तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि कैबिनेट के गठन में नरेन्द्र मोदी ने अपने मन की चलाई है। उन्होंने ने तो क्षेत्रीय, जातीय और सांप्रदायिक दबावों के तहत काम किया और न ही अपने सहयोगी दलों के दबाव में आए। शपथग्रहण समारोह के दौरान एमडीएमके के नेता वाइको को आमंत्रित नहीं करके उन्होंने दिखा दिया कि वे विदेश नीति को प्रभावित करने की इजाजत अपने सहयोगी दलों को भी नहीं दे सकते। गौरतलब है कि वाइको शपथग्रहण समारोह में श्रीलंका के राष्ट्रपति को शामिल करने का विरोध कर रहे थे। उन्हें सही जगह दिखाकर मोदी ने अपने दोस्तों और दुश्मनों को बता दिया है कि विदेश नीति और रक्षा संबंधी मसलों पर क्षेत्रीयता की राजनीति को हावी नहीं होने दिया जाएगा और यह केन्द्र सरकार के अधीन ही रहेगी।

अब यह देखना है कि नरेन्द्र मोदी तिस्ता नदी के पानी के बंटवारे के मसले पर बांग्लादेश से समझौते करने में ममता के दबाव में आते हैं या नहीं। गौरतलब है कि जब मनमोहन सिंह इस मसले पर समझौता करने के लिए बांग्लादेश जा रहे थे, तो ममता बनर्जी ने इसका विरोध किया था और समझौता संभव नहीं हो सका था। नरेन्द्र मोदी की खासियत यह है कि उनकी पार्टी को अपनू बूते बहुमत प्राप्त है और वे अपने निर्णयों को अपने दल क बूते ही लागू करने और करवाने में सक्षम हैं। उनकी सरकार को उनके सहयोगी दलों के नाराज होने से गिरने का कोई खतरा नहीं है। मनमोहन सिंह को यह सुविधा प्राप्त नहीं थी। उनकी सरकार अपने अस्तित्व के लिए सहयोगी दलों पर निर्भर थी और सहयोगी दल सोनिया गांधी के मार्फत सरकार पर दबाव डालकर उसे अनेक बार अपनी नीतियों को बदलने के लिए बाध्य कर देते थे।

सिर्फ मामला बहुमत या अल्पमत का भी नहीं है। मनमोहन सिंह और नरेन्द्र मोदी के स्वभाव मंे भी फर्क है। मनमोहन सिंह दब्बू किस्म के इंसान हैं, जब नरेन्द्र मोदी दबंग व्यक्तित्व के धनी हैं। मोदी के दबंग व्यक्तित्व का ही यह कमाल है कि उनकी भारतीय जनता पार्टी का संरक्षक आरएसएस भी कैबिनेट गठन की प्रक्रिया को प्रभावित नहीं कर सका। अटलबिहारी वाजपेयी सरकार के गठन पर संघ की छाप पड़ी थी। संघ ने 1998 में जसवंत सिंह को वित्त मंत्री बनने से रोक दिया था, जबकि वाजपेयी उन्हें ही वित्त मंत्रालय देना चाहते थे। बाल ठाकरे ने भी अटलबिहारी वाजपेयी पर अपना धौंस जमाते हुए सुरेश प्रभु को अटल कैबिनेट से बाहर कर लिया था। इस बार उद्धव ठाकरे ने भी कुछ वैसा करने की ही कोशिश की, लेकिन उनकी सेना के मंत्री अनंत गीते को झख मारकर मोदी द्वारा आबंटित मंत्रालय संभालना पड़ रहा है।

कैबिनेट गठन में भाजपा के प्रदेश मंुख्यमंत्रियों की भी नहीं चली। जब राजस्थान और छतीसगढ़ से एक भी मंत्री कैबिनेट में शामिल होता दिखाई नहीं दे रहा था, तो दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने मुश्किल से एक एक मंत्री उसमें डलवाए। मंत्रिमंडल में बिहार और उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व कुछ ज्यादा है। (संवाद)