के चन्द्रशेखर राव ने नवगठित तेलंगाना के प्रथम मुख्यमंत्री के रूप मंे शपथ ली। 2 जून को हुए उनके शपथग्रहण समारोह में उत्सव का माहौल था। समारोह के बाद उन्होंने लोगों को संबोधित किया और अपने सभी चुनाव पूर्व वायदों को पूरा करने का वायदा किया। सवाल उठता है कि क्या वे वैसा कर पाएंगे और लोगों की आकांक्षाओं पर खरे उतर सकेंगे?
नवगठित राज्य की आबादी साढ़े तीन करोड़ है और निजाम के स्टेट का लगभग सारा हिस्सा इसका पार्ट है। इसमें 17 लोकसभा सीटें और 119 विधानसभा सीट हैं। इसमें 10 जिले हैं और हैदराबाद जिला को छोड़कर अन्य सभी बहुत पिछड़े हैं। यदि सीमांध्रा से तुलना की जाय, तो तेलंगाना का अधिकांश हिस्सा विकास की दौड़ में बहुत पीछे रह गया है। सीमांध्रा में बन्दरगाह है, लंबा समुद्री तट है, धान के हरे हरे खेत हैं। इसके अलावा उसके पास विशाखापतनम और विजयवाड़ा जैसे विकसित महानगर हैं, जहां के लोग ज्यादा उद्यमी हैं।
तेलंगाना के सामने वे सारी समस्याएं हैं, जो एक नवगठित प्रदेश के सामने होती हैं। उसके सामने तो एक समस्या हैदराबाद ही है। कुछ सालों तक यह दो प्रदेशों की राजधानी होगी। अंततः इसे तेलंगाना का ही होना होगा, लेकिन उसके पहले सीमांध्रा की राजधानी के रूप में यह तेलंगाना के लिए समस्या का सबब बना रहेगा। दोनों प्रदेश यहां के सचिवालय और विधानसभा के भवनों को शेयर करेंगे। अभी एक तत्काल समस्या तो कर्मचारियों का बंटवारा करना है। यह एक बहुत बड़ा काम है और इसके बाद ही सरकारी मशीनरी सही तरीके से काम करना शुरू करेगी।
दूसरी चुनौती तेलंगाना मंत्रिमंडल का गठन है। पहले ही इस बात पर शिकायत के स्वर सुनने को मिल रहे हैं कि एक चैथाई मंत्रिमंडल तो मुख्यमंत्री के परिवार से ही है। उनके बेटे ही नहीं भतीजे भी मंत्री बना दिए गए हैं। मुख्यमंत्री के लिए अच्छा यही होगा कि वे अपनी सरकार को अपने परिवार की जागीर नहीं समझें, बल्कि सभी जातियों, समुदायों और संप्रदायों को सरकार में जगह दें।
तीसरी चुनौती केन्द्र सरकार से विशेष पैकेज लेने की है। आंध्र के मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडु इस कला में बहुत माहिर हैं। वे पहले भी केन्द्र से ज्यादा से ज्याद सहायता राशि पाने में सफल हुआ करते थे और अब तो उनके प्रदेश को एक नई राजधानी भी बनानी है, जिसके लिए वे केन्द्र से सहयोग मागेंगे। हालांकि प्रधानमंत्री ने कहा है कि वे तेलंगाना को सभी प्रकार की सहायता करेंगे, लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि तेलंगाना एक राजस्व सरप्लस का प्रदेश है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सिर्फ तेलंगाना की ही नहीं, बल्कि अन्य प्रदेशों की मांगों को भी पूरा करना है। चन्द्रशेखर राव ने कांग्रेस के साथ सहयोग की अपील को ठुकरा दिया है और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के साथ मिलकर काम करने का संकल्प किया है। इसका लाभ तेलंगाना को मिल सकता है।
बिजली और पानी के बंटवारे में दोनों राज्यों में समस्या तो आएंगी ही, तेलंगाना के लोगों की इच्छा है कि प्रदेश के शेष 9 जिलों का भी वैसा ही विकास हो, जैसा हैदराबाद का हुआ है। इसके लिए कड़ी राजनैतिक संकल्पशक्ति और पैसे की जरूरत पड़ेगी।
नई सरकार के सामने एक अन्य चुनौती नक्सलवाद का सामना करने की भी है। अलग तेलंगाना के गठन का विरोध करते हुए एक तर्क यह भी दिया जाता था कि इससे नक्सलवाद को बढ़ावा मिलेगा। माओवादियों के अनेक नेता इसी इलाके से आते हैं। मुठभेड़ में मारे गए किशनजी भी इसी इलाके के थे। यदि इलाके का विकास नहीं किया गया, तो नक्सवादी समस्या और भी बदतर हो सकती है। (संवाद)
भारत
तेलंगाना के गठन के बाद नवनिर्माण की चुनौतियां
कल्याणी शंकर - 2014-06-06 16:09
तेलंगाना अब एक वास्तविकता बन गया है। भारत संघ के 29 वें प्रदेश के रूप में उसने अस्तित्व प्राप्त कर लिया हैं। अब सवाल उठता है कि आगे क्या होगा? इसमें शक नहीं कि जिन पार्टियों और नेताओं ने इस राज्य के गठन के लिए संघर्ष किया, वे सफलता पाने के बाद इतरा रहे हैं, लेकिन गठन के साथ ही उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता है। नवगठित प्रदेश के सामने आज अनेक चुनौतियां हैं और अवसर भी। तेलंगाना और पड़ोसी आंध्र प्रदेश के बीच कटुता पैदा हो गई है, लेकिन दोनों प्रदेशों को इस कटुता को भूलकर एक दूसरे के सहयोग से अपने अपने विकास के काम को अंजाम देना चाहिए। दोनों राज्यों में पिछले विधानसभा चुनाव ने स्थाई सरकारें दी हैं। यह अच्छी बात है। दोनों प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को आपसी सहयोग को बढ़ावा देना चाहिए।