उस समय संकट सिर्फ आर्थिक मोर्चे पर ही नहीं था, बल्कि देश में अंातरिक कलह भी चरम पर था। मंडल और मंदिर का आंदोलन चल रहा है। वैसी स्थिति में अर्थव्यवस्था का प्रबंधन और भी मुश्किल काम था, लेकिन नरसिंह राव ने कार्यकुशलता का परिचय देते हुए देश के अर्थप्रबंधन को सही तरह से संभाला। उस समय उन्होंने मनमोहन सिंह को वित्तमंत्री नियुक्त किया था। देश मंे आर्थिक सुधार के कार्यक्रम चलाए थे। एक से एक साहसपूर्ण आर्थिक नीतियों को अमल में लाया गया था और पूरे आर्थिक कार्यक्रम को नई आर्थिक नीति कहा गया था।
लोगों को भ्रम था कि उन नीतियों के पीछे मनमोहन सिंह थे, लेकिन प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए मनमोहन सिंह ने जिस तरह से आर्थिक नीतियों के मोर्चे पर संकट पैदा किया, उससे जाहिर होता है कि नई आर्थिक नीति को सफलता पूर्वक लागू करने और सफल बनाने में नरसिंहराव का ही हाथ था और मनमोहन सिंह महज उनके मोहरे थे। यदि मनमोहन सिंह में उन नीतियों के प्रति प्रतिबद्धता होती और उन नीतियों को लागू करना का राजनैतिक कौशन होता, तो वे प्रधानमंत्री रहते हुए भी वैसा कर सकते थे, परन्तु वे वैसा करने में विफल रहा। जाहिर है, उनमें उन नीतियों के प्रति न तो प्रतिबद्धता थी और न ही उन्हें लागू करवाने का राजनैतिक कौशल और वित्त मंत्री के रूप में यदि वे सफल रहे, तो उसका कारण नरसिंह राव का राजनैतिक नेतृत्व और राजकौशल था। अल्पमत सरकार का नेतृत्व करने के बावजूद नरंिसंहराव सरकार ने वह चमत्कार किया, जो बहुमत वाल सरकार भी कर पाने में विफल होती है।
सवाल उठता है कि क्या अपनी पार्टी के बूते ही बहुमत सरकार चलाने वाले नरेन्द्र मोदी देश के सामने खड़ी आर्थिक चुनौतियों पर काबू पा सकेंगे? सबसे बड़ी चुनौती तो बढ़ती महंगाई है, जो घटने का नाम ही नहीं ले रही है। इतने लंबे समय तक शायद दुनिया के किसी देश में कभी महंगाई की दर ऊंची रही हो। महंगाई की दर ऊंची क्यों है, इसका एक बड़ा कारण तो भ्रष्टचार है। नई आर्थिक नीतियों को लागू करते समय कहा गया था कि उनसे भ्रष्टाचार कम होगा। सरकारी नियंत्रण को भ्रष्टाचार की जननी कहा जाता है। कोटा परमिट लाइसेंस राज को समाप्त कर भ्रष्टाचार को कम करने का दावा किया जा रहा था, लेकिन वह दावा कितना झूठा था, उसकी घोषणा खुद मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री के पद पर बैठे बैठे ही कर डाली थी। उनका कहना था कि नई आर्थिक नीतियों के कारण भ्रष्टाचार फैला है। यानी वित्तमंत्री के रूप में उन्होंने भ्रष्टाचार कम होने के दावे किए थे, उसे गलत होने की घोषणा उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में कर दी।
इसलिए महंगाई को यदि कम करना है, तो भ्रष्टाचार को मिटाना या कम करना होगा। सच कहा जाय तो नई आर्थिक नीतियों ने सरकार की स्थिति एक बिचैलिए की बना दी है। उद्योग और व्यापार पर से भले ही अनेक नियंत्रण हटा दिए गए हों, लेकिन अभी भी सरका सबसे बड़ी उत्पादक और सबसे बड़ी उपभोक्ता भी है। अर्थव्यवस्था की ऊंचाइयां अभी भी उसके ही कब्जे में है। अपनी नीतियों से वह अभी भी अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण करती है। उसका यह नियंत्रण समाप्त होने वाला नहीं है ओर यह होना भी नहीं चाहिए, लेकिन निजी क्षेत्र के विकास और विस्तार ने सरकारी तंत्र को भ्रष्ट बनाने में जबर्दस्त भूमिका निभाई है। भ्रष्टाचार के कारण हमारे देश की अर्थव्यव्यवस्था एक उच्च लागत की अर्थव्यवस्था में तब्दील होती जा रही है। यदि रेलवे में भ्रष्टाचार होगा, तो उसका असर रेल किराए और भाड़े पर पड़ता है और पावर सेक्टर का भ्रष्टाचार बिजली महंगा कर देता है। पेट्रोलियम सेक्टर का भ्रष्टाचार सबकुछ महंगा कर देता है। इस तरह भ्रष्टाचार का साम्राज्य विस्तार पा रहा है और वस्तुओं की कीमतें बढ़ती जा रही है।
इसलिए महंगाई पर लगाम लगाने की एक आवश्यक शर्त है भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना। मनमोहन सिंह की सरकार ने भ्रष्टाचार के मामले को गंभीरता से नहीं लिया। इसके कारण न केवल उनकी कांग्रेस का सफाया हुआ, बल्कि उसकी सहयोगी पार्टियों के भी सूफडऋे साफ हो गए। भारतीय जनता पार्टी का पूर्ण बहुमत से सत्ता में आने का असली कारण यही है कि देश के लोगों को लगा कि नरेन्द्र मोदी देश को भ्रष्टाचार से मुक्त कर सकते हैं, क्योंकि उन पर आजतक भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे हैं। सरकार चलाने का उनका तरीका भी भ्रष्टाचार विरोधी रहा है। इसके कारण भी उनके प्रति लोगों में विश्वास जगा और कांग्रेस की तरह की रसातल में जा रही भारतीय जनता पार्टी केा उन्होंने पूर्ण बहुमत दिलवा दिया। ऐसा करके उन्होंने एक असंभव लगने वाली चीज को संभव बना दिया।
पर क्या वे भ्रष्टाचार और महंगाई पर नियंत्रण कर सकते हैं? सबसे पहले तो उन्हें राजकोष की चिंता करनी होगी, जिसका भारी दुरुपयोग किया जा रहा है। यूपीए सरकार ने अनेक ऐसी योजनाएं बना रखी हैं, जिनपर अरबों खरबों रुपये खर्च हो रहे हैं। वे योजनाएं गरीब और समाज के कमजोर लोगों को फायदा दिलाने के नाम पर चलाई जा रही हैं, लेकिन कमजोर लोगों को उनका कोई फायदा नहीं मिल रहा है। अब या तो उन योजनाओं को सही तरीके से चलाई जाए या उन्हें बंद ही कर दिया जाय। सही तरीके से चला पाना तो संभव नहीं दिखता, क्योंकि भ्रष्टाचार इतनी आसानी से समाप्त होने वाला नहीं है। तो क्या उन योजनाओं को बंद करने की हिम्मत नरेन्द्र मोदी दिखा पाएंगे? (संवाद)
भारत
नई सरकार के सामने चुनौतियों का पहाड़
क्या देश को अर्थसंकट से बाहर कर पाएंगे मोदी
उपेन्द्र प्रसाद - 2014-05-27 09:36
तीन दशक बाद पहली बार केन्द्र में एक पार्टी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी है। यह प्रशासन की दृष्टि से अच्छी बात है, पर सवाल यह है कि नरेन्द्र मोदी की सरकार उन समस्याओं को हल कर पाएगी, जो आज हमारे देश के सामने खड़ी है। 1991 में नरसिंहराव की सरकार जब बनी थी, तो उस समय भी भारी अर्थसंकट चल रहा था। महंगाई बढ़ी हुई थी। विदेशी मुद्राकोष खाली पड़ा था। सरकार को देश की प्रतिष्ठा अंतरराष्ट्रीय बाजार में बचाने के लिए सोने तक को गिरवी रखना पड़ा था। वैसे माहौल में नरसिंह राव ने सत्ता संभाली थी और उनकी पार्टी के पास बहुमत भी नहीं था।