उन्होंने अपनी पुस्तक ’’ माई प्रेसिडेंशियल इयर’’ में उन्होंने कहा था कि बहुदलीय व्यवस्था वाले भारत में हम गठबंधन की राजनीति से बच नहीं सकते हैं। उनका कहना था कि देश को इस गठबंधन की राजनीति से तालमेल बैठाकर रखना होगा। उन्होंने तो यहां तक कह दिया था कि एक दलीय शासन भारत में अतीत की चीज बन गई है।

पर 2014 के लोकसभा चुनाव ने गठबंधन की राजनीति का अंत कर दिया है। हमारे देश में नरेन्द्र मोदी एक करिश्माई नेता हैं। उनके करिश्मे का ही असर है कि 1984 के बाद 30 सालों के अंतराल में देश में पहली बार किसी पाटी्र्र को अपने बूते बहुमत प्राप्त हुआ है।

मोदी की इस जीत का एक असर यह हुआ है कि भारतीय जनता पार्टी, जो एक उत्तर भारतीय पार्टी के रूप में जानी जाती थी, अब वास्तव में राष्ट्रीय आयाम पा चुकी है। यह उसे इलाकों में प्रवेश कर गई हैं, जहां उसका नामो निशान नही ंथा। उत्तर पूर्व भारत में तो उसे शानदार सफलता मिली है, जबकि दक्षिण भारत में भी वह स्थापित होती दिखाई पड़ रही है।

कांग्रेस ने 1952 के लोकसभा चुनाव में 364, 1957 में 371 और 1962 में 361 सीटों पर सफलता पाई थी। 1967 में पहली बार उसकी सीटों की संख्या 300 से कम हुई, लेकिन गरीबी हटाओ के नारे पर 1971 में एक बार फिर उसे प्रचंड बहुमत मिला था। 1977 में उसकी सीटें 200 से भी कम हो गई और वह सत्ता से बाहर हो गई थी। लेकिन 1980 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर उसे भारी बहुमत मिला। 1984 में इन्दिरा की हत्या के बाद हुए चुनाव में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने सीटें पाने का नया रिकार्ड बना दिया था। उस समय राहुल गांधी इन्दिरा की मौत के बाद सहानुभूति लहर पर सवार होकर 404 लोकसभा सीटंे कांग्रेस को दिला चुके थे।

उसके बाद किसी भी चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं हासिल हुआ। 1989 से देश में गठबंधन की राजनीति का युग शुरू हो गया था। 1992 में कांग्रेस की अकेली सरकार बनी थी, पर वह बहुमत की सरकार नहीं थी।

एक दलीय शासन व्यवस्था की शुरुआत स्वागत योग्य है, चाहे सरकार जिस पार्टी की भी हो और नेता कोई भी है। अभी तो भारतीय जनता पार्टी को गठबंधन की राजनीति समाप्त करने का श्रेय मिला है। सरकार उसी की बन रही है। उसके नेता नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनेगी। नरेन्द्र मोदी को ही इसका श्रेय जाएगा कि उन्होंने लड़खड़ा रही भारतीय जनता पार्टी को इस मुकाम पर पहुंचा दिया है।

अभी यह पता नहीं कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के घटक दलों की क्या भूमिका होगी? क्या उन्हें सरकार में शामिल किया जाएगा या वे बाहर रहेंगे? शिवसेना और अकाली दल उसके साथ बहुत सालों से लगातार बने हुए हैं। चन्द्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी अभी शामिल हुई है। उसे इसका काफी फायदा भी हुआ है। वे राजनैतिक रूप से हाशिए पर पहुंच गए थे, लेकिन नरेन्द्र मोदी के कारण उन्हें जीवनदान मिल गया है। वे फिर से आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बन रहे हैं। यह पता नहीं कि उनकी पार्टी केन्द्र की सरकार में सत्ता में होना चाहेगी या नहीं।

ममता बनर्जी, जयललिता और नवीन पटनायक को भी शानदार सफलताएं मिली हैं। पहले उम्मीद की जा रही थी कि वे केन्द्र में सरकार के गठन में भूमिका निभाएंगे, लेकिन एनडीए को प्रचंड बहुमत मिलने और भाजपा के अकेले बहुमत पाने के बाद उनके पास विपक्ष में बैठने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। ममता और नवीन पटनायक ने साफ कर दिया है कि वे भाजपा से कोई संबंध नहीं रखेंगे, लेकिन जयललिता ने नरेन्द्र मोदी के पीएम बनने का स्वागत किया है। (संवाद)