नरेन्द्र मोदी की सफलता के प्रति आशान्वित भाजपा के दिल्ली प्रदेश के नेताओं को लगता था कि केन्द्र में उनकी सरकार बनने के बाद दिल्ली प्रदेश की उनकी सरकार भी बन जाएगी। आम आदमी पार्टी विधायकों के उनकी ओर टूटकर आने की उनकी उम्मीद थी, लेकिन अब वे नाउम्मीद हो चुके हैं।
इसका कारण यह है कि वर्तमान दलबदल कानून के तहत किसी पार्टी में विभाजन के लिए विधानसभा या लोकसभा के कम से कम दो तिहाई सदस्यों को नये गुट के साथ होना जरूरी है। इस समय आम आदमी पार्टी के पास 27 विघायक हैं और उनमें विभाजन के लिए 18 विधायक जरूरी हैं।
केजरीवाल सरकार के पतन के बाद से भी आम आदमी पार्टी के कुछ विधायक भाजपा नेताओं के संपर्क मंे थे, लेकिन नरेन्द्र मोदी द्वारा उस समय मना करने के बाद दलबदल या विभाजन का खेल रोक दिया गया था, पर उम्मीद की जा रही थी कि केन्द्र में अपनी सरकार बनने के बाद ऐसे विधायकों की संख्या बढ़ेगी और भाजपा अपनी सरकार उनके साथ मिलकर बना सकती है। पर उतनी संख्या में विधायक सामने आ नहीं पा रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी के तीन विधायक लोकसभा में जीतकर आ चुके हैं। इसके कारण निलंबित विधानसभा में उसके विधायकों की संख्या 31 से घटकर 28 पर आ चुकी है। इसके कारण आम आदमी पार्टी के चार या पांच विधायकों से इस्तीफा दिलवाकर भी वह बहुमत के आंकड़े तक नहीं पहुंच सकती। इसलिए इस्तीफा दिलवाकर बहुमत पाने की इस संभावना को भी विराम लग चुका है।
भारतीय जनता पार्टी को पिछले लोकसभा चुनाव में दिल्ली की 70 विधानसभा में से 60 में बढ़त हासिल हुई थी। इसलिए भाजपा का एक वर्ग चुनाव चाहता है। वह आम आदमी पार्टी के टूटे हुए विधायकों के साथ सरकार बनाने में दिलचस्पी भी नहीं ले रहा है।
सरकार के गठन की एक और संभावना मौजूद थी। वह संभावना थी कांग्रेस के समर्थन से आम आदमी पार्टी की सरकार के गठन की। निलंबित विधानसभा में कांग्रेस के पास 8 और आम आदमी पार्टी के पास 27 विधायक हैं। दोनों के पास संयुक्त रूप से 35 विधायक हैं। भाजपा के तीन विधायकों के इस्तीफ के बाद निलंबित विधानसभा में कुल 67 विधायक ही रह जाएंगे। इस तरह 35 का आंकड़ा पूर्ण बहुमत का आंकड़ा होता है।
अरविंद केजरीवाल को कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने की उम्मीद थी। इसलिए उन्होंने उपराज्यपाल से विधानसभा को भंग न करने की मांग की थी, जबकि उनकी पार्टी ने इसे भंग करने की याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर कर रखी है। पर कांग्रेस ने केजरीवाल को निराश कर दिया है। कांग्रेस पिछले दिसंबर महीने की तरह आम आदमी पार्टी को बिना मांगे समर्थन देने को तैयार नहीं है और आम आदमी पार्टी के नेता खुलकर उनका समर्थन मांगने की स्थिति में नहीं है।
इसलिए न तो भाजपा की और न ही आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के कोई आसार दिखाई पड़ रहे हैं और दिल्ली में विधानसभा का मध्यावधि चुनाव लगभग अवश्यंभावी हो गया है। (संवाद)
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दिल्ली विधानसभा के मध्यावधि चुनाव की सुगबुगाहट
अक्टूबर में हो सकते हैं चुनाव
उपेन्द्र प्रसाद - 2014-06-05 03:48
नई दिल्लीः केन्द्र की दिल्ली सरकार के गठन के बाद अब प्रदेश की दिल्ली सरकार का मामला भी सुलटना है। राजनैतिक हलकों में पहले कयास लगाया जा रहा था कि केन्द्र की सरकार बनने के दिल्ली की प्रदेश राजनीति की गतिविधियां बढ़ेंगी और निलंबित विधानसभा से ही कोई सरकार निकल जाएगी। पर ऐसा होना अब नामुमकिन लगता है।