमिला रही हैं। उन्होंने ममता बनर्जी पर निजी हमला करते हुए आरोप लगाया कि उनकी एक पेंटिग शारधा चिट फंड घोटाले में शामिल एक व्यक्ति को एक करोड़ 30 लाख रुपये में बिकी थी। उनके इस आक्रमण पर तृणमूल कांग्रेस ने तो मोदी को गुजरात का कसाई तक कह डाला।
नवीन पटनायक पर भी नरेन्द्र मोदी ने एक से बढ़कर एक शब्दों के बाण चलाए हैं। उन्होंने वहां के लोगों से यह भी पूछ डाला कि वे एक ऐसे व्यक्ति को 15 साल से मुख्यमंत्री के रुप मे कैसे बर्दाश्त कर रहे हैं, जो न तो आपसे कभी मिलता है और जो न आपकी भाषा जानता है। तमिलनाडु में नरेन्द्र मोदी ने जयललिता और करुणानिधि दोनों को ही अपने हमले का निशाना बनाया। वहां उन्होंने उस राज्य के 5 क्षेत्रीय दलों के साथ एक मोर्चा बनाया है और उस मोर्चे के लिए प्रचार कर रहे हैं। मोदी ने रजनीकांत से भी मुलाकात की है, जिसके कारण डीएमके और आल इंडिया अन्नाडीएमके में खासी खलबली है। नरेन्द्र मोदी के हमलों से क्षेत्रीय नेताओं को खतरा हो गया है। (संवाद)
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क्षेत्रीय नेताओं को मोदी से खतरा
विकास के ऊपर जाति और संप्रदाय हावी
कल्याणी शंकर - 2014-05-03 09:25
लोकसभा चुनाव अब समाप्ति को आ रहा है और राजनैतिक पार्टियों चुनाव के बाद उभरने वाली संभावनाओं की ओर देख रहे हैं और अभी से उनके अनुसार अपने को तैयार करने में लगे हुए हैं। आम धारणा यह है कि इस चुनाव के बाद लोकसभा त्रिशंकु होगी। लेकिन चुनावी परिणामों का जो ताजा इतिहास रहा है, उसे देखते हुए हम कुछ आश्चर्यजनक नतीजों की भी उम्मीद कर सकते हैं।