अपने चुनाव प्रचार के दौरान नरेन्द्र मोदी आर्थिक मसलों और रोजगार के बारे में तो बहुत कुछ बोल रहे थे, लेकिन उनकी विदेश नीति के बारे में कुछ पता नहीं चल रहा था। इस मसले पर वे बोल नहीं रहे थे। पड़ोसी देशों की नजर नई सरकार की विदेशी नीति को समझने पर लगी हुई थी। यही कारण है कि जब शपथ ग्रहण समारोह में उन्हें आमंत्रण मिला, तो उन्हें अच्छा लगा।
हालांकि नेशनल मीडिया ने पाकिस्तान पर ही ज्यादा ध्यान केन्द्रित किया, जबकि श्रीलंका के राष्ट्रपति की यात्रा नवाज की यात्रा से भी ज्यादा महत्वपूर्ण थी। तमिलनाडु के मीडिया मे ंउनकी यात्रा को प्रचार मिला। अन्य देशों की सरकारों के प्रमुखों की तो उपेक्षा ही कर दी गई।
श्रीलंका के राष्ट्रपति की भारत यात्रा का तमिलनाडु की पार्टियों ने विरोध किया। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गटबंधन की चारों घटक पार्टियों ने इसका विरोध किया और तमिलनाडु की सत्तारूढ़ आल इंडिया अन्ना डीएमके के अलावा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी डीएमके ने भी इसका विरोध किया। केन्द्र सरकार ने उन विरोधों को तवज्जो नहीं दिया। राजग के तमिल नेता वाइको ने तो जंतर मंतर पर श्रीलंकाई राष्ट्रपति के खिलाफ प्रदर्शन भी किया।
श्रीलंका राष्ट्रपति के विरोध को दरकिनार कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साफ साफ संकेत दे दिया है कि प्रदेश की क्षेत्रीय राजनीति के दबाव को विदेश नीति पर हावी नहीं होने दिया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो किया, वह मनमोहन सिंह से बिलकुल उलटा था। जब पिछले साल राष्ट्रमंडल देशों की बैठक श्रीलंका में हो रही थी, तो प्रधानमंत्री वहां जाने वाले थे, पर तमिलनाडु की पार्टियों द्वारा उनकी यात्रा का विरोध किया जाने लगा। उसे विरोध के दबाव में उन्होंने अपनी यात्रा कैंसिल कर दी थी।
श्रीलंका राष्ट्रपति के भारत दौरे के हो रहे विरोध के दबाव मंे न आकर नरेन्द्र मोदी ने एक अच्छा संदेश दुनिया भर में भेजा है। इसके पहले क्षेत्रीय कारणों से अनेक बार भारत को विदेश नीति के मसले पर फजीहत का सामना करना पड़ा है। तिस्ता नदी के जल के बांग्लादेश के साथ बंटवारे के मसले पर भारत सरकार ने अपने पड़ोसी देश के साथ सहमति बना ली थी। सहमति पत्र पर दस्तखत किया जाना था। उसके लिए मनमोहन सिंह का बांग्लादेश दौरा हो रहा था, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीच मंे अड़ंगा डाल दिया। मनमोहन सिंह की बांग्लादेश यात्रा तो हुई, लेकिन तीस्ता नदी के मसले पर समझौता नहीं हो सका।
तमिलनाडु के विरोध को नजरअंदाज कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ममता बनर्जी को भी संदेश भेज दिया है कि विदेश नीति के मसलों पर वे दखलंदाजी नहीं कर सकती है। बांग्लादेश में भी इसका संदेश सकारात्मक गया है। तमिलनाडु की तो राजनीति ही पिछले कुछ दशकों से श्रीीलंका केन्द्रित हो गई है। पिछले दो दशकों से सभी चुनावों के पहले श्रीलंका का मसला उभरता है और उस पर राजनीति की जाती है। फिलहाल तमिलनाडु की पार्टियां श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को युद्ध अपराधी घोषित कर उनपर मुकदमा चलाने की मांग कर रही है। उन पर आरोप है कि उन्होंने श्रीलंकाई तमिलों का नरसंहार किया है और उनके मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन किया है।
भारतीय मछुआरों की श्रीलंका सेना द्वारा होने वाली गिरफ्तारी भी तमिल राजनीति का एक बड़ा मुद्दा रहता है। मछली पकड़ने गए भारतीय मछुआरे जब श्रीलंका के इलाके में गलती से चले जाते हैं, तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है। कई बार तो उन्हें मार भी दिया जाता है। श्रीलंका के राष्ट्रपति के साथ हुई बातचीत में इस समस्या के हल के लिए दोनों देशों के अधिकारियों की वार्ता चलाते रहले का मेकैनिज्म तैयार करने का फैसला किया गया है। (संवाद)
भारत
नरेन्द्र मोदी सरकार की विदेश नीति
शुरुआत अच्छी है
कल्याणी शंकर - 2014-05-30 17:01
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी जादुई टोपी से उस समय कबूतर निकाले, जब उन्होंने अपने शपथग्रहण समारोह में सार्क देशों की सरकारों के प्रमुखों को आमंत्रित कर डाला। शपथ ग्रहण के अगले दिन उन्होंने सभी सरकार प्रमुखों से अलग अलग बात करके उनके मन को जानने की कोशिश भी की। इसमें कोई शक नहीं कि ऐसा करके उन्होंने देश भर की प्रशंसा पाई है, लेकिन यह कहना अभी मुश्किल है कि उनकी विदेश नीति का वास्तविक दिशा कैसी होगी।