जब नतीजे सामने आए, तो सबकुछ उलटा दिख रहा है। भारतीय जनता पार्टी को पश्चिम बंगाल में 17 फीसदी मत मिले, जो उसे 2011 के विधानसभा चुनाव में मिले 4 फीसदी मतों के 4 गुने से भी ज्यादा हैं, हालांकि उसे मात्र दो सीटें ही मिलीं। भाजपा को 17 फीसदी मत मिलना बहुत आश्चर्यजनक नहीं है। इतने मत पाकर मात्र दो सीटो पर जीतना भी आश्चर्यजनक नहीं है, लेकिन सबसे ज्यादा आश्चर्य की बात यह है कि उसके कारण ममता बनर्जी को नहीं, बल्कि वाम दल और कांग्रेस को नुकसान हो गयज्ञं
ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के मत 2 फीसदी बढ़े और कांग्रेस के मत दो फीसदी घटे, लेकिन वाम दलों के मत प्रतिशत 41 फीसदी से घटकर 28 फीसदी पर आ गए। अब वाम दलों के पास इस घटना का क्या विश्लेषण है। उसके प्रकाशनों में जो संपादकीय लिखे जा रहे हैं, उनमें इसका जवाब नहीं दिया जा रहा है। वे संपादकीय सूचनापरक नहीं हैं, बल्कि उपदेशात्मक हैं और कहा जा रहा है कि कार्यकत्र्ताओं को आपस में और भी जुटकर रहने की जरूरत है।
वाम मोर्चे के चेयरमैन बिमान बोस और पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का सिर्फ यही कहना है कि चुनाव नतीजों को वे समझ नहीं पा रहे हैं। वे यह भी कह रहे हैं कि आंकड़ों का गहराई से विश्लेषण करना होगा।
सीपीएम को मात्र दो स्थानों पर जीत हासिल हुई और जीत का अंतर भी बहुत कम था। मोहम्मद सलीम ने दीपा दास मुंशी को रायगंज से मात्र एक हजार मतों से पराजित किया, जबकि मुर्शिदाबाद से इसके उम्मीदवार बदरुद्दोजा खान 18000 मतों से जीते। कहने की जरूरत नहीं कि सीपीएम के मात्र दो उम्मीदवार ही इस बार पश्चिम बंगाल से चुनाव जीत सके। इस प्रदेश में इतनी बड़ी शिकस्त वाम दलों ने कभी नहीं खाई थी।
सबसे दिलचस्प बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी ने मुस्लिम बाहुल्य वाले मुर्शीदाबाद में अपने मत प्रतिशत कई गुणा बढ़ा लिए। अन्य अनेक मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में भी भाजपा के वोट शेयर बहुत बढ़े। इसे देखकर लगता हैं कि जब बहुकोणीय मुकाबला हो, तो चुनाव के पहले किसी प्रकार की भविष्यवाणी करना बहुत ही कठिन काम है।
हावड़ा लोकसभा क्षेत्र में 2013 में उपचुनाव हुआ था। उस उपचुनाव के आंकड़ों के साथ यदि हम 2014 के चुनाव की तुलना करें, तो स्थिति कुछ स्पष्ट हो जाती है। 2013 में भाजपा का वहां कोई उम्मीदवार नहीं था। भाजपा ने तृणमूल कांग्रेस को गुड बुक में रखने के लिए यह फैसला किया था, ताकि उसका उम्मीदवार उसके कारण नहीं हारे। उसके पहले वाले चुनाव में भाजपा को 60 हजार मत वहां से मिले थे। भाजपा चाहती थी कि उसके मत तृणमूल को ट्रांसफर हो जाय। जब तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार ने सीपीएम के उम्मीदवार को मात्र 20 हजार मतों से पराजित किया था।
2014 के चुनाव में भाजपा का अपना उम्मीदवार था। इसके बावजूद तृणमूल का उम्मीदवार करीब दो लाख मतों से जीता। आखिर इसका कारण क्या हो सकता है? इससे साफ होता है कि मोदी फैक्टर ने वहां काम किया। मोदी के कारण मुस्लिम मत एकतरफा तृणमूल कांग्रेस को मिले, जिसके कारण उसकी जीत का मार्जिन 20 हजार से बढ़कर दो लाख हो गया। पिछले चुनाव में मुस्लिम मत तृणमूल, कांग्रेस और सीपीएम में बंट गए थे। पर मोदी के डर ने मुसलमानों को एकतरफा वोटिंग करने पर विवश कर दिया और इसका फायदा तृणमूल कांग्रेस को मिला।
लगता है कि पूरे प्रदेश में यही पैटर्न दुहराया गया है। भारतीय जनता पार्टी को जो वोट मिलने थे, वे मिले, लेकिन मुस्लिम मतदताओं ने तृणमूल कांग्रेस को एकमुश्त मतदान किया, इसके कारण तृणमूल के भी मत बढ़े। ऐसी स्थिति में वाम दलों को नुकसान हो गया, क्योंकि उनके समर्थक मुस्लिम मतदाता भी तृणमूल की ओर चले गए। (संवाद)
भारत
पश्चिम बंगाल में वामदल हाशिए पर
भाजपा को मिली बड़ी बढ़त
आशीष बिश्वास - 2014-05-23 05:02
कोलकाताः लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद पश्चिम बंगाल में एक तथ्य सबका सिर चकरा रहा है और वह यह है कि भाजपा की बढ़त से वाम दल हाशिए पर क्यों चले गए। भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ रहा है, यह तो साफ दिखाई दे रहा था, लेकिन इसके कारण माना जा रहा था कि तृणमूल कांग्रेस को नुकसान होगा और वामपंथी दलों को फायदा होगा।