इस समय निलंबित विधानसभा में आम आदमी पार्टी के 27 और कांग्रेस के 8 विधायक हैं। भाजपा के 31 और उसके सहयोगी अकाली दल के एक विधायक हैं। एक विधायक जनता दल(यू) का और एक निर्दलीय हैं। आम आदमी पार्टी से निकाले गए एक अन्य विधायक भी हैं, जिन्हें विधानसभा में निर्दलीय विधायक के रूप में ही माना जा सकता है।

सवाल उठता है कि विधानसभा को जिंदा रखने में क्या कांग्रेस की कोई राजनीति रही है? अपने 8 विधायकों के बूते कांग्रेस तो अपनी सरकार बना ही नहीं सकती है। ज्यादा से ज्यादा वह एक बार फिर अरविंद केजरीवाल को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनवा सकती है, हालांकि उसके समर्थन के बावजूद आम आदमी पार्टी के समर्थन में 35 विधायक ही जुटते हैं। जनता दल (यू) का समर्थन ही उसे बहुमत का आंकड़ा दिला सकता है।

राजनैतिक गलियारों में चर्चा है कि कांग्रेस एक बार फिर केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनने का प्रस्ताव दे सकती है। केन्द्र की सत्ता से बाहर होने के बाद कांग्रेस की भूमिका विपक्षी दल की रह जाएगी और आम आदमी पार्टी ने भी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को छोड़कर भाजपा को अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी मान कर ही चुनाव प्रचार किया।

हालांकि आम आदमी पार्टी के नेता इस बात को गलत मानते हैं कि केजरीवाल एक बार फिर कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाएंगे। आम आदमी पार्टी विधानसभा का चुनाव चाहती है और इससे कम या इससे अधिक उसे कुछ भी मंजूर नहीं। लेकिन भारतीय जनता पार्टी के नेता इस संभावना से इनकार नहीं करते। उनका कहना है कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस की ही बी टीम है और केजरीवाल ने अबतक जो भी किया है, वह कांग्रेस को फायदा पहुंचाने के लिए किया है।

लेकिन भारतीय जनता पार्टी में कुछ ऐसे नेता भी हैं, जो इसी विधानसभा में अपनी सरकार बनाना चाहते हैं। उनके पास दिल्ली विधानसभा में 31 विधायक हैं। अकाली दल का एक सहयोगी विधायक भी उनके साथ है। भाजपा के एक बागी ने निर्दलीय लड़कर चुनाव जीता। आम आदमी पार्टी से निकाले गए विधायक बिन्नी भी उसके साथ हो सकते हैं। इस तरह भाजपा के पास इस समय 34 विधायक हैं। सरकार बनाने के लिए दो और विधायक चाहिए।

आम आदमी पार्टी के विधायकों पर उसकी नजर टिकी हुई है। दिल्ली विधानसभा में 70 विधायक हैं, जिनमें से एक स्पीकर भी हैं। यदि भाजपा दो आम आदमी पार्टी के विधायकों का इस्तीफा करवा देती है, तो वह बहुमत में आ जाएगी, क्योंकि तक विधानसभा में प्रभावी विधायक 67 होंगे और 34 विधायकों के साथ वह अपना बहुमत साबित करने में सफल होगी।

पर भाजपा की एक समस्या यह है कि उसके तीन विधायक लोकसभा के चुनाव लड़ रहे हैं और तीनों के जीत जाने की संभावना है। वैसी हालत में उसकी संख्या घटकर 28 हो जाएगी और फिर उसे आम आदमी पार्टी के और भी ज्यादा विधायकों की जरूरत पड़ जाएगी। वैसे भाजपा के कुछ नेता दावा कर रहे हैं कि आम आदमी पार्टी के अनेक विधायक उनके संपर्क में हैं और यदि पार्टी आलाकमान ने इजाजत दी, तो वे अपनी सरकार बना सकते हैं। उनके दावे जो भी हों, दल बदल कानून के कारण दो तिहाई आम आदमी पार्टी विधायक ही मूल पार्टी से अलग हो सकते हैं। और 18 वैसे विधायको का समर्थन पाना भाजपा के लिए आसान नहीं।

फिर भी जबतक विधानसभा भंग नहीं होती, दिल्ली में प्रदेश सरकार के गठन को लेकर संशय बना रहेगा और अटकलबाजियों का बाजार भी गर्म रहेगा। (संवाद)