अब भारतीय जनता पार्टी के केरल के नेता कह रहे हैं कि केरल ने देश भर में चल रही मोदी लहर को रोकने की सजा पाई है। जहां देश भर में मोदी लहर के कारण उनकी और उनकी समर्थक पार्टियों की जीत हुई, केरल में उसे शून्य विजय से ही संतोष करना पड़ा है। हार के बाद ओ राजगोपाल ने केरल के मतदाताओं के प्रति अपने असंतोष का इजहार करने मंे देर नहीं लगाई।

केन्द्र में केरल का प्रतिनिधित्व नहीं होने के दुख का एक कारण यह भी है कि पिछली मनमोहन सरकार में इस प्रदेश के 8 सांसद उसमें शामिल थे। अब केरल को सिर्फ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उस वायदे का सहारा है कि केरल के साथ इसलिए सौतेला व्यवहार नहीं किया जाएगा, क्योंकि उसने भाजपा के सभी उम्मीदवार को हरा दिया। श्री मोदी ने यह आश्वासन केरल से मिलने गए एक शिष्टमंडल के सदस्यों को दिया।

केरल इस बात का संतोष कर सकता है कि पड़ोसी राज्यों के जिन दो मंत्रियों को केन्द्र सरकार में जगह दी गई है, वे केरल से जुड़े रहे हैं। वे दोनों तमिलनाडु और कर्नाटक के हैं। कर्नाटक के सदानन्द गौड़ा रेलमंत्री बने हैं। उनका केरल से नाता रहा है और वे मलयालम बोलना भी जानते हैं। कन्याकुमारी के भाजपा सांसद, जो अब मंत्री भी बन गए हैं, भी केरल प्रेमी हैं और वे भी धाराप्रवाह मलयालम बोल सकते हैं। केरल के विकास पर उनकी नजर बनी रहने की संभावना है।

सेकुलर कैंप अभी भी केरल के प्रति मोदी सरकार के व्यवहार को लेकर सशंकित है, लेकिन पर्यावरणवादी केन्द्र मे हुए बदलाव को लेकर उत्साहित हैं। उन्हें लगता है कि केन्द्र की भाजपा सरकार अपने चुनावी वायदे के अनुरूप पश्चिमी घाट को बचाने के लिए माधव गाडगिल रिपोर्ट पर अमल करेगी। वे अपने बचन को पूरा करेगी और प्रदेश को महाविनाश से बचाएगी।

अभी तक के अनुभव यही बताते हैं कि प्रदेश और केन्द्र में एक ही पार्टी की सरकार होने से कोई जरूरी नहीं कि राज्य का विकास हो ही जाय। उदाहरण के लिए कांझीकोड में रेल के कारखाने को लें। केन्द्र और प्रदेश में एक ही सरकार होने के बावजूद यह कारखाना अभी तक कागज में ही है। उसी तरह केरल मे एक आई आई टी खोलने की पुरानी मांग अभी तक पूरी नहीं हो सकी है।

दूसरी तरफ सीपीएम के नेतृत्ववाली एलडीएफ सरकार ने अपने कार्यकाल में केन्द्र सरकार से अनेक प्रकार की सहायता हासिल करने में सफलता पाई थी। रक्षा से जुड़ी अनेक परियोजनाओं की शुरुआत उसी दौरान केरल मे हो सकी थी। पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटोनी ने खुद कहा था कि वाम मोर्चे की सरकार ने उनके साथ पूरा सहयोग किया था और उसके कारण ही रक्षा परियोजनाओ ंपर केरल में काम हो सके थे, जबकि उस तरह का सहयोग उनकी अपनी कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के बावजूद नहीं मिल सका था। इस तरह यह मिथ टूट जाता है कि तेज विकास होने के लिए केन्द्र और राज्य में एक ही पार्टी या मोर्चे की सरकार जरूरी है। (संवाद)