भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी घोषणा कर रहे हैं कि कांग्रेस का सफाया हो चुका है और भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार का बनना तय है। उनकी पार्टी को भी पूरी उम्मीद है कि 272 का आंकड़ा पार कर लिया जाएगा। इसके बावजूद भाजपा कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाह रही है। यहां पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।
यह चुनाव अनेक मामलों में पिछले अन्य चुनावों से अलग है। इस बार चुनाव का केन्द्र एक व्यक्ति रहा है और सभी पार्टियों का चुनाव अभियान उसी एक व्यक्ति के इर्द गिर्द घूमता रहा है। यही नहीं, पहली बार अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजर इस चुनाव पर बहुत ही गंभीरता से टिकी हुई है। उसका कारण भी नरेन्द्र मोदी का व्यक्तित्व ही है।
विदेशी मीडिया यह स्वीकार करता है कि नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री के रूप में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। वे अपने हाथों में सत्ता का केन्द्रीकरण कर सकते हैं और तानाशाही को बढ़ावा मिल सकता है। आरएसएस से उनके संबंधों को लेकर भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय खासा चिंतित है। उन्होंने 2002 में गोधरा में एक रेल डिब्बे के जलाए जाने के बाद हुए दंगों के लिए खेद तक जाहिर नहीं किया है। इससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय में और भी चिंता व्याप्त हो गई है।
लेकिन व्यापारिक और औद्योगिक क्षेत्रों में मोदी को लेकर अच्छा उत्साह भी है। उनके कारण अर्थव्यवस्था में स्थिरता आ सकती है। आज हम कम विकास दर की समस्या का सामना कर रहे हैं। मोदी के कारण विकास की दर तेज हो सकती है। निवेशकों में उत्साह पैदा हो सकता है। पिछले पांच साल से हमारे देश में प्रभावी सरकार नहीं है। मोदी एक प्रभावी प्रधानमंत्री बन सकते हैं और आर्थिक नीतियों के मोर्चे पर जो ठहराव आ गया है, वह समाप्त हो सकता है।
सरकार किसकी बनेगी और प्रधानमंत्री कौन होगा? इन सवालों का जवाब देते हुए ज्यादातर लोग यही कहते हैं कि भाजपा के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनेगी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही होंगे। मत सर्वेक्षणों के अनुसार एनडीए को 250 से 300 तक सीटें आ सकती हैं। यूपीए को ज्यादा से ज्यादा 120 सीटें आ सकती हैं और कांग्रेस को 100 के आंकड़े पर पहुंचना भी कठिन होगा। कांग्रेस के नेता खुद अपनी पार्टी को 140 से ज्यादा का आंकड़ा नहीं दे रहे हैं। आश्चर्य की बात है कि इसके बावजूद अभी भी कांग्रेस के कुछ नेता अपनी सरकार बनने का दावा कर रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए को पूर्ण बहुत मिलने की संभावना ज्यादा है। यदि कुछ सीटें कम भी पड़ी तों जयललिता, नवीन पटनायक और जगनमोहन रेड्डी जैसे नेताओं के सहयोग से बहुमत पाने की कोशिश हो सकती है।
भाजपा की सरकार बनने की प्रबल संभावनाओं के बीच कुछ क्षेत्रीय पार्टियां अपने लिए भी संभावना तलाशती नजर आ रही हैं। लेकिन किसी तीसरे मोर्चे की संभावना इसलिए नहीं दिखाई दे रही है, क्योंकि क्षेत्रीय दलों के नेताओ की अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं और उनके आपसी हितों में भी टकराव होते रहे हैं।
कांग्रेस पहले तो मोदी की गर्जना के सामने अपने को लाचार पा रही थी। उसके नेता पस्त थे। उनमें से अनेक ने तो चुनाव मे उतरने की हिम्मत भी नहीं की। पी चिदंबरम को भी चुनाव मैदान में उतरने का साहस नहीं हुआ। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तो वैसे भी चुनाव नहीं लड़ते हैं। उन्होंने सिर्फ एक बार चुनाव मैदान में उतर कर अपनी किस्मत आजमाई है, जिसमें वे पराजित हो गए थे।
इस बार कांग्रेस के सहयोगियों की संख्या भी कम है। यूपीए सिकुड़ गया है। एक समय यूपीए में डीएमके, पीएमके, एमडीएमके, टीआरएस और टीएमसी जैसी पार्टियां हुआ करती थीं। आज वे सभी बाहर हो चुके हैं। आज हालत यह है कि केरल और कर्नाटक को छोड़कर कहीं भी कांग्रेसी अपनी स्थिति बेहतर करने का दावा नहीं कर रहे हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी की सभाओं मंे लोग नरेन्द्र मोदी की सभाओं की अपेक्षा बहुत कम आ रहे हैं। कहीं कहीं तो सभा में लोगो की संख्या बहुत ही कम होती है। आंध्रप्रदेश की उनकी सभाओं में तो लोग आ ही नहीं रहे हैं। वहां प्रदेश के विभाजन को लेकर सोनिया गांधी और उनकी कांग्रेस के खिलाफ गुस्सा है। अमेठी में भी राहुल गांधी को कठिन मुकाबले का सामना करना पड़ रहा है। (संवाद)
भारत
अंतिम दौर में पहुंचा लोकसभा चुनाव
जोड़तोड़ की चर्चा शुरू
एस सेतुरमन - 2014-05-06 11:57
लोकसभा चुनाव की लंबी प्रक्रिया जल्द ही समाप्त हो जाएगी। अंतिम चरण का मतदान 12 अप्रैल को होगा। इस बीच नतीजों के बाद की स्थिति के बारे में चर्चाएं तेज हो गई हैं। अटकलबाजियों का दौर शुरू हो गया है। एक सवाल यह खड़ा किया जा रहा है कि यदि लोकसभा त्रिशंकु रही, तो फिर क्या होगा?