केरल कांग्रेस गुटबाजी के लिए कुख्यात रही है। यह शायद ही कभी रुकने का नाम लेती है, लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने आदेश जारी कर लोकसभा चुनाव के समाप्त होने तक सारे विवादों को स्थगित रखने का निर्दश दे रखा था। यहां के कांग्रेस नेता उस आदेश पर अमल भी कर रहे थे।

पर चुनाव समाप्त होने के बाद फिर से पुरानी गुटबाजी अपना रंग पकड़ रही है। इस बार मामला मंत्रिपरिषद के पुनर्गठन का है। मुख्यमंत्री चांडी मंत्रिमंडल में फेरबदल करना चाहते हैं। इसके लिए यूडीएफ के अपने एक सहयोगी का काफी दबाव उनके ऊपर पड़ रहा है।

यूडीएम का एक सहयोगी घटक दल है केरल कांग्रेस (बी)। उसके अध्यक्ष अपने बेटे को मंत्रिपरिषद में शामिल करवाने पर अड़े हुए हैं। न चाहते हुए भी श्री चांडी उनको मंत्री बनाने के लिए बाध्य हो रहे हैं, क्योंकि उनके दोस्त के पास सोलर पैनल घोटाले से संबंधित कुछ राज है, जिसे जाहिर करने पर चांडी की मुसीबत बढ़ सकती है।

कहा जाता है कि सोलर पैनल घोटाले में शामिल मुख्य अभियुक्तों में से एक सरिता नायर का लिखा हुआ एक पत्र चांडी के उस दोस्त के पास है, जिसमें कुछ ऐसी बातें लिखी हुई हैं, जिनके सार्वजनिक होने से श्री चांडी संकट में फंस सकते हैं। इसलिए अपने उस सहयोगी का मुह बंद रखने के लिए चांडी को उनके बेटे को मंत्री बनाना पड़ रहा है।

पर मंत्रियों की संख्या की एक अधिकतम सीमा होती है। जब सीमा तक पहले ही मंत्रियों को शपथ दिला दी गई हो, तो फिर नये व्यक्ति को मंत्री बनाने के लिए एक पुराने मंत्री को हटाना पड़ेगा। और चांडी एक ऐसे मंत्री को बाहर का रास्ता दिखाना चाहते हैं, जो प्रदेश के गृहमंत्री रमेश चेनिंथाला के गुट का है। चेनिंथाला को यह मंजूर नहीं कि उनके गुट का कोई मंत्री कैबिनेट से बाहर कर दिया जाय। इसलिए वे इसका विरोध कर रहे हैं।

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की देश भर मंे करारी हार हुई। जीत तो उसकी केरल में भी नहीं हुई है, फिर भी वह इस बात का संतोष कर सकती है कि प्रदेश की 20 लोकसभा सीटों में से 9 पर उसकी जीत हुई है और तीन सीटों पर उसके समर्थक उम्मीदवार जीते हैं। जाहिर है, इसके कारण मुख्यमंत्री चांडी की प्रतिष्ठा कांग्रेस आलाकमान के सामने बढ़ी है। इसलिए वे उम्मीद कर रहे थे कि अब उन्हें मंत्रिपरिषद में फेरबदल करने में कोई दिक्कत नहीं होगी।

मुख्यमंत्री का दावा है कि कांग्रेस आलाकमान ने उनको मंत्रिमंडल में फेरबदल की इजाजत दे दी है, पर रमेश चेनिंथाला का कहना है कि उन्हें फेरबदल की इजाजत बिना शर्त नहीं मिली है, बल्कि उनसे कहा गया है कि यह काम सर्वसम्मति से किया जाय और सर्वसम्मति इस काम की इजाजत नहीं देती।

यही कारण है कि चेनिंथाला को फेरबदल मंजूर नहीं। खासकर वे ऐसे फेरबदल को स्वीकार करने के लिए कतई तैयार नहीं हैं, जिससे उनके गुट का एक मंत्री प्रभावित होता हो। वे अपनी शिकायत के साथ दिल्ली भी गए।

मंत्रिपरिषद में फेरबदल करने वाले सिर्फ रमेश चेनिंथाला ही नहीं हैं। प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष सुधीरन भी इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि किसी को मंत्री बनाना और किसी को मंत्री पद से हटाना मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है, लेकिन मुख्यमंत्री को प्रदेश कांग्रेस कमिटी से भी निर्णय करने के पहले विचार विमर्श कर लेना चाहिए। (संवाद)